मनोज कुमार झा:
कोविड-19 की महामारी संपूर्ण विश्व ग्रसित है। गत 24 मार्च, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय लॉकडाउन की जो घोषणा की, तत्कालीन संक्रमण के दुष्परिणाम के विरुद्ध सराहनीय निर्णय साबित हुआ। लेकिन इस लॉकडाउन का प्रभाव देश के विभिन्न क्षेत्रों पर अलग-अलग पड़ा। जिसका यथार्थ जानने जरूरत है। खासतौर पर, कृषि क्षेत्र एवं उनसे जुड़े मजदूर, किसान, श्रमिक और रोजमर्रा की मजदूरी करने वाले वैसे लोग, जो दिनभर मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैंl
वर्ष 2017-18 के एक आंकड़े के मुताबिक कुल मजदूरों की संख्या 465 मिलियन है, जिनमें 422 मिलियन श्रमिक अर्थात 91% गैर नियमित वर्ग के मजदूर हैं। लॉकडाउन के दौरान जिनके प्रभावित होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूर जो अपने जीवन-यापन हेतु विभिन्न राज्यों से प्रवास पर निकले, भविष्य में काम न मिलने तथा मजदूरी न मिलने के कारण ऐसे मजदूर अपने घरों को लौटने को विवश हैं। आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण ( 2017-18) के अनुसार स्वयंरोजगार, नियमित वेतनधारी एवं अनियमित श्रमिकों का प्रतिशत क्रमशः 52.2%, 22.8% एवं 24.9% है। स्वयंरोजगार में से लगभग 45- 46% ऐसे स्वयंरोजगार श्रमिक हैं, जिनकी स्थिति अनियमित मजदूरी वाले श्रमिकों से भी बदतर है। अतः अनियमित मजदूरों के साथ-साथ इनके ऊपर भी कोविड-19 का प्रभाव बुरा पड़ने की संभावना प्रबल है।
ऐसा देखा गया है कि प्रवासी मजदूरों की संख्या उत्तर प्रदेश एवं बिहार राज्य में सर्वाधिक है। इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट आफ पॉपुलेशन साइंसेज की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार राज्य के अधिकतर प्रवासी भूमिहीन हैं। जिनकी आयु लगभग 32 वर्ष है, अर्थात युवा वर्ग है। इन प्रवासियों में से 80% भूमिहीन है अथवा उनके पास 1 एकड़ से भी कम भूमि है। 90% मजदूर निजी संस्थानों, कारखानों एवं विभिन्न उद्योगों में काम करते हैं। एक आकलन के मुताबिक बड़ी संख्या में प्रवासियों का पलायन कृषि में अदृश्य बेरोजगारी की दर को बढ़ाएगा। वैसे भी ऐसी परिस्थिति पहले से ही कृषि क्षेत्र में विद्यमान है l कहना गलत नहीं होगा कि एक तरफ बेरोजगारी की बढ़ती हुई ऐसी भयावह स्थिति तथा दूसरी तरफ कृषि का गिरता हुआ उत्पादन स्तर, वर्तमान कृषि के लिए चिंताजनक है। जिन किसानों के पास खेती है, श्रमिकों के अभाव में समय से कटाई न होने के कारण फसलों का भारी नुकसान हुआ है। फलस्वरूप कृषि के उत्पादन दर में कमी दर्ज होना स्वाभाविक है। साथ ही जो भी उत्पादन हुआ है, समुचित बाजार के अभाव एवं अनियमितता के कारण इसकी बिक्री में भी कमी आई है। फलत: किसानों की आय प्रभावित हुई है। अप्रैल माह में गेहूं, चना एवं सरसों की फसल की कटनी (कटाई) प्रारंभ होती है। परंतु लॉकडाउन हो जाने के कारण ज्यादातर किसानों के खेतों में कटाई भी देरी से प्रारंभ हुई और कटाई हो जाने के उपरांत फसल से दाना को अलग करने की प्रक्रिया (दौनी, मिजाई) भी नहीं हो पाई। जिससे फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ाl
अर्थशास्त्रियों की मानें तो कृषि की दयनीय स्थिति एवं उत्पादन में कमी भविष्य में मुद्रास्फीति को प्रोत्साहित करेगा। जिसके फलस्वरूप अमीरों और गरीबों के बीच असमानता में वृद्धि होगी l इसके अलावा तेज बारिश एवं मौसम की विपरीत परिस्थितियों के कारण भी फसलों का अत्यधिक नुकसान हुआl लॉकडाउन की वजह से छोटे किसान जो फल एवं सब्जियों को उगाते हैं, समुचित बाजार न होने के कारण बिक्री नहीं हो पा रही है और किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। इन सब कारणों से किसानों की आय में उत्तरोत्तर गिरावट हो रही है।
जैसे ही लॉकडाउन की घोषणा हुई वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1.7 ट्रिलियन रुपए आर्थिक मदद के रूप में अत्यधिक पिछड़े एवं किसानों को प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत सहायता प्रदान करने की घोषणा की l सरकार ने नरेगा के अंतर्गत काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी में भी वृद्धि कीl रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने ऋण के बोझ से दबे किसानों को 3% रियायती दर पर फसल-ऋण उपलब्ध कराने की घोषणा की। अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका डॉ. रीना कुमारी की मानें तो सरकार द्वारा किए गए कार्य अत्यंत ही सराहनीय हैं लेकिन किसानों की स्थिति सुधारने तथा कृषि क्षेत्र के विकास के लिए सरकार को अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। सरकार खाद्यान्नों पर ज्यादा से ज्यादा सब्सिडी प्रदान करें। खाद, उर्वरक एवं अन्य कृषि निर्गतों पर अधिकतम मात्रा में सब्सिडी प्रदान करे। ताकि श्रमिकों, किसानों एवं मजदूरों को राहत मिल सके।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)