आर. के. सिन्हा:
मैं अक्सर अपने लेखों में इस बात का जिक्र करता रहता हूँ कि चुनौती और अवसर एक दुधारी तलवार की तरह है। जहां कहीं आपके सामने चुनौतियां खड़ी होंगी, उसमें बहुत बड़ा अवसर भी छिपा मिलेगा, जिसे यदि ढूंढकर निकाल लें और उपयोग कर लें तो चुनौती को अवसर में बदलने में कोई वक्त नहीं लगेगा। इसी प्रकार जहां कहीं भी अवसर आता है तो उसमें कुछ चुनौतियां भी छिपी होती है। जैसे आधुनिक तकनीक के रूप में एक बहुत बड़ा अवसर आया पूरे विश्व में लेकिन आधुनिक तकनीक के कारण तरह-तरह के साइबर क्राइम बढ़े हैं। अतः अवसर के साथ चुनौती भी है। कोरोना की चुनौती जो विश्व के सामने आयी, पूरा विश्व इसका सामना करने के लिए तैयार नहीं था। पिछले 100 वर्षों में ऐसा बड़ा खतरा विश्व के सामने आया भी नहीं था। वैसे प्रथम विश्वयुद्ध के बाद बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में स्पेनिश फ्लू नाम की महामारी जरूर आयी थी। लेकिन यह कोरोना जैसी भयंकर नहीं थी। वास्ता तो इसका स्पेन से बिलकुल ही नहीं था। वास्ता तो इसका प्रथम विश्वयुद्ध से था जिसमें स्पेन सीधे तौर पर शामिल भी नहीं था। लेकिन, स्पेनिश फ्लू से पीड़ित सैनिकों को अमेरिका और इंग्लैंड सैनिकों को उनके देशों में पहुंचाने लगे और वहां के बंदरगाहों से सैनिक जब अपने गांवों में जाने लगे तो उनके गांवों में यह महामारी फैलने लगी। उस महामारी का नाम स्पेनिश फ्लू इसलिए दिया गया क्योंकि पहले स्पेनिश मीडिया ने ही इसका खुलासा किया था और इसकी सच्चाई विश्व के सामने रखी थी।
कोरोना की महामारी स्वाभाविक है या मानव निर्मित है, इसपर अभी बहस जारी है। लेकिन, यह जरूर है कि यह महामारी बहुत विकट है। क्योंकि यह मात्र किसी संक्रमित व्यक्ति के नजदीक जाने से हो सकती है। छूने तक की बात ही नहीं है। अगर एक मीटर के अंदर के फासले में गये और संक्रमित व्यक्ति ने अगर छींका या खांसा तो उसकी छींक या खांसी के जो सूक्ष्म कण हैं, वह भी कोरोना महामारी के विषाणु आपके शरीर में ला सकते हैं और आप भी इस बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं। कोरोना की इस विपदा से पूरा विश्व तबाह हो गया है। एक छोटे से किटाणु ने जिसको आप दूरबीन से भी देख नहीं सकते, पूरे विश्व को तबाह कर दिया। यह बीमारी चीन के बुहान शहर से शुरू हुई और पूरे विश्व में फैल गयी। 100 दिन तक की लड़ाई और कड़ाई के बाद चीन ने धूमधाम से यह घोषित कर दिया कि अब बुहान कोरोना कीटाणु से मुक्त हो गया है। बहुत बड़ा जश्न मनाया गया। लेकिन, अभी ताजा रिपोर्टों के अनुसार बुहान में यह महामारी फिर से फैल रही है। चूंकि बुहान से लोग चीन के अन्य राज्यों में यात्रा कर रहे हैं, इसलिए संभावना यह है कि चीन के अन्य राज्यों में भी यह महामारी फैली होगी। इतनी खतरनाक है यह महामारी। भारत ने तो शुरू से ही बहुत ठीक ढंग से इस महामारी का मुकाबला मजबूती से किया है।
