सोशल मीडिया पर बनें भारत के नये आईटी कानून की आलोचना कर रहा संयुक्त राष्ट्र

 

 

*सोशल मीडिया पर बनें भारत के नये आईटी कानून की आलोचना कर रहा संयुक्त राष्ट्र: गैर जरूरी और बेबुनियाद दखल:*

 

केंद्रीय आईटी और लॉ मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने साफ- साफ कहा है कि नियम तो मानना ही होगा।

सोशल मीडिया को लेकर नई गाइडलाइन कहीं से भी कोई अभिव्यक्यित की आजादी पर रोक नहीं है।

फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफार्म के लिए नई गाइडलाइन और उसके बाद के विवाद को लेकर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वे भारत में बिजनस करने और मुनाफा कमाने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन भारत के संविधान के के प्रति उनकी जवाबदेही है।

ट्विटर ने कहा कि कंपनी अपने पारदर्शिता, अभिव्यक्ति की आजादी तथा निजता के सिद्धांतों के अनुरूप ऑनलाइन नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के महत्वपूर्ण कार्य पर समिति के साथ काम करने के लिए तैयार है।

सोशल मीडिया कम्पनियां कुछ भी कहे, उन्हें भारतीय कानून का तो पालन करना ही होगा और तथ्यों एवं संदेशों की टेस्टिंग प्रणाली को सुधारना ही होगा.

यह और बात है कि केन्द्र सरकार ने शुरू में अपने फायदे के लिए इन सोशल मीडिया कम्पनियों का उपयोग किया और अब ये कम्पनियां भस्मासुर बन गई है, तब सरकार जाग रही है और इन भस्मासुरों पर जितनी जल्दी नियंत्रण हों, उतना अच्छा.

इसलिए भारत में अपनी दाल गलती न देखकर, इन कम्पनियों ने अपने पैसे की ताकत दिखाते हुए संयुक्त राष्ट्र से नुमाइंदगी करवाई है, जिसकी तटस्थता संदेह के दायरे में आती है और इसका पुरजोर जबाब भारत सरकार को देना चाहिए.

*क्या कहना है संयुक्त राष्ट्र का:*

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) एक्सपर्ट ने कहा है कि नए आईटी कानून अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार के मानदंडों पर खरा नहीं उतरते।

नए आईटी नियमों को लेकर यूएन की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि आईटी कानून इंटरनेशनल कॉवनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स ( आईसीसीपीआर) का उल्लंघन कर रहे हैं। सरकार से हम इसके व्यापक समीक्षा करने की अपील करते हैं।

*क्या है आईसीसीपीआर?*

इंटरनेशनल कॉवनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स 16 दिसंबर 1966 को यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली रेजॉलूशन में अपनाई गई एक बहुपक्षीय संधि है जो नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए कई तरह की सुरक्षा प्रदान करती है।

यह कॉवनेंट की आर्टिकल 49 के मुताबिक, 23 मार्च 1976 को प्रभाव में आया।

यह लोगों को मानवाधिकारों की एक विस्तृत श्रृंखला का लाभ लेने में सक्षम बनाता है।

कॉवनेंट सरकारों को संधि में निहित अधिकारों की रक्षा के लिए और एक प्रभावी उपाय प्रदान करने के लिए प्रशासनिक, न्यायिक और विधायी उपाय करने के लिए बाध्य करती है।

दिसंबर 2018 तक, 172 देशों ने कॉवनेंट को अपनाया है।

*संयुक्त राष्ट्र का दखल गैर जरूरी और बेबुनियाद है क्योंकि हर देश की अपनी समस्या होती है और उसके अनुसार ही नीति बनाई जाती है और यदि किसी सोशल मीडिया कंपनी को तकलीफ है तो अपना बोरिया बिस्तर उठाएं, लेकिन देश की सूचना संवेदनशीलता के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा और वैसे भी सोशल मीडिया ने देश के लोगों को गलत आदतों में ज्यादा लगाया हैं.*

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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