BJP की सबसे बड़ी ताकत ही बन गई कमजोरी!

किसी की छवि को गढ़ना हो या किसी की छवि को तोड़ना हो, तो उसके लिए सोशल मीडिया से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती. इस बात की पहली बार तस्दीक हुई थी साल 2009 में, जब सोशल मीडिया ने अमेरिका में बाराक ओबामा को राष्ट्रपति बना दिया था. एक ऐसी छवि गढ़ी गई, जिसने अमेरिकी इतिहास में पहली बार एक अश्वेत को राष्ट्रपति बना दिया और राष्ट्रपति पद से हटने के चार साल बाद भी वो सोशल मीडिया और खास तौर से ट्विटर की दुनिया के बेताज बादशाह हैं. 129 मिलियन से भी ज्यादा फॉलोवर वाला शख्स. इतने फॉलोवर, जितने खुद ट्विटर के भी नहीं हैं.
अगर ट्विटर की इस लोकप्रियता को भारतीय परिप्रेक्ष्य में ट्रांसलेट करें तो ये तमगा सिर्फ और सिर्फ एक आदमी के पास है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास. उन्होंने और उनकी टीम ने सोशल मीडिया के जरिए एक छवि गढ़ी है, जिसने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया है. उनके आस-पास भी कोई नहीं है. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन हों या फिर क्रिकेटर विराट कोहली, सब बहुत पीछे छूट चुके हैं और ट्विटर पर मौजूद फौज अब इतनी मजबूत हो चुकी है कि वो जब चाहे कोई नई छवि गढ़ दें और जब चाहे तो बनी बनाई छवि को ध्वस्त कर दे. इसके लिए ब्लू टिक वालों के रोल पर तो पूरी किताब लिखी जा सकती है.
लेकिन ये वक्त कोरोना का है और कोरोना की इस दूसरी लहर में छवियों को ध्वस्त होता देखा जा रहा है. ये काम भी ट्विटर पर बखूबी हो रहा है. 28 अप्रैल, 2021 को अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में छपी एक खबर को याद करिए. स्क्रीन पर दिख रही होगी पीएम मोदी की बनी बनाई छवि को ध्वस्त करती एक खबर, जिसे आपने शायद ही वॉशिंगटन पोस्ट में जाकर पढ़ा होगा. आपको ये खबर दिखी होगी या तो ट्विटर पर या तो फेसबुक पर. वही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, जहां नरेंद्र मोदी की छवि को गढ़ा गया था. और भी खबरें हैं…और भी खबरों के स्क्रीन शॉट्स हैं, जो आपको दिख रहे होंगे. ये सब प्रधानमंत्री की आलोचना करती हुई खबरे हैं. लेकिन आपने इनको इनकी वेबसाइट पर जाकर या इनके अखबारों के ईपेपर में शायद ही पढ़ा हो. इन सबका जिक्र आपकी आंखों के सामने वाया फेसबुक या ट्विटर ही हुआ होगा.
जाहिर है कि जिस सोशल मीडिया ने बीजेपी और खास तौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक छवि गढ़ी, अब वहीं पर उस छवि को ध्वस्त किया जा रहा है. अन्ना आंदोलन के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ आई जागरूकता, दिल्ली के निर्भया कांड के बाद कांग्रेस के खिलाफ उपजा गुस्सा और टूजी-कोलगेट कांड से उपजे असंतोष ने देश के सामने दूसरा बना बनाया विकल्प पेश किया. भारतीय जनता पार्टी के रूप में राजनीतिक विकल्प तो सबके सामने था ही, लेकिन इस पार्टी का चेहरा कौन होगा, उसे स्थापित किया सोशल मीडिया ने. भले ही कहें कि जून 2013 में गोवा की कार्यकारिणी में नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगी, लेकिन सच तो ये है कि सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी के नाम की मुहर गोवा कार्यकारिणी से पहले ही लग गई थी. कार्यकारिणी में नाम की घोषणा तो सिर्फ एक औपचारिकता थी पार्टी और उसके नेताओं के लिए.

उस वक्त ही सभी पॉलिटिकल पार्टियों और खास तौर से बीजेपी को सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा लग गया था. तभी तो नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने ट्वीट किया कि भारत जीत गया है. उसके बाद से अपनी छवि को और बेहतर बनाने के लिए प्रधानमंत्री ने क्या किया, इसे बताने की जरूरत शायद ही हो. दुनिया का शायद ही कोई ऐसा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हो, जहां पीएम मोदी की मौजूदगी नहीं है. ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, कू, उनकी खुद की वेबसाइट और उनका खुद का मोबाइल ऐप्लीकेशन. हर जगह प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी है, जहां उनकी छवि को गढ़ने की अनवरत कोशिश की जाती रही है.

