जंगलों की कटाई हमारी संस्कृति नहीं, हम तो हमेशा से पर्यावरण संरक्षण के प्रतिनिधि रहे हैं

 

 

 – डॉ सुदेश वाघमारे:

पर्यावरण का मतलब केवल वृक्षारोपण करना ही नहीं है इससे कहीं आगे है पर्यावरण को संरक्षित करना प्रत्येक प्रत्येक व्यक्ति को अपनी दैनिक दिनचर्या में उतारना चाहिए आज यदि हम वृक्षों को काटने से रोकेंगे तो उसके परिणाम हमें वर्तमान में तो मिलेंगे ही साथ ही साथ भविष्य में भी वृक्षों के बचाने के सकारात्मक परिणाम हमारे सामने होंगे ।

यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर्यावरण संरक्षण गतिविधि भोपाल विभाग के अंतर्गत चलाए जा रहे पर्यावरण सप्ताह के  ऑनलाइन व्याख्यान में डॉ सुदेश वाघमारे जी ने कही । उन्होंने पेड़ आयाम ,जैव विविधता ,वनस्पति संबंधित विषय पर अपना उद्बोधन देते हुए कहा की हम उस संस्कृति को मानने वाले लोग हैं जिसमें व्यक्ति जमीन पर पैर रखने पर भी धरती माता को प्रणाम करता है । हमारी संस्कृति ने हमें हमेशा ही पर्यावरण संरक्षण की बात सिखाई है , हमारी संस्कृति कभी यह बात नहीं सिखाती की हम वृक्षों की कटाई करें या अन्य ऐसा कोई कार्य करें जो पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हो ।

वाघमारे जी ने कहा कि यदि पर्यावरण संरक्षण रहता है तो हमें कई प्रकार की जैविक विविधता है देखने को मिलेंगे जैव विविधता को संरक्षित करना आज बहुत आवश्यक हो गया है।  जल संरक्षण करने में हमने पूर्व में कई त्रुटियां की हैं जिन्हें सुधार कर अब नए तरीके से इसको संरक्षित करना होगा । इसी प्रकार जल संरक्षण पर अपनी बात रखते हुए डॉ सुदेश ने कहा कि जल बिना इस दुनिया में कोई भी चीज संभव नहीं है । बगैर जल के दुनिया में हर एक चीज असंभव ही मालूम पड़ती है इसलिए जल संरक्षण को भी प्रत्येक मनुष्य को उसकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी मानकर इस हेतु अपने व्यक्तिगत प्रयास करने चाहिए  ।

जब मनुष्य पेड़ों और जंगल को कटने से बचाएगा तो स्वता ही वातावरण बरसात के लिए अनुकूल बना रहेगा और कभी वर्षा की कमी नहीं आएगी इसलिए यदि हमें  भविष्य में जल के अभाव  से बचना है तो उसके लिए जंगल और पेड़ों को बचाना अत्यंत आवश्यक है यह बात वैज्ञानिक है कि जहां पर जंगली क्षेत्र होते हैं वहां पर हमेशा ही जलस्तर ऊंचा रहता है और कभी जल का अभाव क्षेत्र में नहीं आता इसलिए जब जंगल और पेड़ बचे रहेंगे तो मनुष्य को अनेकों प्रकार की समस्याओं से स्वता ही मुक्ति मिल जाएगी । ।

आज के समय में मनुष्य के द्वारा पेड़ों की लगातार कटाई की जा रही है जिसके कारण जंगलों का अभाव होता जा रहा है ऐसे में जंगलों में चलने वाली कई प्राकृतिक प्रक्रियाएं  नहीं हो पा रही है जैसे कि जंगल में जब बंदर किसी फल को खाता है और उस फल की गुठलियों जगह जगह पर छोड़ता है तो इससे नए पौधों का जन्म होता है और जंगल बढ़ता जाता है लेकिन लोगों के द्वारा जिस प्रकार से वृक्षों की कटाई की जा रही है उससे यह अनेक प्राकृतिक व जंगलीय प्रक्रिया समाप्त होती जा रही हैं ।

 वाघमारे जी ने कहा कि हमारी संस्कृति प्रारंभ से ही पर्यावरण संरक्षण व जैव विविधता को बचाने का कार्य कर रही है इसका एक अच्छा उदाहरण आदिवासी बंधुओं में देखने को मिलता है , आदिवासी बंधु कभी भी महुआ के पेड़ को नहीं काटते क्योंकि वह मानते हैं कि वृक्ष हमारे पूर्वज रहे हैं इसलिए आदिवासी बंधु हमेशा ही जल जंगल को बचाने के लिए तत्पर रहते हैं इसी प्रकार से हमारी संस्कृति में अनेकों वृक्षों को पूजनीय माना गया है ।

 वाघमारे जी ने कहा कि यदि कोई मनुष्य शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में रहता है तो वह अनेकों प्रकार के तनाव से दूर रहता है और यह वैज्ञानिक कारण है कि जब कोई व्यक्ति तनाव में रहता है तो वह है डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाता है ऐसे में अगर हमें स्वास्थ्य जीवन जीना है तो उसके लिए पेड़ जंगल व जैविक विविधताओं को संरक्षित करना होगा  वाघमारे जी ने कहा कि आज दुनिया जो कोरोनावायरस महामारी झेल रही है वह पर्यावरण व प्रकृति को नुकसान पहुंचाने का ही परिणाम है यदि मनुष्य ने समय रहते जंगल पेड़ और पर्यावरण को नहीं बचाया तो कोरोनावायरस हजारों वायरस एक बड़ी समस्या के रूप में हमारे सामने खड़े होंगे उक्त कार्यक्रम का संचालन सचिन जी द्वारा किया गया

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