रमेश सर्राफ धमोरा:
भारत को कभी गांवों का देश कहा जाता था। देश की 80 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती थी। मगर धीरे-धीरे समय ने करवट बदली। पिछले कुछ सालों से देश में शहरीकरण की रफ्तार तेज हुई। लोग गांवो से निकलकर शहरों की तरफ पलायन करने लगे। देखते ही देखते शहरों की आबादी बेहताशा बढ़ने लगी। जीविकोपार्जन के चक्कर में लोग गांव छोड़कर शहरों में आकर रहने लगे। जहां न तो उनके लिए ढंग से रहने की जगह थी न ही सही ढंग का रोजगार। मगर शहरी चकाचौंध से प्रभावित गांव का युवा वर्ग तेजी से शहरों का रुख करने लगा।
गांव से लोगों के शहरों की तरफ पलायन से गांवो में रहने वाले लोगों का भी खेती में रुझान कम होने लगा। गांव की युवा पीढ़ी खेती से विमुख होकर शहरों की ओर दौड़ने लगी। मगर अचानक ही आए कोरोना संकट ने शहरों की ओर बेहताश दौड़ रहे लोगों को एकबार फिर गांवों में आने को मजबूर कर दिया। गांव से शहरों में रोजगार के लिए गए सभी इस वक्त यही प्रयास कर रहे हैं कि कैसे भी करके अपने गांव में अपने घर पहुंचा जाए। साधन नहीं मिलने से लाखों लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित अपने घरों को पैदल ही निकल पड़े हैं। शहरों में रह रहे लोगों को यकायक वर्षों पूर्व छोड़ा अपने गांव -घर याद आने लगे हैं। नतीजातन शहरों से गांव की ओर तेजी से उल्टा पलायन हो रहा है। जो हमें इस बात का एहसास कराता है कि हमने गांव को छोड़कर शहरों की तरफ जाने की जो प्रवृत्ति बनाई थी, वह सही नहीं थी।
हालांकि लोगों को मजबूरी में गांव छोड़कर शहरों में रोजगार के लिए जाना पड़ा था। लगातार पड़ रहे अकाल, अतिवृष्टि के कारण खेती में गुजर-बसर करने लायक आमदनी नहीं हो पा रही थी। वहीं गांव के आसपास कल-कारखाने या अन्य साधन नहीं थे, जहां काम कर लोग पेट भर सकें। इसलिए लोगों को मजबूरी में दूसरे प्रदेशों में जाकर काम करना पड़ रहा था। कोरोना संकट के चलते लाखों लोगों का अपने मूल गांव की तरफ लौटने का सिलसिला अनवरत जारी है। सरकार द्वारा भी दूसरे प्रदेशों में काम कर रहे प्रवासी श्रमिकों को उनके घरों तक छोड़ने के लिए श्रमिक विशेष रेलगाड़ियां चलाई जा रही हैंं। जिनके माध्यम से बड़ी संख्या में लोग अपने घरों तक पहुंच पा रहे हैं।
कोरोना संकट के कारण लंबे समय से चल रही तालाबंदी के दौरान सरकारों को भी यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि रोजगार के साधन कल- कारखानों को यदि शहरों तक ही सीमित न रखकर उनका गांवों तक विस्तार किया जाए तो लोगों को अपने आसपास अपने ही प्रदेशों में ही रोजगार मिल सकेगा। जिससे उनको अन्य प्रदेशों में रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा। भविष्य में फिर कभी कोई ऐसी स्थिति बनती है तो देश को इस तरह के पलायन का सामना नहीं करना पड़ेगा। वैसे भी देश में उद्योग-धंधों के लिए अधिकतर कच्चा माल ग्रामीण क्षेत्रों से ही आता है। ऐसे में यदि सरकार कच्चे माल की उपलब्धता को देखते हुए उसी क्षेत्र में उससे संबंधित कल-कारखाने व स्वरोजगार के अन्य साधन उपलब्ध करवा दे तो लोगों को बेवजह दूसरे प्रदेशों में पलायन नहीं करना पड़ेगा।
सरकार को खेती में भी नवाचार करना चाहिए। यूरोपियन देशों की तरह हमारे देश में भी वैज्ञानिक विधि से खेती करने को प्रोत्साहन देना चाहिए। किसान को कम समय में अधिक फसल मिलने से उसकी आमदनी बढ़ेगी। जिससे खेती की तरफ उनका रुझान बढ़ेगा। खेती में अच्छी आय होने से उन्हें रोजगार के लिए अन्यत्र नहीं भटकना पड़ेगा। खेती के साथ सरकार को पशुपालन को भी बढ़ावा देना चाहिए। खेती के साथ पशुपालन बहुत ही आसानी से किया जा सकता है। पशुपालन किसानों की आय बढ़ाने का एक बहुत बड़ा जरिया बन सकता है।
