साइंटिफिक-ऐनालिसिस: किसान आंदोलन को ऐतिहासिक बनाने को तुली केंद्र सरकार व उसके मंत्रीगण ….

 

 

?साइंटिफिक-ऐनालिसिस

किसान आंदोलन को ऐतिहासिक बनाने को तुली केंद्र सरकार व उसके मंत्रीगण ……

परन्तु संकेतो को नहीं समझ पा रहे किसान

लाखो लोगो के समर्थन व समूहन से ये आन्दोलन ईतिहास के पन्नों पर अपनी स्थाई लकीरे खींच चूका है परन्तु केंद्र सरकार, केंद्रीय मंत्रीगण एवं कई राज्यों के मंत्रियो सहित तथाकथित हमारी पार्टी की सरकार कहने वाले नेतागण इसे ऐतिहासिक बनाने पर तुले हुए है परन्तु किसान लोग संकेतो को समझ नहीं पा रहे है इसलिए मामला बातचीत के लिए भी फस रहा है ।

सरकार में बैठे नेताओ ने पहले मुँह मरोड़कर किसानो को आंदोलन के लिए प्रेरित किया फिर ना सुनकर उनके दिल्ली आने के लिए कार्पेट बिछाया …. इसके पश्यात उन्हें बॉर्डर पर रोककर यह मुँह और मसूर की दाल जताकर उसे राष्ट्रिय स्वरूप देने का सफल प्रयास किया। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इसके राष्ट्रिय आंदोलन होने की बात मानी है ।

मंत्रीगण व जनप्रतिनिधि आये रोज मीडिया की बैशाखियों का सहारा ले आंदोलनकारी किसानो को खालिस्तानी, आतंकी लोगो से निर्देशित, वामपंथी सोच, विद्रोही यानी विपक्ष द्वारा चलाया आंदोलन, मुठी भर लोगो की सोच, कई किसानो के संगठन उसके साथ खड़े होने का दावा, कोरोना वायरस फैलाने का षड़यंत्र इत्यादी – इत्यादि से अलंकृत कर रहे है। इसके साथ साथ अपनी क़ानूनी ताकत व अपनी – अपनी पार्टी की आईटी सेल के माध्यम से इसे व इनके खाने, सोने, फ्री में बाँटने व रहने के निजी तरीको को भी वायरल कर रहे है ।

इन सभी बयानों को आंदोलनकारी किसानो की कमेटी उनके किसान आंदोलन में फूट डालने, हर आपदा में फ्री बटने वाले लंगर के खाने पर पानी फेरने, लोगो की मन से करी सेवा का प्रतिफल माथे पर आतंकी चस्पा करके, अपने ही बेटो (सैनिक, पुलिस) से डंडे पड़वा के सरकार पर आंदोलन ख़त्म करने का आरोप लगा रहे है। दोनों पक्षों के ऐसे दृष्टिकोण से बातचीत का मार्ग भी अवरुद्ध हो चुका है ।

किसान क्रमिक अनशन करके प्रधानमंत्री को उनके गृह राज्य व जन्मभूमि गुजरात के महात्मा गाँधी के सिद्धांत व नैतिक तरीको की याद दिला रहे है जबकि आंदोलन के उद्भव राज्य पंजाब के शहीद भगत सिंह के सिद्धांत को पीछे रखकर अपनी जन्मभूमि नजअंदाज करने की गलती कर रहे है। इसके विपरीत प्रधानमंत्री गुरुद्वारे में जाकर माथा टेक आशीर्वाद मांग रहे है कि उन्हें भी किसानो जैसी शक्ति, सामर्थ्य व शारीरिक क्षमता दे ताकि वो भी शून्य के करीब सर्द दिनों व रातो में सड़क पर खुले आसमान में रहकर काम कर सके ।

सरकार व मंत्रीगण अपने कटु बयानों से कड़वी गोली की तरह किसानो को संकेत दे रहे है कि वो अपने आंदोलन स्टेज पर लगातार एक एक करके उनसे जुड़े किसानो से मंत्रियो की तरह शपथ दिलाये जिसमे नाम के आगे किसान शब्द के साथ भारत का सपूत व प्रदेश का नाम हो व अपने आप को किसी भी राजनैतिक दल का सदस्य न होने या उसे छोड़ देने का जिक्र हो और उनके पिछले जीवन के कृत्यों का कानून इस आंदोलन से कोई लेना देना नहीं हो, अदालत व सरकार उसके लिए सजा दे या अवार्ड दे। यह शपथ किसान से सम्बंधित धर्म की अलग अलग धार्मिक पुस्तक पर हाथ रखकर होनी चाहिए ताकि अदालतों की मर्यादा बनी रह सके ।

