*केन्द्रीय गृह मंत्रालय की साइबर और आनलाइन अपराध रोकने की एक अनुठी पहल

 

 

केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने साइबर धोखाधड़ी (Cyber Fraud) के कारण होने वाले वित्तीय नुकसान को रोकने के लिए राष्ट्रीय हेल्पलाइन 155260 और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म का संचालन शुरू किया है।

राष्ट्रीय हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म, साइबर धोखाधड़ी में नुकसान उठाने वाले व्यक्तियों को ऐसे मामलों की रिपोर्ट करने के लिए एक तंत्र की सुविधा देता है, ताकि उनकी गाढ़ी कमाई की हानि को रोका जा सके।

*​1 अप्रैल को हेल्पलाइन का हुआ था सॉफ्ट लॉन्च*

गृह मंत्रालय द्वारा जारी बयान के मुताबिक, हेल्पलाइन को 01 अप्रैल, 2021 को सॉफ्ट लॉन्च किया गया था।

हेल्पलाइन 155260 और इसके रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), सभी प्रमुख बैंकों, भुगतान बैंकों, वॉलेट और ऑनलाइन मर्चेंट के सक्रिय समर्थन और सहयोग से गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई 4सी) द्वारा संचालित किया जा रहा है।

*​अभी 7 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों में हेल्पलाइन हो रही इस्तेमाल*

कानून प्रवर्तन एजेंसियों और बैंकों एवं वित्तीय मध्यस्थों को एकीकृत करने के उद्देश्‍य से आई4सी द्वारा आतंरिक रूप से नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली विकसित की गई है।

वर्तमान में हेल्पलाइन नंबर 155260 के साथ इसका उपयोग सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश) द्वारा किया जा रहा है।

ये राज्य व केन्द्र शासित प्रदेश देश की 35 प्रतिशत से भी अधिक आबादी को कवर करते हैं।

जालसाजों द्वारा ठगे गए धन के प्रवाह को रोकने के लिए अन्य राज्यों में भी इसकी शुरुआत की जा रही है, ताकि पूरे देश में इसकी कवरेज हो सके।

*​अभी तक कितनी सफल रही हेल्पलाइन*

अपनी लॉन्चिंग के बाद केवल दो माह की छोटी सी अवधि में ही हेल्पलाइन नंबर 155260 कुल 1.85 करोड़ रुपये से भी अधिक की धोखाधड़ी की गई रकम को जालसाजों के हाथों में जाने से रोकने में सफल रहा है।

दिल्ली एवं राजस्थान ने क्रमशः 58 लाख रुपये और 53 लाख रुपये की बचत की है।

यह विशेष सुविधा ऑनलाइन धोखाधड़ी से संबंधित सूचनाओं को साझा करने और लगभग रियल टाइम में ही सटीक कार्रवाई करने के लिए नए जमाने की तकनीकों का उपयोग करते हुए बैंकों और पुलिस दोनों को ही सशक्त बनाती है।

ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामलों में धोखाधड़ी की गई रकम का नुकसान होने से बचाया जा सकता है।

धोखाधड़ी की गई रकम के समस्‍त प्रवाह पर करीबी नजर रखकर और जालसाज द्वारा पूरी डिजिटल प्रणाली (इकोसिस्‍टम) से इसे बाहर निकालने से पहले इसके आगे के प्रवाह को रोक देने से यह संभव हो सकता है।

*​हेल्पलाइन और इससे जुड़ा प्लेटफॉर्म कैसे करते हैं काम*

1. साइबर ठगी के शिकार लोग हेल्पलाइन नंबर 155260 पर कॉल करते हैं, जिसका संचालन संबंधित राज्य की पुलिस द्वारा किया जाता है।

2. कॉल का जवाब देने वाला पुलिस ऑपरेटर धोखाधड़ी वाले लेनदेन का ब्यौरा और कॉल करने वाले पीड़ित की बुनियादी व्यक्तिगत जानकारी लिखता है।

इस जानकारी को नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली पर एक टिकट के रूप में दर्ज किया जाता है।

3. फिर यह टिकट संबंधित बैंक, वॉलेट्स, मर्चेंट्स आदि तक तेजी से पहुंचाया जाता है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे इस पीड़ित के बैंक हैं या फिर वे बैंक/वॉलेट हैं जिनमें धोखाधड़ी का पैसा गया है।

4. फिर पीड़ित को एक एसएमएस भेजा जाता है, जिसमें उसकी शिकायत की पावती संख्या होती है और साथ ही निर्देश होते हैं कि इस पावती संख्या का इस्तेमाल करके 24 घंटे के भीतर धोखाधड़ी का पूरा विवरण राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in/) पर जमा करें।

5. अब संबंधित बैंक, जो अपने रिपोर्टिंग पोर्टल के डैशबोर्ड पर इस टिकट को देख सकता है, वह अपने आंतरिक सिस्टम में इस विवरण की जांच करता है।

6. अगर धोखाधड़ी का पैसा अभी भी मौजूद है तो बैंक उसे रोक देता है, यानी जालसाज उस पैसे को निकलवा नहीं सकता है।

अगर वह धोखाधड़ी का पैसा दूसरे बैंक में चला गया है तो वह टिकट उस अगले बैंक को पहुंचाया जाता है, जहां पैसा चला गया है।

इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक कि पैसा जालसाजों के हाथों में पहुंचने से बचा नहीं लिया जाता।

*​सारे प्रमुख सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंक शामिल*

मौजूदा समय में ये हेल्पलाइन और इसके रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म में सारे प्रमुख सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंक शामिल हैं।

जैसे भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक, इंडसइंड, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस, यस और कोटक महिंद्रा बैंक।

इससे सभी प्रमुख वॉलेट और मर्चेंट भी जुड़े हुए हैं, जैसे- पेटीएम, फोनपे, मोबीक्विक, फ्लिपकार्ट और एमेजॉन।

*इस हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई मौकों पर ठगी के पैसे का नामोनिशान मिटाने के लिए ठगों द्वारा उसे पांच अलग-अलग बैंकों में डालने के बाद भी उसे ठगों तक पहुंचने से रोका गया है।

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

Shares