शहर के दर्जनभर अस्पतालों ने दो माह में कमाया 150 करोड़ से ज्यादा रुपया

 

 

इंदौर. कोरोना का कहर जिस तरह से गहराता जा रहा है, उसी के अनुरूप निजी अस्पतालों की भी मरीजों से जबरिया वसूली कम होने का नाम नहीं ले रही है। वर्तमान में शहर के 12 से अधिक ऐसे अस्पताल है जहां आईसीयू समेत विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध है। इन सभी अस्पतालों ने पिछले दो माह में तकरीबन 150 करोड़ रुपए से अधिक की राशि मरीजों से वसूली है। उल्लेखनीय यह भी है कि यह राशि नकद में आई है और इसका किसी प्रकार का कोई भी हिसाब-किताब नहीं रखा गया है।
वर्तमान में जिस तरह से अस्पताल में मरीजों से अलग-अलग सेवाओं के नाम पर वसूली की जा रही है। इस वसूली के लिए प्रशासन भी पूरी तरह से जिम्मेदार है। नकद में हो रहे इस लेन-देन को लेकर आयकर विभाग के साथ गुड्स एंड सर्विस टैक्स विभाग भी चुप्पी साधे बैठा है। शहर के दो दर्जन डॉक्टर्स ने हाल ही में 50 लाख से 5 करोड़ रुपए तक की जमीनों के सौदे किए हैं यही नहीं इन सौदों में आधी से ज्यादा की राशि ब्लैक में दी गई है। रजिस्ट्रार ऑफिस से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले एक माह में डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ ने ही सबसे अधिक प्रॉपर्टी के सौदे रजिस्टर्ड करवाए हैं।
शहर के एक दर्जन बड़े अस्पतालों में मरीज को भर्ती होने के पहले ही 50 हजार से लेकर 2 लाख रुपए तक की एडमिशन फीस ले ली जाती है। यही नहीं सामान्य बेड के भी 20 हजार रुपए प्रतिदिन के वसूले जा रहे हैं। कुछ अस्पतालों ने तो अपनी कॉरिडोर को ही कोविड वार्ड बना दिया है। वहीं कुछ ने स्टाफ क्वाटर्स को डिलक्स वार्ड बना दिया है। इस तरह से लाखों रुपए की वसूली प्रतिदिन की जा रही है।
ऐसा है गोरखधंधा
एडमिशन के नाम पर 5 लाख से 2 लाख रुपए, इसके पश्चात प्रतिदिन 20 से 25 हजार रुपए प्रतिदिन। इसके अलावा ड्यूटी डॉक्टर्स, विजिटिंग डॉक्टर्स के साथ ही अन्य खर्चों के नाम पर 5 से 10 हजार रुपए लिए जा रहे हैं। यानी एक मरीज भर्ती होता है तो उससे 2 से 3 लाख रुपए वसूली की जाती है।
अब तक 5 हजार भर्ती
शहर में पिछले दो माह की बात करें तो बड़े अस्पतालों में तकरीबन 5 हजार मरीजों को भर्ती किया गया था। इनसे वसूली का आंकड़ा निकाला जाए तो यही आंकड़ा 100 करोड़ के आसपास है। इसी तरह से बीमार मरीजों को सलाह देने, दवाइयों और अन्य खर्च के 50 करोड़ रुपए इसमें जोड़ दिए जाते तो यह आंकड़ा 150 करोड़ के आसपास है।
कुर्क होते-होते बचा अस्पताल
विजय नगर स्थित एक अस्पताल ऐसा भी है जो कोराना महामारी के पहले बैंक में गिरवी रखा हुआ था। बैंक इस पर कुर्की के नोटिस लगाने वाली थी। कोराना महामारी के बाद इस अस्पताल में इलाज के लिए मरीजों की लाइन लगने लगी और आज हालात यह है कि इस अस्पताल ने अपना पूरा कर्जा उतार लिया है।
70 करोड़ का प्लॉट खरीदा
एबी रोड पर एक चर्चित हॉस्पिटल है, जिसे कोराना काल में सबसे महंगा अस्पताल कहा जा सकता है। पिछले आठ माह में इस अस्पताल में कभी-भी आईसीयू यूनिट खाली ही नहीं रही। वर्तमान में इस अस्पताल ने अपने पास के एक प्लॉट को 70 करोड़ रुपए में खरीदा है और यहां अस्पताल का विस्तार किया जाएगा।
प्रशासन मौन
इन सबके बीच हमारा प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है। उन्हें न तो मरीजों की दवाइयों-ऑक्सीजन की चिंता है और न ही उनके जीने-मरने की। जिस व्यक्ति के पास पैसा है वो ही अपना इलाज करवा पा रहा है। प्रशासन की खामोशी कई सवाल खड़े करती है। इस के साथ जनप्रतिनिधि की निष्क्रियता भी गड़बड़ी की ओर इशारा कर रही है।
*राजेश जोशी, सम्पादक, फैथ टाइम्स*

Shares