दिसम्बर 2019 में चायनीज नववर्ष के समय जब कोरोना चीन में कहर बरपा रहा था, उसी समय से हमारे लोकप्रिय और जमीन से जुड़े प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी जी इस आपदा को कैसे झेलें, इसकी योजनाएं बना रहे थे। मैं संसद के सत्र के दौरान संसद के गलियारे में जब कभी भी प्रधानमंत्री के कमरे के सामने से गुजरता था तो कई बार मुझे स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन बगल में कुछ फाइलें दबाये मिल जाते थे। हमलोग आपस में यही बात करते थे कि कोरोना की विपदा से निपटने के लिए पूरी तैयारी रहनी चाहिए। पूरी तैयारी की भी गयी। लेकिन, तैयारी में थोड़ी कमी यह रह गई कि चीन ने आधी बात बताई और आधी बात छुपा ली। चीन ने सर्दी, खांसी, बुखार आदि इसके प्रारंभिक लक्षण बताये। श्वांस की बीमारी के लक्षण बताये। लेकिन, यह नहीं बताया कि संक्रमित व्यक्ति में यह लक्षण दो हफ्ते बाद भी दिख सकता है। इसके कारण थोड़ी भूल भारत और अन्य देशों में भी हुई। क्योंकि, जो व्यक्ति उन दिनों विदेशों से आये भारत सरकार ने सबका परीक्षण तो शुरू करा दिया था। किसी भी सर्दी, खांसी, बुखार के लक्षण वाले यात्री को अलग ले जाकर उनको एकातंवास में कोंरेंटाइन करवाना शुरू भी कर दिया था। किन्तु, जिनको कोई लक्षण ही नहीं था उनको घर जाने दिया गया। यह किसी को पता ही नहीं था कि 14 दिनों के बाद भी ये लक्षण आ सकते हैं। इसके कारण ही कई जगहों पर खासकर केरल में जहां काफी संख्या में अरब के खाड़ी के देशों में नौकरी के लिए केरलवासी जाते हैं। तमिलनाडु, मुम्बई, गुजरात, दिल्ली और पंजाब में यह संक्रमण काफी तेजी से फैला। क्योंकि, वहां के लाखों लोग विदेशों में रहते हैं और वे तथा उनके परिवार के सदस्य विदेश आते-जाते रहते हैं।
एक बात और यह हुई कि तबलीगी जमात का एक मरकज देश के कई हिस्सों में हो रहा था। दिल्ली में ही 12 हजार लोग आमंत्रित थे। उसमें सैकड़ों लोग इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड आदि देशों से थे जहां कोरोना महामारी पहले से फैली हुई थी। वहां से आये कई संक्रमित व्यक्ति उस मरकज में शामिल हुये थे। सभी सूचनाएं और सावधानियों के बाद भी मरकज ने इसकी कोई परवाह ही नहीं की और यहाँ तक कहना शुरू कर दिया कि खुदा की ख्वाईश है कि अगर उसका कोई बंदा इस बीमारी से मर जाये तो मस्जिद में मरने से अच्छी कोई जगह है ही नहीं। इस तरह बीमारी के लक्षणों को छिपाने और डाक्टरों के पास न जाने की सलाह दे दी गयी। जिसकी वजह से भी कोरोना के संक्रमित मरीजों में बहुत बड़ा इजाफा हुआ। दिल्ली की मरकज के बाद जमात के तबलीगी जहाँ-जहाँ गये अपने साथ संक्रमण ले गये और इस तरह संक्रमण फैलाया। लेकिन, इन सारी उल्टी-सीधी परिस्थितियों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने मन ही मन यह तो सोच लिया था कि जब इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे देशों में ऐसी स्थिति हो रही है जहां कि मेडिकल सुविधाएं इतनी अच्छी है जिनकी बराबरी हम कर ही नहीं सकते, तब तो इस महामारी को रोकने के लिए सम्पूर्ण तालाबंदी (लॉकडाउन) किये बिना इस महामारी का सामना किया ही नहीं जा सकता। क्योंकि, इस महामारी में एक अच्छी बात तो है ही कि आप इसे आमंत्रित नहीं करेंगे तो यह अपने आप आपके पास कदापि नहीं जायेगा।