इसके साथ ही सरकार को ग्रामीण कुटीर उद्योगों को भी प्रोत्साहन देना चाहिए। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से ऐसे कुटीर उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं। जिनके लिए कच्चा माल व दक्ष कारीगर स्थानीय स्तर पर ही आसानी से सुलभ हो सकते हैं। ऐसा करने से गांवों के लोगों का रोजगार के लिए शहरों की तरफ पलायन तो रुकेगा। साथ ही घर परिवार के सभी लोग मिलकर अपने घर में ही कुटीर उद्योग में काम करने लगेंगे जिससे पूरे परिवार के सदस्य घर बैठे पैसे कमा सकेंगे।
इस संकट की घड़ी में हमारे देश के बहुत से उद्यमियों ने दिखा दिया है कि यदि सरकार प्रोत्साहित करे व पर्याप्त पूंजी उपलब्ध कराए तो हर उस वस्तु का उत्पादन कर सकते हैं जिसपर अबतक हम विदेशों से आयात पर निर्भर रहते आये हैं। कोरोना संकट से पहले हमारे देश में चिकित्सा से संबंधित अधिकांश वस्तुओं का विदेशों से आयात किया जाता था। लेकिन केंद्र सरकार के प्रोत्साहन के चलते आज देश में हजारों स्वदेशी कंपनियां चिकित्सा से जुड़ी बहुत-सी वस्तुओं का निर्माण कर रही हैं। स्वदेशी कंपनियों द्वारा निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता भी विदेशों से मंगाए गए सामान से कहीं बढ़कर है। देश में ही बनने से हमारी विदेशी मुद्रा की बचत होती है। इसके साथ आयात करने में जो समय लगता है उसकी भी बचत होती है। साथ ही देश के लोगों को रोजगार भी उपलब्ध होता है। आज देश के गांव में घरेलू महिलाएं विभिन्न प्रकार का मास्क बना रही है। जिससे हमारे देश में मास्क की कमी काफी हद तक कम हो गई है। इसी तरह हम गांव में विभिन्न सहायता समूह बनाकर उनके माध्यम से लोगों को जोड़कर उनसे विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करवाया जा सकता है।
कोरोना के कारण विदेशों में नौकरियां कर रहे लाखों लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो सकते हैं। विदेशों में काम कर रहे भारतीयों के लौटने की स्थिति में उनकी योग्यता के अनुरूप उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध करा पाना भी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती होगी। आने वाला समय दुनिया के सभी देशों के लिए बहुत भारी रहेगा। जब कोरोना संक्रमण का दौर कम होगा तो बेरोजगारी का संकट मुंह बाये खड़ा होगा। अगर समय रहते अभी उसका निदान नहीं खोजा गया तो आने वाले समय में स्थिति और अधिक भयावह हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की समस्या से निबटने के लिए सरकार को ऐसी योजना बनानी होगी जो कामगार को उसके गाँव के नजदीक ही रोजगार उपलब्ध करवा सके। जिससे उनको बड़े शहरों में जलालत भरी जिन्दगी की ओर वापस नहीं लौटना पड़े।
बड़े शहरों से गांवों में लौट रहे लागों को राज्य सरकारें नरेगा में काम उपलब्ध करवा रही है। लेकिन सभी लोग नरेगा में भी काम नहीं कर सकते हैं। फिर नरेगा में कार्य दिवसों की संख्या भी निश्चित रहती है। ऐसे में लोग लम्बे समय तक सिर्फ नरेगा के भरोसे नहीं रह सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था को कोरोना संकट से बचाने के लिये केन्द्र सरकार की तरफ से बीस लाख करोड़ रूपये के आर्थिक पैकेज देने की घोषणा की है। इसमें देश के सभी वर्गों का ख्याल रखा गया है। इसमें ग्रामीण क्षेत्र को स्वावलम्बी बनाने पर विशेष जोर रहेगा। इस राहत पैकेज से देश की अर्थव्यवस्था को निश्चय ही बहुत बड़ा सहारा मिलेगा। जिसका असर हमें आने वाले समय में देखने को मिलेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)