अपनी नाकामी को छुपाने बोलने की आजादी भी छीन लेना चाहती है भाजपा सरकार

 

 

*अपनी नाकामी को छुपाने बोलने की आजादी भी छीन लेना चाहती है भाजपा सरकार*

*आखिर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कब तक सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में लिखते रहना होगा*

*कमलनाथ ने शिवराज सरकार की लापरवाहियों की पोल खोल हकीकत से सामना करवाया है*

*विजया पाठक, एडिटर जगत विजन;
सत्ता में राज करने वाली राजनीतिक पार्टियों ने हमेशा से ही अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने की कोशिश की है। यह सिर्फ आज का मामला नहीं है, बल्कि वर्षों से यह परंपरा देखी जा रही है। कभी पत्रकारों की कलम पर रोक, तो कभी सियासत से जुड़े लोगों के बयान पर रोक। अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर कुछ ऐसी ही सियासत गरमाई है इन दिनों मध्य प्रदेश की सरजमीं पर। जहां पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के बयान के बाद सत्ता पर बैठी भाजपा सरकार पूरी तरह तिलमिला गई है। यहां तक की कमलनाथ के ऊपर धारा 188 और 54 के तहत मामला दर्ज किया गया है। बड़ी अजीब स्थिति पैदा हो गई मध्य प्रदेश में। प्रदेश सरकार ब्लैक फंगस और कोरोना से जनता को बचाने के बजाय कमलनाथ के दिए गए बयान का खंडन करती हुई घूम रही है। इतना ही नहीं यह मामला तब और तूल पकड़ गया जब कमलनाथ ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि ब्लैक फंगस आ गया, मैंने अखबार में पढ़ा कि व्हाइट फंगस भी आ रहा है। यह बढ़ता ही जा रहा है और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान संतुष्ट हैं। यह गांव-गांव में फैल रहा है, पहले यह चीन के कोरोना के नाम से शुरू हुआ अब यह इंडियन वेरिएंट कोरोना बन गया है। बीजेपी नेताओं ने नाथ के इस बयान पर आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत मामला दर्ज करवाने के लिए जीतोड़ कोशिश की। देखा जाए तो कांग्रेस नेता कमलनाथ ने कोई गलत बयान नहीं दिया, बल्कि जिस तरह से प्रदेश में कोरोना अपना स्वरूप बदल रहा है और राज्य सरकार इस बात से संतुष्ट होकर चुप बैठ गई है कि प्रदेश में कोरोना के केस कम होने लगे है उससे निश्चित तौर पर सरकार की लापरवाही सामने आती है। प्रदेश में मार्च-अप्रैल और मई के शुरूआती 15 दिनों में जिस तरह से प्रदेश में मौतों का हाहाकार मचा है उसकी सही तस्वीर कमलनाथ के बयान में दिखाई देती है। जिसे सत्ताधारी नेता पचा नहीं पाए और उनकी बत्तियां गुल हो गई और वो कमलनाथ को ही झूठा ठहराने के लिए तमाम कोशिशों में जुटे हुए है। कमलनाथ ने अपने एक बयान में केन्द्र और मध्य प्रदेश सरकार पर कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वालों के आंकड़े छुपाने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया कि राज्य में इस साल मार्च-अप्रैल में कुल 1,27,503 लोगों की मौत हुई हैं, जिनमें से कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 1,02,002 है. जबकि, प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी बुलेटिन के अनुसार राज्य में अब तक कोविड-19 बीमारी से मरने वालों की संख्या मात्र 7,315 है। कमलनाथ ने चुनौती देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसका खंडन करें कि इस साल मार्च-अप्रैल में 1,27,503 शव राज्य के श्मशान घाटों एवं कब्रिस्तानों में नहीं आए। अगर कोई राजनेता किसी सत्ताधारी पार्टी के झूठ का पर्दाफाश कर रहा है तो इसमें गलत क्या है, आखिर कब तक सत्ता में बैठी सरकार अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाती बैठी रहेंगी। एक अन्य मामले में देश के प्रतिष्ठित अखबार में पिछले दिनों हुए किसान आंदोलन की खबरों को खुलकर प्रकाशित किए जाने के मामले को लेकर मोदी सरकार पूरी तरह से हिल गई और उन्होंने तत्काल प्रभाव से अखबार के तमाम विज्ञापन पर रोक लगा दी। कुल मिलाकर सरकार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी अपनी उंगलियों पर नचाना चाहती है, वो जैसा चाहती है वैसा मीडिया लिखे, जैसा चाहे वैसा मीडिया चैनल पर दिखाए। सच दिखाने पर या तो संबंधित संस्था के खिलाफ कार्य़वाही की जाती है या फिर उसके तमाम विज्ञापन बंद करने की धमकी जाती है। यूपी में इससे कई बुरे हाल है। वहां पिछले एक साल में योगी सरकार के कारनामों की पोल खोलने वाले 15 पत्रकारों के ख़िलाफ खबर लिखने के मामलों में मुकदमे दर्ज कराए गए हैं।

इस लेख के लिए लेखक जिम्मेदारी है जरूरी नहीं कि मध्य उदय इस आलेख के लिए जिम्मेदार ,सहमत हो।

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