देश को लगी 4.38 लाख करोड़ रुपये की चपत: कौन है जबाबदार?

 

सांख्यिकी और परियोजना क्रियान्वयन मंत्रालय की अप्रैल 2021 की रिपोर्ट चौकाने वाली है. यह मंत्रालय देश में चल रही 150 करोड़ रुपये के ऊपर की परियोजना पर नजर रखता है.

इस मंत्रालय के अनुसार देश में चल रहे 1770 प्रोजेक्ट में से 470 प्रोजेक्ट अपनी लागत से ज्यादा पर चल रहे हैं और 525 प्रोजेक्ट अपनी समयावधि के बाहर जा चुके हैं और देरी से चल रहें हैं.

इन 1737 प्रोजेक्ट की मूल लागत 22.33 लाख करोड़ रुपये थी, लेकिन क्रियान्वयन की कमी और देरी के कारण अब इनकी लागत बढ़कर 26.71 लाख करोड़ रुपये हो गई है. इसका मतलब अब सरकार को इनकी मूल लागत से 4.38 लाख करोड़ रुपये अधिक खर्च करने होंगे.

यह आंकडा भी विभिन्न प्रोजेक्टों से मिले आधे अधूरें आंकड़ों के आधार पर है जिसमें कई प्रोजेक्ट से अभी तक रिपोर्ट नहीं मिली है.

525 प्रोजेक्ट जो देरी से चल रहे हैं, उनमें लगभग 4 साल से ज्यादा की देरी चल रही है.

इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि यदि सभी प्रोजेक्ट से पूरी रिपोर्ट प्राप्त होगी तो अधिक लागत का आंकड़ा करीब 10 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच जाएगा जो कि हमारी जीडीपी का 5% होता है और साल भर का हमारा आयकर कलेक्शन है.

ऐसे कठिन समय में यह देश के साथ अन्याय और धोखाधड़ी है जिसकी न केवल जबाबदेही निर्धारित करनी होगी बल्कि सरकार को जनता के समक्ष स्पष्टीकरण देना होगा.

इस नुकसान और लागत बढ़ने के जो मुख्य कारण बताएं जा रहे हैं:

1. जमीन प्राप्ति में देरी

2. वन और पर्यावरण मंजूरी में देरी

3. आधारभूत सहयोग और विभिन्न विभागों में तालमेल की कमी

4. समय पर प्रोजेक्ट फाइनेंस की उपलब्धता न होना

5. इंजीनियरिंग प्लान एप्रूवल में देरी

6. प्रोजेक्ट की उपयोगिता में बदलाव

7. टेंडर और क्योटेशन निकालने में देरी

8. मशीन आर्डर और सप्लाई में देरी

9. कानून और अनुपालन संबंधित समस्या, और

10. कोविड के कारण राज्यों में लगा लाकडाउन

उपरोक्त कारणों में कोविड के कारण देरी तो समझ में आती है, लेकिन अन्य कारण हमारी सरकारी इच्छाशक्ति में कमी, प्रशासनिक नाकामी और क्रियान्वयन एवं प्लानिंग की समस्या है, जिसने हमारी जनता के हक के 5 लाख करोड़ रुपये की तिलांजलि दे दी है.

क्या ये पैसा देश का नहीं है?

क्या आपके अधिकारियों द्वारा गलत प्लानिंग और क्रियान्वयन की कमी से हुए नुकसान की पूर्ति देश की जनता करेगी?

आखिर कौन है जबाबदार, सरकार की क्या होगी जिम्मेदारी?

यदि जमीन उपलब्ध नहीं है, पर्यावरण मंजूरी नहीं है, फाइनेंस तैयार नहीं है तो फिर प्रोजेक्ट क्यों लागू किया, उस पर खर्च क्यों किया?

बिना किसी तैयारी के प्रोजेक्ट चालू करना, क्या देश की जनता के साथ अन्याय नहीं?

इन यक्ष प्रश्नों का जबाब शायद सरकार के पास नहीं, लेकिन देश के पैसे के प्रति ढिला रवैया रखना जुर्म से भी कम नहीं!

*लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर( लेखक के लेख में मध्य उदय का कोई वास्ता नहीं है)

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