रवीश कुमार:
भारत के अख़बारों और चैनलों में सरकार से अब भी सवाल नहीं है। इतने लोगों के तड़प कर मर जाने के बाद भी कोई सवाल नहीं है।
न्यूयार्क टाइम्स ने जो लिखा है उस पर गौर करना चाहिए। सिर्फ़ इसलिए नहीं कि न्यूयार्क टाइम्स ने लिख दिया है । इसलिए कि आप एक पाठक और नागरिक हैं।
1. भारत में कोविड के टास्क फ़ोर्स की महीनों बैठक नहीं हुई अगर ये बात है तो कल्पना नहीं की जा सकती कि कितनी बड़ी लापरवाही है । वैसे भी बैठक होती तो भी काम का यही नतीजा नहीं होता जो आज सामने हैं। बैठक काम के लिए कम प्रेस रिलीज़ के लिए ज़्यादा होती है।
2. न्यूयार्क टाइम्स ने भारत के स्वास्थ्य मंत्री का वो बयान याद दिलाया है कि भारत में महामारी ख़त्म के कगार पर पहुँचगई है। Endgame शब्द का इस्तेमाल किया था।
पूछा जाना चाहिए कि भारत के स्वास्थ्य मंत्री किस वैज्ञानिक आधार पर इसकी घोषणा कर रहे थे ? क्या वो कुछ भी अनाप-शनाप बोलने के लिए स्वास्थ्य मंत्री बने हैं ?
डॉ हर्षवर्धन ने यह मूर्खतापूर्ण बयान तब दिया था जब फ़रवरी महीने में महाराष्ट्र के अमरावती में एक दिन में एक हज़ार केस आ गए थे। अमरावती में 22 फ़रवरी से 1 मार्च तक तालाबंदी की गई थी।
उसके बाद एक और सप्ताह के लिए लॉकडाउन बढ़ाया गया था। यह काफ़ी था किसी भी सरकार को अलर्ट होने के लिए और जनता को अलर्ट करने के लिए।
यही नहीं डॉ हर्षवर्धन कोरोनिल दवा लाँच कर रहे थे। आज उस दवा का नाम तक नहीं ले रहे हैं। कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है। न जाने कितने लोग ख़रीद रहे होंगे। खा रहे होंगे। अगर है तो बताइये देश को फिर टीका को लेकर इतने परेशान क्यों हैं?
यही नहीं 22 फ़रवरी को भाजपा प्रस्ताव पास कर कोविड से लड़ने में सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ करती है। हैं न कमाल। जो महामारी दरवाज़े पर खड़ी थी हम उसके चले जाने का ढिंढोरा पीट रहे थे।
अब आपको पता चलेगा कि देश में क्या हो रहा था? आपके अपने क्यों तड़प कर मर गए ? क्यों आप अस्पताल के लिए भाग रहे हैं और अस्पताल है नहीं। वेंटिलेटर है नहीं। क्योंकि सरकार अपने घमंड में थी।
ये लेखक के अपने विचार हैं,