भोपाल, 15 अगस्त 2020,
प्रदेशवासियों को स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं । मुझे पूरी उम्मीद है कि
जिस तरह जनमत को नकार कर हथियाई हुई सरकार की पराधीनता की बेड़ियों में
मध्यप्रदेश जकड़ा हुआ है, जल्द उपचुनावों के बाद स्वाधीन होगा और पुनः
‘अवरुद्ध विकास की विपन्नता’ से ‘प्रगति के प्रशस्त मार्ग’ पर लौट आएगा।
आज मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी का स्वाधीनता दिवस के अवसर पर
उद्बोधन सुना। हमेशा की तरह उनका भाषण झूठ की बुनियाद पर आधारित था तथा
ज़मीनी सच्चाई से कोसों दूर था।
नेतृत्व हमेशा प्रतिकूल परिस्थिति में परखा जाता है। ये हमेशा याद रखा
जाएगा कि जब मध्यप्रदेश महामारी की विभीषिका से जूझ रहा था तब भारतीय जनता
पार्टी की सरकार प्रदेश के नागरिकों की मदद करने की अपेक्षा राजनैतिक
रैलियों और प्रचार में व्यस्त थी और प्रदेश को महामारी की आग में झोंक दिया
था ।
विडंबना देखिए , शिवराज जी वर्षों से अपने भाषणों में ‘स्वर्णिम
मध्यप्रदेश’ , ‘समृद्ध मध्यप्रदेश’ की बात करते हैं और ख़ुद को ‘बेटियों
का मामा’ , ‘आदिवासियों का भाई’ कहते हैं ,मगर जिस बात और वर्ग के लिए
जितनी ज़ोर से भाषण दिया वो वर्ग उतना ही गर्त में चला गया ।
‘समृद्ध और स्वर्णिम’ मध्यप्रदेश का हाल देखिए :
मध्यप्रदेश में भाजपा के 15 वर्षों के शासन की उपलब्धियां यह थीं कि 80
लाख़ परिवार अर्थात् लगभग आधी आबादी के पास गरीबी रेखा के कार्ड थे। 68.25
लाख़ लोग मनरेगा की मज़दूरी के लिए पंजीकृत थे । प्रतिव्यक्ति आय में
मध्यप्रदेश 27 वें स्थान पर था । ख़ुद को मामा प्रचारित करने वाले
मुख्यमंत्री जी के समय में 48 लाख़ बच्चे कुपोषण का शिकार थे । नवजात शिशु
की मृत्यु सबसे ज़्यादा मध्यप्रदेश में होती थी । 72 प्रतिशत स्कूलों में
बिजली के कनेक्शन तक नहीं थे । बेटियों के साथ बलात्कार सबसे ज़्यादा
मध्यप्रदेश में हुए थे। आदिवासी भाइयों के हाल ये थे कि वनाअधिकार के
पट्टे सबसे ज़्यादा शिवराज सरकार में निरस्त हुए और आज मध्यप्रदेश के
आत्ममुग्ध मुख्यमंत्री झूठ की भरमार से भरा ‘आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश’ का
नया स्वप्न परोस रहे हैं ।
आज के उद्बोधन में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने जो
ज़्यादातर उपलब्धियां बताई हैं , उन्हें सैद्धान्तिक रूप से कांग्रेस की 15
माह की सरकार में क्रियान्वित या स्वीकृत किया गया है । जैसे आदिवासी
भाइयों की साहूकारों से ऋण मुक्ति ,200 महाविद्यालयों में विश्व बैंक की
सहायता से स्मार्ट क्लास ,ओंकारेश्वर में विश्व का सबसे बड़ा 600 मेगावाट का
3000 करोड़ रु की लागत से बनने वाला सोलर पाॅवर प्लांट इत्यादि ।
मुख्यमंत्री जी ने आपदा में अवसर तलाशा है और किसानों और
मज़दूरों से विमर्श किए बग़ैर श्रम कानूनों और मंडी अधिनियम में बदलाव कर
दिया । मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने इस महामारी की दशा में सबसे बड़ा
कुठाराघात प्रदेश के किसानों और मज़दूर भाइयों के साथ किया है । किसान
भाइयों के पास लॉकडाउन की वजह से पहले ही बाज़ार उपलब्ध नहीं था और उनसे
वादा करके भी उड़द और मूँग की ख़रीदी नहीं की गई। मक्का भी खरीदने का
निर्णय इतने विलंब से किया कि किसान भाइयों को औने-पौने दाम में बेचने पर
मजबूर होना पड़ा । आर्थिक दृष्टिकोण से मध्यप्रदेश का कृषि क्षेत्र प्रदेश
की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है मगर प्रदेश भाजपा सरकार ने उसके विकास
के बजट में 53 प्रतिशत की कटौती की है जिसके गंभीर परिणाम मध्यप्रदेश को
भविष्य में भुगतने होंगे । मुझे बेहद दुख इस बात का भी है कि भाजपा सरकार
ने ‘जय किसान ऋण माफी योजना’ को लगभग बंद कर दिया है । मेरी सरकार ने प्रथम
और द्वितीय चरण में 2695145 किसानों के 11650.90 करोड़ के ऋण माफ़ कर दिए थे
और प्रक्रियागत थे ।
इतना ही नहीं, गेहूँ की 160 रु. की प्रोत्साहन राशि लगभग 11 लाख़
किसानों को 1 अप्रैल 2020 से दी जानी थी, उसे भी भाजपा सरकार ने नकार
दिया है और बजट में भी इसका कोई प्रावधान नहीं किया है ।
इतना ही नहीं ,आज किसानों को नकली बीज दिया जा रहा है और खाद के लिए भी वो
दर दर की ठोकरें खा रहा है ।
इस महामारी में केंद्र सरकार ने 20 लाख़ करोड़ का पैकेज घोषित किया
था । मुझे तो 20 लोग भी नहीं मिले जो बता सकते हों कि उन्हें क्या लाभ मिला
है । हाँ एक अच्छी घोषणा केंद्र ने की थी और वो ये थी कि लोगों को मुफ़्त
गेहूँ, चावल और दाल दिए जाएंगे।
मध्यप्रदेश में 5 करोड़ 46 लाख़ लोग ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा
अधिनियम’ के तहत पात्र हैं । इनमें से लगभग एक करोड़ 30 लाख़ लोगों को ये
राशन बाँटा ही नहीं गया और पूरे देश में ऐसा सिर्फ मध्यप्रदेश में हुआ है
और मुख्यमंत्री जी कहते हैं कि 37 लाख मज़दूरों को अलग से इसमें जोड़ा जाएगा
। मैं आज सिर्फ़ इतना आग्रह करना चाहता हूँ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी
से कि “सच बराबर तप नहीं और झूठ बराबर पाप ।”