लेकिन साल 2020 के अंत में शुरू हुए किसान आंदोलन के दौरान इस छवि का टूटना शुरू हो गया और जैसे ही इस छवि का टूटना शुरू हुआ, सत्ताधीशों का सोशल मीडिया से पंगा भी शुरू हो गया. 26 जनवरी को लाल किले पर हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन के समर्थन में पॉप स्टार रेहाना ने ट्वीट किया. फिर स्वीडिश एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने ट्वीट किया और उसके बाद शुरू हो गया टूलकिट प्रकरण, जिसमें कहा गया कि भारत को बदनाम करने की अंतर्राष्ट्रीय साजिश की जा रही है. भारत में दिशा रवि की गिरफ्तारी भी हुई थी.
इस दौरान भारत सरकार की ओर से ट्विटर को कहा गया था कि वो कुछ अकाउंट्स को सस्पेंड कर दे क्योंकि भारत विरोधी गतिविधियां चल रही हैं. फौरी तौर पर ट्विटर ने अकाउंड विदहेल्ड भी किए लेकिन जांच के बाद उन्हें फिर से बहाल कर दिया गया. इससे भारत सरकार और ट्विटर के बीच एक तनाव की स्थिति पैदा हो गई. सरकार की ओर से कहा गया कि ट्विटर दोहरे मापदंड अपना रहा है तो ट्विटर की ओर से कहा गया कि वो लोगों की अभिव्यक्ति की आवाज बनता रहेगा. लेकिन फिर 25 फरवरी को सरकार की ओर से नए आईटी ऐक्ट को लागू कर दिया गया. सख्त प्रावधान किए गए और कोशिश की गई कि सोशल मीडिया के कॉन्टेंट पर भी मॉनिटरिंग सरकार की ही रहे.
अभी ये प्रकरण पूरी तरह से खत्म भी नहीं हुआ था कि कोरोना की दूसरी लहर आ गई. एक दिन में चार लाख नए मरीज सामने आने लगे, एक दिन में मौतों का आधिकारिक आंकड़ा चार हजार को भी पार करने लगा और इसने बनी बनाई छवि को एक बार फिर से ध्वस्त कर दिया. लार्जर दैन लाइफ वाली गढ़ी गई छवि की परत प्याज के छिलके की तरह एक-एक करके उतरने लगी. राष्ट्रीय स्तर पर भी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी. राष्ट्रीय स्तर पर खबरें छपने लगीं कि कोरोना से हो रही मौतों के लिए देश का सिस्टम जिम्मेदार है. लेकिन विदेशी मीडिया ने बिटविन द लाइन्स कुछ नहीं रखा. सीधे लिखा कि कोरोना के ऐसे दुष्प्रभाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी और उनका दंभ जिम्मेदार है. अगल-अलग देश की अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में भाषाई अंतर हो सकता है, लेकिन उनके कहने का तरीका लगभग एक जैसा था.
विदेश मंत्रालय ने अपने एंबेसडर्स के जरिए ऐसी रिपोर्ट्स को रोकने की कोशिश भी की, लेकिन कई बार नाकामी ही हाथ लगी. वहीं विदेश में छपी तीखी और सख्त रिपोर्ट्स वाया सोशल मीडिया लगातार भारत के लाखों लोगों तक पहुंचती रहीं और अब भी पहुंच रही हैं. ये सब उसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हुआ, जहां करीब आठ साल से प्रधानमंत्री की छवि गढ़ी जा रही थी. कोरोना के दौरान ऑक्सीजन, बेड और वेंटिलेटर के लिए त्राहिमाम करती लोगों की तस्वीरों ने छवि को डेंट करना शुरू कर दिया. रही-सही कसर श्मसान में जलती चिताओं और कब्रिस्तान में खुदती कब्रों ने पूरी कर दी. जो कुछ और बचा था, उसे गंगा में उतराते और बालू के नीचे दबे शवों ने पूरा कर दिया, जिसे सोशल मीडिया ने पूरी दुनिया को दिखा दिया.
इस बीच दो एजेंसियों ने अपने सर्वे में ये भी पाया कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है. सर्वे करने वाली एक एजेंसी थी मॉर्निंग कंसल्ट, जो 13 देशों के राष्ट्राध्यक्षों की रेटिंग पर नजर रखने का दावा करती है. उसने कहा कि एक महीने के अंदर ही पीएम मोदी की अप्रूवल रेटिंग 73 से घटकर 63 फीसदी पर आ चुकी है. वहीं भारत में ऑरमेक्स मीडिया की ओर से दावा किया गया कि पीएम मोदी की अप्रूवल रेटिंग 50 फीसदी से भी कम हो गई है और अब वो महज 48 फीसदी है.