विपक्षी नेता चिल्ला रहे थे कि ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट करवाया जाये। सुझाव तो बहुत अच्छा था लेकिन, इसकी टेस्टिंग किट कहां थी हमारे पास। इस बात को समझने वाले लोग तैयार कहां थे। जब महामारी का अता-पता ही नहीं था उस समय। हमारे यहां टेस्टिंग किट कहाँ से होती। उस समय हमारे यहां एक भी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट जिसे व्यक्तिगत सुरक्षा कवच या “पीपीई” कहा जाता है, नहीं था। यह डॉक्टर और मेडिकल कर्मचारियों को पहनना संक्रामक बीमारियों के इलाज में आवश्यक होता है। पीपीई देश में एक भी नहीं बन रहा था। एन 95 फेस मॉस्क जो संक्रमण को 95 प्रतिशत रोकने के लिए सक्षम है, वह भी हमारे यहां बहुत कम बनता था। कहीं इक्का-दुक्का बन रहा था जो कहीं बड़ी प्रयोगशालाओं या अन्य संस्थानों में जरूरत होती थी।
अतः प्रधानमंत्री ने सम्पूर्ण तालाबंदी (लॉकडाउन) का रास्ता अपनाया। हालांकि, तालाबंदी भी पूरी तरह सफल नहीं हो पायी। भारत जैसे विशाल देश में यह हो पाना शायद संभव भी नहीं था। जहां इतनी बड़ी आबादी हो, आबादी का घनत्व इतना घना हो, जहाँ इतनी बड़ी संख्या में लोग अर्धशिक्षित या अशिक्षित हों, यहां यह संभव नहीं था। फिर भी प्रशासन और पुलिस की दक्षता के कारण कम से कम 90 से 95 प्रतिशत तालाबंदी तो जरूर सफल हुयी जिसके कारण ही आज भारत इतनी बड़ी आबादी होते हुए भी विश्व भर में कोरोना संक्रमण से सबसे कम क्षति उठाने वाले देश के रूप में उभरा है।
मंगलवार की शाम प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बहुत ही प्रेरक और दिलचस्प बातें कहीं। उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ी चुनौती है। लड़ाई लम्बी चलेगी तो अब लॉकडाउन-4 यानि 18 मई के बाद होने वाली तालाबंदी का स्वरूप भी अलग होगा। कहने का अर्थ यह था कि अब हम सावधानी के साथ अपने काम पर लौटेंगे । लेकिन, लापरवाहियां भी बर्दाश्त नहीं की जायेगी। प्रधानमंत्री ने यह कहा कि इस चुनौती को अवसर में बदलने के लिए “आत्मनिर्भर भारत योजना” की शुरुआत की जा रही है। इस योजना की शुरुआत के लिए एक बड़े भारी भरकम आर्थिक पैकेज की घोषणा की जा रही है जो 20 लाख करोड़ रुपये का है। 20 लाख करोड़ रुपया। इसका अर्थ यह हुआ कि लगभग 130 करोड़ प्रत्येक भारतीय नागरिकों के ऊपर यह 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज लगभग प्रत्येक नागरिक पर 15,384 रुपये का बैठेगा। इतना बड़ा आर्थिक पैकेज आजतक देश में कभी भी किसी भी प्रधानमंत्री ने देने के बारे में सोचा तक नहीं होगा। इसका कारण क्या था। कारण बहुत सीधा था कि इस देश में जितने भी प्रधानमंत्री हुए उसमें से दो ही ऐसे प्रधानमंत्री हुए हैं जो जमीनी प्रधानमंत्री थे । जिन्होंने गरीबी देखी थी, भूख देखी थी और मजबूरियों से संघर्ष करते हुए ऊपर उठकर आगे बढ़े थे। पहले तो थे स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी और दूसरे हैं नरेन्द्र मोदी जी। बाकी तो सारे प्रधानमंत्री पैदा ही हुए ऐसे खानदानों में जिसने कभी गरीबी और भूख को देखा ही नहीं था। इसलिए प्रधानमंत्री ने कल के अपने भाषण में सिर्फ किसान, मजदूर, छोटे उद्योगपति तक ही की चर्चा नहीं की। आजतक इस देश में तमाम राजनीतिक दल भी किसान, मजदूर और पूंजीपति की ही चर्चा करते आये थे। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने रेहड़ी वाले, ठेले वाले, पशु पालकों, सब्जी उगाने वाले, कामगारों और उद्योगपतियों की भी चर्चा की। सभी लोगों के लिए यह 20 लाख करोड़ का पैकेज है, जिसका पूर्ण विवरण तो वित्त मंत्री घोषित करेंगीं। किन्तु, यह बहुत बड़ा पैकेज है, इसमें देश की आर्थिक उन्नति का बहुत बड़ा रास्ता खुलेगा। प्रधानमंत्री ने दो-तीन उदाहरणों को देकर अपनी बातों को बताने की कोशिश की कि वे क्यों समझते हैं कि हम इस चुनौती को अवसर में बदल सकते हैं।
