बांसुरी की धुन पर मुग्ध गायों का बढ़ता है दूध,

 

नई दिल्ली  । सनातन धर्म से संबंधित प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन सुनते ही गायें मुग्ध हो जाती थीं। अब हाल ही राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) में चल रहे अध्ययन में खुलासा हुआ है कि बांसुरी की धुन सुनने के बाद गायें ज्यादा दूध देती है। NDRI में ज्यादा दूध देने के लिए गायों को तनाव मुक्त रखा जा रहा है और म्यूजिक थेरेपी दी जा रही है।

रोज आठ घंटे सुनाते हैं गायों को बांसुरी की धुन

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में रोज 8 घंटे बांसुरी का संगीत (रिकार्डेड) सुनाया जाता है और सभी गायें मुग्ध होकर आंखें बंदकर सुनती हैं। कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के आकलन एवं इसके निराकरण रणनीतियों के विकास के लिए एक राष्ट्रीय योजना ‘जलवायु समुत्थानशील कृषि पर राष्ट्रीय पहल’ (नेशनल इनिशिएटिव इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर) यानी निकरा के क्रियान्वयन को फरवरी, 2011 में स्वीकृति प्रदान की गई थी। इस स्टडी प्रोजेक्ट में आ रहे परिणाम से विज्ञानी उत्साहित हैं।

दूध उत्पादन में हुई वृद्धि

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह न सिर्फ कृषि बल्कि दुधारू पशुओं के शारीरिक विकास उनके दुग्ध उत्पादन में वृद्धि व उनकी गुणवत्ता कायम रखने में भी प्रभावी होगा। जलवायु परिवर्तन का दुधारू मवेशियों पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिसे देखते हुए राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. आशुतोष ने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया।

20 माह तक की 36 गायों पर अध्ययन

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आशुतोष ने शोध के बारे में बताया कि डेढ़ माह से चल रहे प्रयोग में मुख्य रूप से साहीवाल और थारपारकर नस्लों की 20 माह तक की 36 गायों पर अध्ययन किया जा रहा है। इसके तहत उनकी आहारचर्या, विकास, शरीर के तापमान से लेकर हार्मोन में बदलाव तक पर बारीकी से नजर रखने के साथ डाटा जुटाया जा रहा है।

गोशाला में लगा दिए हैं स्पीकर

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आशुतोष ने बताया कि गोशाला में लगे स्पीकर के जरिये प्रतिदिन 8 घंटे तक बांसुरी का अत्यंत मधुर संगीत सुनाया जाता है। सभी गाय न केवल इन्हें पूरी तन्मयता से सुनती हैं, बल्कि तनाव मुक्त रहने से उनकी ग्रोथ व दुग्ध उत्पादन में शानदार नतीजे मिल रहे हैं। इस संबंध में इकट्ठा किए गए डाटा के आधार पर जल्द ही विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी, ताकि इस शोध के आधार पर मवेशियों को बेहतर पोषण देने के साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं से बचाया जा सके।

पशुओं के शारीरिक तापमान से दूध उत्पादन प्रभावित

तनाव मुक्त रखने पर फोकस डॉ. आशुतोष ने बताया कि पशुओं में तनाव का प्रमुख कारण शारीरिक तापमान में उतार-चढ़ाव है। तापमान के कारण ही पशुओं की शारीरिक ग्रोथ प्रभावित होती है। तनाव मुक्त रहने से उनकी सेहत, दुग्ध उत्पादन व प्रजनन क्षमता सहित गुणवत्ता बढ़ती है। प्रोजेक्ट में इसी पर फोकस है। म्यूजिक थैरेपी का प्रभाव आंकने के साथ प्रोजेक्ट में ब्लड सैंपल, हार्मोन, शारीरिक परिवर्तन और अन्य पैरामीटर भी परखेंगे। प्रयोग सफल रहने पर किसानों में नालेज अपडेट करेंगे।

संगीत बदलते ही बेचैन हो जाती है गायें

शोध के दौरान यह भी देखा जा रहा है कि ये गाय किस प्रकार का बांसुरी का संगीत सुनना पसंद करती हैं, जिससे उनके पोषण और उत्पादकता में वृद्धि संभव हो। फिलहाल उन्हें बांसुरी का मधुर संगीत सुनाया जा रहा है, जो उन्हें तनाव मुक्त रखता है। प्रयोग के तहत यदि संगीत बदलते हैं तो उनकी प्रतिक्रिया बेचैनी के रूप में सामने आती है।

तबला, गिटार की धुन पसंद नहीं

शोध में यह भी पता चला है कि तबला, गिटार का संगीत भी गायों को नहीं भा रहा है। डा. आशुतोष ने बताया कि प्रोजेक्ट से पता चला है कि इनकी चारा खाने की क्षमता बढ़ी है। संगीत सुनकर पशु आंख बंद करके शांत अवस्था में तनाव मुक्त होकर जुगाली करता है। पशुओं में प्रेम भाव व तालमेल बढ़ा है। सुबह जब इन्हें खोलते हैं तो कोई भी आपस में नहीं लड़ता। सबसे बढ़िया बात यह है कि इनका वजन भी बढ़ रहा है।

– प्रोजेक्ट से अच्छे परिणाम मिलने की उम्मीद है। पशुओं को तनाव मुक्त रखने से ढेरों लाभ हैं। इनका अध्ययन किया जा रहा है। प्रोजेक्ट सफल रहने पर इसके निष्कर्ष से पशुओं की ग्रोथ, दुग्ध उत्पादन व प्रजनन क्षमता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। – डॉ. मनमोहन सिंह चौहान, निदेशक, एनडीआरआइ, करनाल

 

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