भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी शनिवार दिनांक 22 अगस्त को चतुर्थी तिथि मध्यान्ह व्यापिनी रात्रि 7.57 बजे तक है । अतः इसी दिन सिद्धि विनायक गणेश जी का पुजन एवं व्रत होगा। गणेश जी का जन्म वृश्चिक लग्न में हुआ था। वृश्चिक लग्न दोपहर 12.31 बजे से 2.49 बजे तक है, सूर्योदय से हस्त नक्षत्र जिस का स्वामी चंद्रमा है, रात्रि 7.10 बजे तक है । रवि योग सुबह 6.5 बजे से रात्रि 7.52 बजे तक श्रेष्ठ योग है, भद्रा सुबह 9.29 बजे से रात्रि 7.57 बजे तक की पाताल लोक की शुभ धन लाभ देने वाली है, महा गणपति पुजन का मध्याह्न काल 11.12 बजे से दोपहर 1.46 बजे तक, अभिजित मुहुर्त दिन में 12.5 बजे से 12.53 बजे तक श्रेष्ठ समय है। मनु ज्योतिष एवं वास्तु शोध संस्थान टोक के निदेशक बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि, चौघडिया अनुसार शुभ का सुबह 7.41 बजे से 9.17 बजे तक चर का दोपहर 12.29 से लाभ का 2.6 बजे से, अमृत का 3.42 बजे से 5.17 बजे तक लगातार है, जिस में पुजन किया जाना शुभ है, मानव शरीर में पांच ज्ञानेंद्रियाँ पांच कर्मेन्द्रियां एवं चार अन्तः करण है इन के पिछे जो शक्तियां है उनही को चौदह देवता कहते हैं इन देवताओं के मुल प्रेरक भगवान श्री गणेश अग्रणीय पुजनीय है। बाबूलाल शास्त्री ने बताया कि गणेश जी के वृश्चिक लग्न में द्वितीय भाव में सर्वग्रही बृहस्पति पराक्रम भाव में उच्च के मंगल पंचम भाव में उच्च के शुक्र, राहु ,सप्तम में उच्च का चन्द्रमा दशम में सर्वग्रही सूर्य लाभ भाव में उच्च के बुध केतु, मोक्ष भाव में उच्च के शनि बैठे है, जो लग्नेश पंचमेश नवमेश का लक्ष्मी योग धन दायक है, वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु दोष में गणेश जी की मूर्ति आशीर्वाद देते हुये या बैठे हूये की ब्रहम चोक में लगानी चाहिए, गणेश जी की मुख्य द्वार पर , एवं उसकी पीठ पिछे बामव्रत एवं दक्षिणावर्त मूर्तिया स्थापित करनी चाहिए जिससे नकारात्मक ऊर्जा बाहर जाती है एवं सकारात्मक ऊर्जा अंदर जाती है। गणो के सेनापति जो गणपति है मंगलनाथ स्वयं मंगल ग्रह है जो सभी कष्टों के संहारक है !