आरिफ मसूद का एजेंडा….

प्रकाश भटनागर :-

आरिफ मसूद का एजेंडा पूरा हो गया है। कोई बात नहीं कि प्रदेश में उनके खिलाफ एक और प्रकरण दर्ज हो गया। इससे भी भला क्या फर्क पड़ता है कि उदारवादी इस्लामिक विचारक तारिक फतेह ने मसूद की इस अनुदारवादी सोच के लिए उन्हें फटकार दिया हो। और खैर ये बात तो मसूद सहित उनके समर्थन में गुरूवार को इकबाल मैदान में उमड़ी भीड़ में से किसी के लिए भी मायने नहीं रखती होगी कि आतंकवाद के खिलाफ फ्रांस के रुख को भारत की ही सरकार ने समर्थन दिया है

आरिफ मसूद ने फ्रांस में कट्टरपंथियों के खिलाफ वहां की सरकार और जनता के एकजुटता के खिलाफ प्रदर्शन किया। अगर इस घटनाक्रम के विजुअल्स से भोपाल की पहचान छिपा दी जाए तो कुछ पल के लिए आप यह भ्रम भी पाल सकते थे कि मामला फ्रांस के खिलाफ किसी मुस्लिम देश में हुए प्रदर्शन का है। निश्चित ही मसूद का केंद्र की विरोधी पाटी कांग्रेस में होना महत्व रखता है, किन्तु क्या इसके लिए देश के ही खिलाफ चला जाना उचित है? इस सवाल का जवाब कांग्रेस से भी मांगा जाना चाहिए।

मसूद उस राष्ट्रीय नीति का विरोध कर रहे हैं, जिसके जरिये देश की सुरक्षा और बाहरी मुल्कों के साथ ताल्लुकात के जरिए देश की ही समृद्धि का भी मार्ग तलाशा जाता है। अपनी कौम के हक में आवाज उठाना गलत नहीं है, लेकिन क्या इकबाल मैदान वाली उस भीड़ में से एक के भी मुंह से उन तीन लोगों के लिए ‘उफ’ निकला होगा, जिन्हें फ्रांस में एक कट्टरपंथी ने चर्च के बाहर मार डाला! वे तीनों भी इंसान थे। उनमें एक ऐसी मां भी शामिल थी, जिसके दो बेकसूर बच्चों के सिर से ममता का आँचल छीन लिया गया।

कुछ फिक्र उनकी भी कर ली जाती तो मान लेते कि इकबाल मैदान का वह समूह वाकई मानवीय चिंतन की भावना से ओतप्रोत था। निश्चित ही किसी धर्म के आराध्य का कार्टून बनाना या फिर सोद्देश्य उसकी नुमाइश करना गलत है। हिन्दुओं ने भी मकबूल फिदा हुसैन की कूची से निर्वस्त्र की गयी अपनी देवियों के अपमान का दर्द सहा है। हरियाणा में धर्म न बदलने पर किसी निकिता की एक तौसीफ द्वारा दिनदहाड़े हत्या का दुख वह झेल रहे हैं। इन तीनों ही मामलों से दुखी लोगों के लिए सहानुभूति है।

मगर विरोध जताने से पहले हम यह भी तो देखें कि इसके लिए क्या वाकई हम संजीदा हैं? यदि हैं तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कोरोना के नित-नए मामले सामने आने के बावजूद हम हजारों लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करें। खुद को भीड़ वाला नेता बताने के जूनून में सोशल डिस्टेंसिंग सहित कोरोना से बचाव के सभी उपायों से परे कर दें। आरिफ मसूद पर इसके लिए केस दर्ज किया ही जाना चाहिए था। यहां शिवराज सिंह चौहान का कहा भी समर्थन योग्य है कि सरकार ऐसे किसी भी काम को सहन नहीं करेगी। प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा के इस सवाल में भी दम है कि ऐसे किसी प्रदर्शन का आखिर भोपाल में क्या औचित्य है? लेकिन मसूद को ऐसे किसी सवाल का जवाब देने की जरूरत नहीं है। उन्होंने खुद को एक खास सोच वाले मुस्लिमों का नेता साबित कर दिया है और इसके जरिए उनका एक खास हिडन एजेंडा पूरा हो गया है।

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