*समान काम करने पर समान वेतनमान से क्यों वंचित कर रखा है चिकित्सकों को*
*कोरोना की तीसरी लहर के पहले चिकित्सकों की इस समस्या का हल जरूरी है*
*विजया पाठक, एडिटर जगत विजन:
प्रदेश में बीते एक साल से भी अधिक समय से अपनी जान की परवाह किए बगैर 24 घंटें 7 दिन अपनी ड्यूटी निभा रहे प्रदेश के स्वास्थ्यकर्मी प्रदेश सरकार की उदासीनता का शिकार हो गए है। लगातार अपनी मांगों को लेकर सरकार से पत्राचार करने के बाद भी प्रदेश की शिवराज सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया। मजबूरन इन फ्रंटलाइन वर्कर को संक्रमण के इस दौर में भी हड़ताल पर उतरने पर मजबूर कर दिया। लगातार प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने और नए-नए मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा करने वाली प्रदेश सरकार को आयुष चिकित्सकों की मांगों को इस तरह से नजर अंदाज करना सही नहीं है। नए मेडिकल कॉलेज खुल भी जाएंगे तो एमबीबीएस डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं देने नहीं जाएगे, स्वास्थ्य सेवाएं तो अंततः आयुष चिकित्सक ही ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर देते है तो फिर उन्हें मिलने वाली सुविधाओं से वंचित क्यों रखा जा रहा है। यह वही स्वास्थ्यकर्मी है जो पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से बिना हारे थके रात दिन बराबर अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे है। ऐसे में शिवराज सरकार की प्राथमिक और नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वो आयुष चिकित्सकों की मांगों को पूरा करें और उन्हें संविदा संविलियन और उचित वेतनमान देने की दिशा में काम शुरू करे। यह हाल सिर्फ किसी एक राज्य का नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के लगभग 9 हजार आयुष चिकित्सकों का है। समान वेतन और संविदा नौकरी की मांग को लेकर इससे पहले यह आयुष चिकित्सक कोरोना काल में कोई दूसरा कठिन कदम उठाए सरकार को तुरंत इस दिशा में उचित दिशानिर्देश जारी करना चाहिए। डॉक्टरों के मुताबिक वो सालभर से काम कर रहे हैं, कोविड पॉजिटिव हो गए, कुछ साथियों की मृत्यु भी हो गई। इसके बाद भी सरकार अनदेखी कर रही है। आयुष चिकित्सकों के मुताबिक समान कार्य किए जाने के बावजूद उन्हें केवल 25 हजार रुपए और पैरामेडिकल स्टाफ को 15 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन दिया जा रहा है, जबकि एमबीबीएस डॉक्टर्स का वेतन 60 हजार रुपए है। चिकित्सकों का कहना है हमें समान काम के बदले समान वेतन दिया जाए। साथ ही उन्हें संविदा संवर्ग में संविलियन कर चिकित्सक विहीन उप स्वास्थ्य, प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर नियुक्ति दी जाए। अन्य राज्यों की बात की जाए तो वहां आयुष चिकित्सकों को 40 से 60 हजार रुपए वेतन मिल रहा है। केवल मप्र में ही उन्हें बेहद कम वेतन दिया जा रहा है। वहीं, इंडियन मेडिकल काउंसिल के अनुसार प्रदेश में अब तक कोरोना महामारी की चपेट में आकर 22 से अधिक डॉक्टरों की मौत हो चुकी हैं। ऐसे में जब प्रदेश में कोरोना की तीसरी लहर के आने का अंदेशा है, ऐसे समय में राज्य सरकार को डॉक्टरों को एकजुट रखने की आवश्यकता है। क्योंकि यही वो शख्स है जो कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करते है और उनकी देखभाल की जिम्मेदारी संभालते है इसलिए शिवराज सरकार को जल्द से जल्द चिकित्सकों की नियुक्ति को लेकर शासन स्तर पर निर्णय लेना चाहिए।