इन सबका नतीजा ये हुआ कि टूटती छवि को बचाने के लिए पूरी फौज उतारनी पड़ी. इस फौज ने पैरोडी वेबसाइट्स के जरिए लेख लिखवाकर साख बचाने की लचीली कवायद की, लेकिन सोशल मीडिया पर ही उसकी भी पोल पट्टी खुल गई. फिर दूसरा रास्ता अख्तियार किया गया. 18 मई को फिर से सोशल मीडिया का ही सहारा लिया गया. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा की ओर से एक टूलकिट ट्वीट किया गया. दावा किया गया कि इस टूलकिट को कांग्रेस ने तैयार किया है और इस टूलकिट के जरिए कांग्रेस केंद्र की मोदी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने की साजिश रच रही है. संबित पात्रा के बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, स्मृति ईरानी, हरदीप पुरी, अनुराग ठाकुर और प्रह्लाद जोशी ने भी उस टूलकिट को ट्विट किया और उनकी अलग-अलग लाइनें कोट करके कांग्रेस को घेरने की कोशिश की. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी ट्वीट किया. बीजेपी सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे का भी ट्वीट दिखा. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और बीजेपी के फायर ब्रांड नेता तेजस्वी सूर्या भी पीछे नहीं रहे और टूलकिट को ट्विट कर कांग्रेस पर निशाना साध दिया.
कांग्रेस ने कहा कि ये टूलकिट उसका तैयार किया नहीं है. कांग्रेस की ओर से ट्विटर को लेटर भी लिखा गया और कहा गया कि ऐसे अकाउंट्स को सस्पेंड किया जाए, जिन्होंने ये टूलकिट ट्वीट किया है. ट्विटर ने एक भी अकाउंड सस्पेंड नहीं किया. लेकिन उसने बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा और बीजेपी के लिए अखबारों में कॉलम लिखने वालीं शेफाली वैद्य के उस ट्वीट पर मैनिपुलेटिंग मीडिया का टैग लगा दिया. इससे सरकार ट्विटर पर फिर से नाराज हो गई. नोटिस भेज दिया. कहा कि जब भारत की जांच एजेंसियां उस टूलकिट की सत्यता की जांच कर रही है, तो ट्विटर फैसला कैसे सुना सकता है. जबकि यही ट्विटर है, जिसने अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद पर होने के बावजूद उनके ट्वीट्स को मैनिपुलेटिंग मीडिया बताया था और बाद में तो अकाउंट ही सस्पेंड कर दिया था. तब भी डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति ही थे.
लेकिन भारत में ट्विटर को नोटिस भेजा गया. ये नोटिस दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की ओर से भेजा गया था. ट्विटर ने कह दिया कि हम आपको बताने के लिए बाध्य नहीं हैं. ट्विटर इंडिया ने न तो बीजेपी नेताओं के ट्वीट से मैनिपुलेटिंग मीडिया का टैग हटाया और न ही नोटिस का जवाब दिया. फिर 24 मई की रात को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ट्विटर के दिल्ली स्थित लाडो सराय और गुरुग्राम के दफ्तर पहुंच गई. स्पेशल सेल की ओर से कहा गया कि वो तो बस नोटिस की तामील करवाने आए हैं ताकि सही आदमी के पास नोटिस पहुंच जाए. लेकिन अब विपक्ष ने इस पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
तो क्या अब अपनी टूटती छवि को बचाने के लिए केंद्र सरकार ट्विटर से भी दो-दो हाथ करने को तैयार है. इसका जवाब है हां. 25 फरवरी, 2021 को बनाए गए नए सोशल मीडिया कानून तो यही कहते हैं कि अगर ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स सरकार की बात नहीं मानते हैं, तो उनके ऊपर दीवानी और फौजदारी, दोनों तरह के मुकदमे दर्ज किए जा सकते हैं.
जाहिर है कि जिस सोशल मीडिया ने लॉर्जर दैन लाइफ वाली छवि गढ़ी है, अगर उसी सोशल मीडिया पर ये छवि टूटेगी तो कुछ तो करना ही होगा. सरकार और उसके नुमाइंदे यही कर रहे हैं. कोशिश छवि बचाने की है, कोशिश बनी हुई छवि को बनाए रखने की है. इसके लिए वो हर मुमकिन हथियार का इस्तेमाल कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें पता है कि अगर एक बार छवि टूट जाती है और एक बार नकारात्मक धारणा बन जाती है तो भारतीय राजनीति में उस नेता का हश्र राहुल गांधी जैसा भी हो जाता है.
(नोट- उपरोक्त लेख में दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि हमारा न्यूज इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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