कोरोना काल में बच्चों पर इस संक्रमण का सबसे ज्यादा असर हुआ है। भले ही हर बच्चा इसकी चपेट में नहीं आया, लेकिन इसके कारण वह घर से बाहर नहीं निकल पा रहा है। स्कूली पढ़ाई से लेकर मनोरंजन तक के लिए वह ब्ल्यू स्क्रीन (मोबाइल और टीवी) पर ही निर्भर हो गया है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि पिछले डेढ़ से दो माह में डॉक्टरों के पास आंखों से संबंधित समस्या लेकर आने वाले बच्चों की संख्या में तीन गुना तक का इजाफा हुआ है। बच्चों में सामान्यतौर पर आंखों में दर्द, रूखापन और सिरदर्द की समस्या बढ़ी है। कई मामले तो ऐसे भी आए हैं जिनमें बच्चे ब्ल्यू स्क्रीन के सामने 10 से 12 घंटे बिता रहे हैं। आंखों से संबंधित समस्या से जूझने वालों में छह से 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा हैं।
एंटीग्लेयर ग्लासेस लगाएं
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुधा भाटिया के अनुसार, ब्ल्यू स्क्रीन के कारण बच्चों में नेत्ररोग संबंधी मामलों में तीन से चार गुना तक इजाफा हुआ है। बच्चे जब ऑनस्क्रीन होते हैं तो पलक भी नहीं झपकाते, जिससे उनकी आंखों में रूखापन आ जाता है। जिन बच्चों को चश्मा नहीं लगा है इस वक्त माता-पिता उन बच्चों को एंटीग्लेयर ग्लासेस लगवाएं। इससे आंखों को अपेक्षाकृत कम हानि पहुंचेगी। हर क्लास के बाद आंखों को 15 से 20 मिनट का आराम दें।
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. महेश अग्रवाल के अनुसार, इस दौर में बच्चों में आंख और सिरदर्द की समस्या बढ़ी है। इससे छह से 14 वर्ष तक के बच्चे ज्यादा जूझ रहे हैं। इस उम्र के बच्चे अपना भला-बुरा नहीं समझते और अभिभावक भी उन्हें व्यस्त रखने के लिए टीवी या मोबाइल दे देते हैं। ये बच्चे 10 से 12 घंटे स्क्रीन के सामने गुजार रहे हैं। ऐसे में इन बच्चों की दूर की नजर कमजोर होने की आशंका प्रबल है।
धुंधलापन, रूखापन हो रहा हावी
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. किशन वर्मा के अनुसार, वर्तमान में जितने बच्चे आ रहे हैं सभी को अमूमन आंखों में रूखापन, धुंधला दिखना, सिरदर्द, आंसू आना जैसी समस्या हो रही है। इससे बचने के लिए बच्चों को बार-बार आंखें धुलवाएं, मोबाइल के बजाए स्मार्ट टीवी पर क्लास अटेंड करवाएं। माता-पिता पीडीएफ पहले खुद कागज पर उतार दें फिर बच्चों से उसे करवाएं।