रोजगार सृजन में आत्मनिर्भर पैकेज निकला फिसड्डी,व्यापार बचेगा तभी रोजगार बढ़ेगा

 

 

आत्मनिर्भर भारत योजना की शुरुआत पिछले साल एक अक्टूबर को की गई थी।

रोजगार सृजन के तहत कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में दिये जाने वाले योगदान में सरकारी मदद के जरिये कंपनियों को नये रोजगार पैदा करने, रोजगार के नुकसान की भरपाई के लिये प्रोत्साहन दिया गया।

योजना के तहत 58.50 लाख अनुमानित लाभार्थियों के लिये 22,810 करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दी गई है और इसकी समयसीमा 30/06/21 थी, जिसे अब बढ़ाकर 31/02/2022 कर दिया गया है.

योजना का मकसद कंपनियों पर वित्तीय बोझ कम करके रोजगार को बढ़ावा देना है।

योजना में भारत सरकार नयी भर्तियों के मामलों में दो साल तक भविष्य निधि कोष में कर्मचारी और नियोक्ता द्वारा किये जाने वाले कुल 24 प्रतिशत योगदान का भुगतान अपनी तरफ से करेगी।

यह सुविधा उन कर्मचारियों के मामले में दी जा रही है जिनका वेतन 15 हजार रुपये मासिक तक है और जिन कंपनियों में कुल कर्मचारियों की संख्या एक हजार तक है।

वहीं ऐसी कंपनियां अथवा उद्योग धंधे जहां एक हजार से अधिक कर्मचारी कार्य करते हैं उनमें 15,000 रुपये तक मासिक वेतन पाने वाले नए कर्मचारियों के हिस्से के 12 प्रतिशत भविष्यनिधि योगदान का भुगतान भारत सरकार भविष्य निधि कोष में कर रही है जबकि नियोक्ता की तरफ से किया जाना वाला योगदान नियोक्ता को खुद करना होता है।

आपको जानकर हैरानी होगी की खुद वित्त मंत्री ने बताया कि 18 जून 2021 तक इस योजना का लाभ मात्र 21.42 लाख लोगों तक पहुँचा है और लगभग 902 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.

22810 करोड़ रुपये का आवंटन इस योजना के तहत नए रोजगार पैदा करने के उद्देश्य से किया गया और इसमें से अभी तक मात्र 902 करोड़ खर्च होना, ये बताने के लिए काफी है कि देश में रोजगार और व्यापार की स्थिति क्या है.

नया रोजगार तभी पनपेगा, जब व्यापार पनपेगा और व्यापार को बढ़ाने के लिए उसे परोक्ष रुप से दरकार है राहत, प्रोत्साहन और सब्सिडी की.

दान, राहत, प्रोत्साहन, सब्सिडी और सहायता उधार पर नहीं दी जाती, उस पर ब्याज नहीं लिया जाता. सहायता वापस नहीं की जाती और जिस चीज़ को वापस करना है, ब्याज देना है, वह सहायता या राहत तो हो ही नहीं सकती.

क्यों सरकार इस बात को नहीं समझ रही, लोन बांटकर या लोगों को कर्जदार बनाने से या इलाज के लिए लोन दिलवाकर, हम न केवल बैंकिंग प्रणाली तबाह करने की तरफ बढ़ रहे हैं बल्कि जनता की गाढ़ी कमाई और बचत भी डुबोने जा रहे हैं.

राहत बांटे, लोन नही.

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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