हृदेश धारवार,:
भोपाल। पिछले साल मध्यप्रदेश की 27 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा द्वारा दिया गया “शिवराज है तो विश्वास है” का नारा भी दमोह विधानसभा उपचुनाव में दम तोड़ चुका है। यही वजह है कि दमोह में शिवराज है तो विश्वास है का नारा भी कुछ कमाल नहीं दिखा पाया। पिछले विधानसभा उपचुनाव के बाद कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए राहुल लोधी दमोह विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन से 17028 वोट से हार गए। जबकि दमोह उपचुनाव जीतने के लिए भाजपा ने एड़ी चोटी तक का जोर लगा दिया। इसके बाद भी चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं आये। शुरुआत से ही यह माना जा रहा था कि दमोह के शहरी क्षेत्र में भाजपा की स्थिति बहुत नाजुक थी। शहरी क्षेत्र में स्थिति यह है राहुल लोधी जहां रहते वहां का बूथ तक हार गए। भाजपा की तरफ से प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने इस बात को जरूर कहा है कि वे हार के कारणों की समीक्षा करेंगे। राहुल लोधी को जिताने के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। 27 सीटों पर हुए पिछले विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने भोपाल से विजय रथ रवाना किये थे जिस पर ‘शिवराज है तो विश्वास है” का स्लोगन दिया था। लेकिन दमोह की जनता ने शिवराज के प्रति अविश्वास जाहिर किया है।शिवराज के अलावा दमोह में मंत्री भूपेंद्र सिंह और मंत्री गोपाल भार्गव को भी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी दी थी लेकिन दमोह में भूपेंद्र सिंह का चुनावी प्रबंधन भी फेल हो गया। साथ ही दमोह ने यह भी साबित कर दिया कि यहाँ दलबदलुओं के कोई स्थान नहीं है। इस पर पिछले 25 साल से भाजपा कब्जा रहा है,2018 के विधानसभा उपचुनाव में राहुल लोधी ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी। राहुल लोधी के भाजपा में शामिल होने के बाद भी जनता ने अपना विश्वास मत नहीं दिया। भाजपा में अब दबी जुबान ही सही मुख्यमंत्री को बदलने की मांग उठने लगी है। हाल ही भाजपा की पूर्व पदाधिकारी श्रेष्ठा जोशी ने राज्यपाल से मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बदलने की मांग को लेकर फेसबुक पर एक पोस्ट कर दी। जिससे पार्टी में खलबली मच गई। भाजपा ने श्रेष्ठा जोशी से किनारा करते हुए कहा कि पार्टी ने श्रेष्ठा जोशी को डेढ़ साल पहले ही पार्टी से निकाल दिया है। भले ही पार्टी ने श्रेष्ठा जोशी को पार्टी से निकाल दिया हो लेकिन मूल से उनकी विचारधारा तो भाजपा से जुड़ी है। भाजपा में भागवत करने वाले को ही अनुशासन हीनता का दंड भुगतना पड़ता है। इसलिए भाजपा कार्यकर्ता खुले तौर पर विरोध प्रकट नहीं करते।लेकिन पार्टी को दमोह विधानसभा उपचुनाव में हार के हर पहलू की समीक्षा जरूर करनी चाहिए।
*कोरोना संक्रमण बना हार की वजह!*
मध्यप्रदेश में कोरोना संक्रमण की वजह से लोगों की जान जा रही थी और भाजपा के जिम्मेदार दमोह विधानसभा उपचुनाव में व्यस्त थे। प्रदेश की बेकसूर जनता को मौत के मुंह मे धकेलकर सभी मंत्री और विधायक दमोह चुनाव में प्रचार कर रहे थे। कोरोना काल मे लोगों अपनों को बिछड़ते हुए देखा है। पीड़ितों के परिजन अस्पतालों में बेड के लिए, ऑक्सिजन के लिए और दवाई के लिए भटकते रहे लेकिन जिम्मेदारों के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई। वे सत्ता की लोलुपता में ऐसे डूबे की उन्होंने जनता की जान को दांव पर लगा दिया। दमोह विधानसभा उपचुनाव के जो परिणाम सामने आए हैं उसने यह साबित कर दिया कि जनता का ज़मीर अभी जिंदा है,जनता यदि फर्श से उठाकर अर्श पर बैठना जानती है तो अर्श से फर्श पर लाना भी जानती है। मानव इतिहास की इस भयंकर महामारी ने सभी प्रथ्वीमानुस को झकझोर कर रख दिया है। लोग बेउम्मीद हो चुके हैं, भीतर ही भीतर डरे हुए सरकार से उनका विश्वास उठ चुका है। इस प्राकृतिक आपदा में सरकार को सारे काम छोड़कर लोगों की जान बचाने के प्रयास करने चाहिए थे लेकिन सरकार चुनाव में व्यस्त रही। यही कारण है कि मध्यप्रदेश में कोरोना ने भयावह रूप धारण कर लिया। इस उपचुनाव में भी कोरोना की वजह से ही भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है।