सबसे पहली बात तो प्रधानमंत्री ने यह बताया कि दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ यदि कोई भी काम किया जाये तो सफलता सुनिश्चित होती है। उन्होंने बताया कि जिस दिन देश में तालाबंदी शुरू किया गया उस दिन भारत में एक भी पीपीई नहीं बनता था और एन 95 फेस मॉस्क भी इक्के-दुक्के लोग ही बनाते थे। यह भी थोड़ी मात्रा में ही। आज की स्थिति यह है कि भारत इन दोनों उत्पादों को बनाने के मामले में न केवल सक्षम हो गया है, बल्कि निर्यात करने के लिए भी तैयार खड़ा है। आज देश में प्रतिदिन 2 लाख पीपीई और 2 लाख एन 95 ग्रेड के फेस मॉस्क बनने शुरू हो गये हैं।
दूसरा उदाहरण प्रधानमंत्री ने गुजरात के भुज का दिया। 2002 में भुज पूरी तरह विध्वंस हो गया था। ऐसा भूकम्प, इतनी जानमाल की क्षति जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। चूँकि, उन दिनों मैं स्वयं कई संस्थानों के साथ जुड़ा हुआ था जो भुज के राहत कार्यों से जुड़े थे, मैं बराबर भुज जाया करता था। जो भुज की स्थिति थी वह बहुत ही भयानक थी। वहां कुछ बचा ही नहीं था। आज आप जामनगर चले जायें। भुज के किसी भी क्षेत्र में चले जायें जो भूकंप प्रभावित था, तो उससे अच्छा व्यवस्थित गांव, कस्बा और शहर आपको देश में कहीं देखने को नहीं मिलेगा। आज भुज सर्वांगीण प्रगति कर रहा है। पूरा कच्छ क्षेत्र ही प्रगति कर रहा है। वहां चुनौती को अवसर में बदला गया है। इसलिए यदि प्रधानमंत्री ने ये उदाहरण दिये तो उसके पीछे बहुत ही मजबूत कारण हैं । प्रधामनंत्री ने एक और अच्छी बात कही है। उन्होंने कहा कि इस महान संकट में हमारी लोकल सप्लाई चेन जो थी हमारे स्थानीय छोटे-मोटे कारोबारी जो थे, उन्होंने ही हमारी जिंदगी की रक्षा की। उन्होंने ही हमें अन्न पहुंचाये, फल पहुंचाया, सब्जी, दूध एवं अन्य सामग्री भी। इसलिए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें “लोकल पर वोकल होना होगा।” यानि हमें सिर्फ बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों का पैरवीकार बनने के बजाय स्थानीय निर्माता और स्थानीय उत्पादक, स्थानीय आपूर्तिकर्ता पर ही ज्यादा विश्वास करना होगा। उनका सम्मान करना होगा। उनके लिए ढिढोरा पीटकर यह कहना पड़ेगा कि ये भी किसी भी अंतर्राष्ट्रीय उत्पादक या आपूर्तिकर्ताओं से कमजोर नहीं हैं। यह बहुत बड़ी बात है। क्योंकि, हर कोई जो आज एक बहुत बड़ा ब्रांड बनकर उभरा है एकदिन उसकी भी शुरुआत एक छोटे से रूप में ही हुई थी। लेकिन, उनके देशों ने उनका अपने “लोकल” पर “वोकल” होकर उन ब्रांडों का प्रचार किया और वे विश्व में फैल गये तो हम अपने ब्रांडों के लिये यही क्यों नहीं कर सकते।
अतः अब हम सभी मिलकर देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ें। भविष्य हमारा है। 21वीं सदी भारत की है और भारत विश्व का नेतृत्व करने के लिए उठ खड़ा हुआ है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)