अमित त्रिवेदी इंदौर:
जिस तरह से कलेक्टर मनीष सिंह के आदेशों को टारगेट किया जा रहा है। वह यक़ीनन शहर का ही दुर्भाग्य होगा कि खुद शहर की जनता किसी के बरगलाने पर खड़ी हो जाती है। फिलहाल सभी 42 दिनों के लॉक डाउन का हवाला देते हुए इस आदेश पर केंद्रित है। लेकिन मेरा उनसे ही सवाल है कि क्या इन 42 दिनों में कोई खास फर्क देखा गया। जब पुलिस रोकटोक नही रही थी। क्या कुछ लापरवाहों ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए बेवजह घूमना बन्द किया। यही नही क्या जो दुकानदार आज बेचारे बन रहे है उन लोगो ने ईमानदारी से सोशल डिस्टेंस का खुद अपनी जिम्मेदारी समझते हुए पालन किया या करवाया,साहब यह जरूर मानते है कि तमाम सरकारी अफसर जनता के सेवक होते है लेकिन क्या यह जो आदेश निकाला क्या वह कितनो को कोरोना से दूर नही कर देगा। खैर अब बात करते है गैर लोकतांत्रिक की तो साहब देश,प्रदेश और शहर में आपातकाल है। कई लोग मर रहे है। कईयों ने अपनो को खो दिया। यहां जनता के लिए जनता का। वाला फार्मूला अपनाया गया। लेकिन साहब मैं तो जनप्रतिनिधियों से बहुत नाराज हूँ, वह पूरे सालभर से सिर्फ बयानबाजी कर रहे है। जमीनी तौर पर तो सिर्फ सरकारी अफसर और जनता ही जूझ रही है। कोई चुनाव में व्यस्त था,किसी को बयानों से फुर्सत नही थी। ऐसे हालातो में किसी भी जिम्मेदार अधिकारी का ऐसे बयान देते हुए मनोबल गिराना बिल्कुल भी वाजिब नही है। क्योंकि मैं तो अभी भी यह मानता हूं कि यह कलेक्टर,आईजी,डीआईजी, स्वास्थ्य अमला नही होता तो देश का एक भी जनप्रतिनिधि कैपेबल नही था कि वह कोरोना को लेकर जमीनी स्तर पर खुद कुछ कर दें। तो साहब इस तरह से सार्वजनिक रूप से एक सक्रिय,दबंग अधिकारी को आप सिर्फ बयान देते परेशान नही करे। क्योंकि यहां बात राजनीति की नही,न ही अवसर भुनाने की। बात यहां आम जनता की जान की है। इसलिए अब जो कोई कर रहा है उसे सहयोग करे न कि टांग खिंचे। क्योंकि 42 दिनों में यह तो देख लिया कि कोई भी हो वह बिना सख्ती के सुधरने वाला नही।*