इससे मीडिया को भी कुछ दिखने का अवसर मिल जायेगा और गोदी मीडिया से बदनाम नकली पत्रकार उनको दिखाने के लिए टूट पड़ेगे व आधुनिक तकनीकों और भौतिक सुख सुविधाओं से सुसज्जित आफिसों में बैठे अधिकारीगण उसे देख वास्तविकता को समझ पायेंगे ताकि सरकार को इतनी तेज सर्दी में बाहर निकले बिना सही जानकारी दे पाये ताकि छोटी छोटी बातो को लेकर जुबानी टकराव से बचा जा सके ।

शपथ लेने वाले किसान व समर्थक (सभी कार्यक्षेत्र) के शरीर पर चुनाव की तरह स्याही का लम्बे समय तक नहीं मिटने वाला निशान लगाना चाहिए व उनकी संख्या घडी के समान प्रदर्शित होने चाहिए जिससे राजनेताओ को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की मर्यादा बनी रहने का विश्वास हो जाये व उनके वोट बैंक की तकलीफो व दबाव से बचने का मार्ग मिल जाये। यदि किसानो की संख्या ज्यादा है तो एक साथ कई आंदोलन स्थलों पर शपथ करवा सकते है। राज्यपाल भी अलग अलग प्रदेशो में मंत्री पद की शपथ दिलवाते ही है। शपथ का फोटो व वीडियो हर आंदोलनकारी को देना चाहिए ताकि व अपने सोशल मीडिया पर डालकर एक ऐतिहासिक आंदोलन क हिस्सा होने से गौरवान्वित हो सके ।

सड़क पर जहा किसानो को रोक रखा है वहाँ से निकलने वाले हर वाहन चालक और व्यक्ति से भी शपथ दिलवाये तो सोने पर सुहागा हो जायेगा । स्याही के इस निशान से सुरक्षाकर्मियों को अपने काम करने में आसानी होगी क्योकि उन्हें आसानी से पता चल जायेगा की वो आतंकवादी नहीं है व वीडियो इंटरनेट पर होने से उनको ऑनलाइन सबूत तुरंत मिल जायेगा ताकि पहचान पत्रों के ढेर को जांचने से मुक्ति मील जाये। आंदोलन के डिजिटल होने से मेरी सरकार करने वाले नेता भी खुश आख़िरकार सरकार के डिजिटल इण्डिया का सपना साकार हो रहा है। आंदोलन के समर्थन में जो भी चर्चित चेहरा आये उससे भी शपथ दिलवाये ताकि जातपात, ऊच-नीच, अलग अलग गुटबाजी, अलग अलग कार्यक्षेत्रों में अंग्रेजो द्वारा फूट डालो राज करो के सिद्धांत से बटे देशवाशियो को एक समान रूप व अधिकार से देखा जा सके ताकि सरकार पर बातचीत के दौरान प्रतिनिधियों द्वारा पक्षतापूर्ण रवैये के आरोप लगने के डर से मुक्ति मील जाये ।

भारत के राष्ट्रपति महोदय के पास किसान आंदोलन की जानकारी कानून पहुंच गई है व दो करोड़ किसानो के साईन वाले दस्तावेजों से कंफ्यूज हो गये है और इतने लोगो के दस्तावेजों को प्रमणित करने के कारण अपने 400 कमरे के महलनुमा भवन से निकलना तो दूर झाँक भी नहीं पा रहे है। इसलिए औसतन प्रतिदिन एक किसान की मोत के बाद भी देश के प्रथम नागरिक के दायित्व को भी भूल गये है। शपथ से डाटा ऑनलाइन होने से उन्हें लाखो की तनख्वाह में करोडो वाले जांचने वाले काम से मुक्ति मील जायेगी ।

हम नये बने तीन कृषि कानूनों पर किसी के पक्ष में नहीं है, दोनों पक्षों की बातो में जो सही है उसके साथ है व इस इन्तजार में है कि संसद के द्वारा जनता के नौकरों के माध्यम से कोई भी कानून बन जाने के पश्च्यात उसको हटाने व कमियों को दूर करने के लिए संविधान के अनुसार देश के मालिक यानि आम लोगो की समझ व परेशानियों के भुगतभोगी होने पर उनके आदेशों या मांग को कानून में विधिवत शामिल करने के लिए कौनसी व्यवस्था बनाई जाती है ताकि प्रत्येक आंदोलन जो मूल रूप से कानून के बनने, हटाने या बदलने से होते है उस लोकतंत्र की सबसे बड़ी समस्या को सदैव के लिए ख़त्म किया जा सके ।

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