कहो तो कह दूँ – प्यारे “रेमेडेसिवर” तुम तो ऐसे गायब हुए जैसे चुनाव जीतने के बाद “नेता”

 

 

कहो तो कह दूँ – प्यारे “रेमेडेसिवर” तुम तो ऐसे गायब हुए जैसे चुनाव जीतने के बाद “नेता”

चैतन्य भट्ट:

पूरे प्रदेश में हाहाकार मचा हुआ है, लोग सुबह से रात तक सिर्फ तुम्हें ही ढूंढ रहे हैं, हर दूसरा आदमी सोते जागते तुम्हारा ही नाम रट रहा है, सरकार भी हलाकान है कि तुम्हें कंहा से ढूंढ कर लाये l दवाइयों की दुकानों के सामने भीड़ लगी हुई है, जिस के हाथ में तुम आ जाते हो वो तुम्हे अपने सीने से लगा लेता है ख़ुशी से ऐसे नाचता है जैसे उसे “भारत रत्न” मिल गया हो या फिर “कुबेर का खजाना” हाथ लग गया हो ,हाल ये है कि किसी से कह दो कि तुम्हारी एक करोड़ की लॉटरी लगी है तो उसे उतनी ख़ुशी नहीं मिलती जितनी इस बात को सुन कर होती है कि तुम्हे एक “रेमेडेसिवर” का इंजेक्शन मिल गया है, समझ में नहीं आता कि तुम गायब हो कहाँ , तुम तो ऐसे गायब हो गए हो जैसे चुनाव जींतने के बाद नेता, जैसे चौराहे से ट्रेफिक पुलिस, जैसे सरकारी दफ्तरों से लंच के बाद बाबू, जैसे उधार लेने के बाद उधारी वापस करने वाला, जैसे नगर निगम के नल से आने वाला पानी l देखो “रेमेडेसिवर” इस वक्त तुम ही सब कुछ हो “तुम्ही तो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बन्धु सखा तुम्ही हो”, इसलिए जंहा कंही भी छिपे हो जिस भी गोदाम में छिपे बैठे हो, खुले बाजार में आ जाओ, क्योकि तुम ही तो हो जो कोरोना से लड़ने की हिम्मत रखते हो वरना कोरोना के सामने तो सबने अपने अपने हथियार डाल दिए हैं लेकिन लोगों को आज भी तुम पर भरोसा है कि यदि तुम उनके साथ होंगे तो कोरोना का बाप भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता l तुम्हें पाने के लिए लोग बाग़ अठारह हजार रूपये तक देने तैयार हो गए जबलपुर में, जबकि तुम्हारी कुल जमा कीमत पांच या छह हजार रुपये है l हमने तो बरसों पहले ये सुना और देखा था कि जब कोई सुपरहिट फिल्म सिनेमाघरों में लगती थी तब टिकट ब्लेक होती थी, पर तुम भी ब्लेक में बिक रहे हो ये कभी सोचा न थाl प्यारे “रेमेडेसिवर” तुम जंहा कंही भी हो तत्काल से पेश्तर लौट आओ तुम्हे कोई कुछ नहीं कहेगा, भले ही तुम इतने दिन गायब रहे हो, कोरोना के मरीज तुम्हारे बिना तड़फ रहे हैं उनकी हर सांस तुम पर ही अटकी हुई है, जैसे ही कोई खबर तुम्हारे बारे में सामने आती है कि तुम “अवेलेबल” हो उनकी साँसे तेज तेज चलने लगती हैंl आखिर कब तक तड़फाओगे तुम इन मरीजों को , जैसे भी हो जल्द से जल्द उनके पास पंहुच जाओ ताकि उन लोगों की जान बच सके l कोरोना के तमाम मरीज एक ही स्वर में ये गाना गए रहे हैं “तू छुपा है कँहा हम तड़फते यँहा, तेरे बिन सूना सूना है दिल का जंहा तू छुपा है कहाँ” l

मनोज जी और आध्यात्म

कहते हैं लोगों का जीवन जब उत्तरार्ध में आता है तब उनका जीवन से मोह ख़त्म हो जाता हैं उनका ध्यान आध्यात्म क़ी तरफ जाने लगता है, सारी जिंदगी माया मोह के चक्कर में पड़े रहने के बाद अंतिम समय में आध्यात्म की खोज में जुट जाते हैं लोग, लेकिन अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह यानी मामाजी बड़े ही दूरदर्शी निकले उन्होंने “पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग” के अतिरिक्त मुख्य सचिव “मनोज श्रीवास्तव जी” को वंहा से हटा कर उन्हें “आध्यात्म” विंभाग का सर्वेसर्वा बना दिया और वो भी कब जब मनोज जी के रियाटर होने में कुल जमा इक्कीस दिन बचे हैं, मामाजी ने सोचा होगा मनोज जी को कब तक इन “पंचायतों” में “इन्वॉल्व” करा के रखें रिटायर होने क़ी कगार पर हैं बाद में आध्यात्म की तरफ जाएंगे ही इसलिये उसके पहले ही उन्हें आध्यात्म विभाग की बागडोर सौंप दो, बीस इक्कीस दिन में आध्यात्म का थोड़ा बहुत अनुभव तो हो ही जायेगा, वैसे मनोज जी भी कुछ लेखक किसम के आदमी हैं कुछ किताबे भी लिखी हैं ऐसा पता चला हैं लेखक हैं तो आध्यात्म में उनकी रूचि रही होगी ये बात अलग है कि जब तक अफसर पद पर है ये आध्यात्म व्याध्यात्म की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता जब सब कुछ छिन जाता है तब आदमी आध्यात्म की खोज में निकलता हैंl वैसे मनोज जी आप परेशान मत हो, आजकल आध्यात्म में भी अच्छा ख़ासा स्कोप हैं बेंगलूर के “इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्प्रिचुअलिटी” जैसे और भी संस्थान आध्यात्म में डिप्लोमा और डिग्री कोर्स चला रहे है उनका मानना है कि आने वाला समय “स्प्रिचुअल कंसल्टेंट” या “आध्यात्म गुरु” का होगा तो फिर किस बात की चिंता है जब तक रिटायर नहीं होते बीस बाइस दिन आध्यात्म को समझा लो और फिर उसमें डिप्लोमा या डिग्री कोर्स कर आध्यात्म गुरु बन जाओ शुरुआत में ही पच्चीस से तीस हजार की कमाई हो जाती है ऐसा इन इंस्टीटयूट वालों का कहना है, और फिर “एकाध लाख” के आसपास पेंशन तो बनेगी ही इसलिए अब सरकार से नाता तोड़ो और आध्यात्म से नाता जोडो मनोज जी इसी में फायदा हैं और मामाजी का धन्यवाद अदा करना न भूलना कि उन्होंने पहले से ही आपको आध्यात्म की राह दिखा दी l

सुपर हिट ऑफ़ द वीक

श्रीमान जी बड़ी देर से अपने “मैरिज सर्टिफिकेट” को घूर घूर कर देख रहे थे

श्रीमती जी से रहा नहीं गया, उन्होंने पूछा “आखिर इतनी देर से इसमें क्या देख रहे हो”

“इसकी “एक्सपायरी डेट” ढूंढ रहा हूँ” श्रीमान जी ने उत्तर दिया

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