जब बात हो कमाई की, तो भाड़ में जाए मंहगाई

 

 

आसमान छूते पेट्रोल, डीजल और घरेलू गैस के दामों ने आम आदमी का जीना किया मुश्किल.

इसका असर इतना व्यापक है कि आम खाने पीने और रहन सहन की चीजों में महंगाई अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है और सरकार को फिक्र सिर्फ इनसे होने वाली कमाई पर है.

केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क के रूप में इनडायरेक्ट टैक्स रेवेन्यू बढ़कर कुल 4,51,542.56 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.

*यह पिछले साल के मुकाबले करीब 56.5 प्रतिशत ज्यादा है.*

पीटीआई की खबर के मुताबिक, यह खुलासा सूचना के अधिकार से हुआ है.

रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के इम्पोर्ट पर 37,806.96 करोड़ रुपए कस्टम ड्यूटी वसूली गई. वहीं, देश में इन प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी से 4.13 लाख करोड़ रुपए की कमाई हुई.

आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक 2019-20 में पेट्रोलियम पदार्थों के इम्पोर्ट पर सरकार को सीमा शुल्क के रूप में 46,046.09 करोड़ रुपये का रेवेन्यू मिला. वहीं, देश में इन प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी से 2.42 लाख करोड़ रुपए की वसूली हुई. यानी दोनों टैक्स के मद में सरकार ने 2019-20 में कुल 2,88,313.72 करोड़ रुपये कमाए.

वही दूसरी ओर 2021 में घरेलू गैस की कीमत में बड़ी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

जुलाई में 25.5 रुपये की बढ़ोत्तरी के बाद अब तक कीमतों में 140.5 रुपये का इजाफा हो चुका है।

पेट्रोल , डीजल के दाम तो सैकड़ा पार कर ही चुके हैं.

केन्द्र सरकार को पेट्रोल डीजल पर पिछले साल के मुकाबले वर्ष 2020-21 में 1.63 लाख करोड़ रुपये का अधिक राजस्व प्राप्त हुआ, वो भी आम जनता को निचोड़कर.

क्या जनता को यह जानने का हक नहीं कि यह राजस्व का उपयोग किन किन मदों में किया गया?

यदि यह जानकारी हमारे समक्ष आती है कि देश हित में किन किन मदों में इनका उपयोग हुआ, जनता को कितनी सुविधा हुई और कितना बरबाद हुआ तो न केवल सरकार की जबाबदेही तय की जा सकती है बल्कि जनता को मंहगाई सहने की शक्ति भी मिलेगी कि हमारा पैसे का सदुपयोग हो रहा है.

*खर्चों में पारदर्शिता और जबाबदेही इस सरकार को प्रदर्शित करनी पड़ेगी अन्यथा नीयत पर सवाल उठना तो इस मंहगाई काल में नजर आ ही रहा है.*

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

Shares