इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी का पाठ पढ़ते किशोर

 

इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी का पाठ पढ़ते किशोर

प्रमोद भार्गव:
अभी हम देहरादून में घटी शर्मनाक घटना भूले भी नहीं हैं कि दूसरी भयावह घटना सामने आ गई। देहरादून में अकेली पाकर एक भाई ने अपने चार दोस्तों के साथ अपनी आठ साल की बहन के साथ दुराचार कर दिया था। दुष्कर्म करने वाले इन पांच बच्चों की उम्र 9 से 14 वर्ष के बीच थी। पुलिस जांच से पता चला कि इस वीभत्स घटना को अंजाम देने से पहले इन किशोरों ने मोबाइल पर चाइल्ड पोर्न फिल्म देखी थी। अब दिल्ली में घटी एक घटना में 27 किशोर दोस्त सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम पर एक समूह बनाकर अपने साथ पढ़ने वाली छात्राओं के साथ सामूहिक बलात्कार की षड्यंत्रकारी योजना बना रहे थे। सहपाठिनों के अश्लील फोटो साझा करने वाले एक नाबालिग लड़के को पुलिस ने दबोचा है। दक्षिण दिल्ली के एक नामी विद्यालय में पढ़ने वाले इस लड़के का मोबाइल फोन भी जब्त किया है। पूछताछ से पता चला है कि समूह में एडमिन समेत 27 बालक सदस्य हैं। इनमें से 10 की पहचान कर ली गयी है। इनके मोबाइल और अन्य डिवाइस भी जब्त किए हैं। ये सभी दक्षिण दिल्ली के चार-पांच महंगे विद्यालयों में पढ़ते हैं और 11वीं व 12वीं के छात्र होने के साथ अति धनाढ्य परिवारों से हैं। ये छात्र अपने ही विद्यालय की छात्राओं के चित्र बिना उनकी जानकारी के इंस्टाग्राम पर बनाए समूह में साझा करते थे और उनसे बलात्कार करने के तरीकों व कमेंट लिख रहे थे। ‘बाॅयज लाॅकर रूम‘ नामक इस समूह का खुलासा तब हुआ, जब एक छात्रा ने समूह के स्क्रीन शाॅट्स सोशल मीडिया पर डाले।
स्मार्टफोन की उपलब्धता और इंटरनेट की आसान पहुंच ने पोर्न फिल्मों की पहुंच को आसान बनाया ही, वे इस साइबर तकनीक में मर्मज्ञ होकर लड़कियों की तस्वीरें न्यूड मोर्फ करके सोशल साइट्स पर वायरल भी करने लगे हैं। बाॅयज लाॅकर रूम नाम से इंस्टाग्राम पर खोला गया खाता इसी वजह से चर्चा में है। बिगड़ैल लाडलों की ये अश्लील चैट सोशल साइट्स पर टाॅप ट्रेंड में है। इन लड़कों ने शिकायत होने के साथ ही इस ग्रुप को तो डिलीट कर दिया था लेकिन तत्काल ‘लाॅकर रूम 2.0‘ नाम से नया समूह बना लिया। इस समूह को बनाने के साथ ही इन लड़कों की हरकत का खुलासा करने वाली लड़की को धमकी दी गई कि उसकी नग्न तस्वीरें सोशल मीडिया पर डाल देंगे। हालांकि पुलिस दबिश के चलते इंस्टाग्राम ने नाबालिग छात्राओं की अश्लीलता परोसने वाली सभी तस्वीरें डिलीट कर दी हैं। दरअसल इंस्टाग्राम हो या फेसबुक या फिर गूगल ये सब विदेशी कंपनियां अकूत धन कमाने की तृष्णा में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से भारतीय बच्चों, किशोरों व युवकों को पोर्नोग्राफी के जाल में फंसाकर उनका न केवल भविष्य बर्बाद कर रही हैं, बल्कि साइबर अपराधी बनाकर उनके पूरे जीवन पर ही कालिख पोतने का काम कर रही हैं। ये सब कपनियां ऑनलाइन चाइल्ड सेक्स ट्रेफिकिंग को बढ़ावा दे रही हैं। इसका दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि किशोरों को अश्लील फिल्में दिखाकर बच्चे और नाबालिग सगे-संबंधी ही इनकी करतूतों का शिकार हो रहे हैं।
आज सूचना तकनीक की जरूरत इस हद तक बढ़ गई है कि समाज का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं रह गया है। इस तालाबंदी के दौर में बच्चों को डिजिटल माध्यम से पढ़ने का जो बहाना मिला है, उसमें इंटरनेट पर डेटा की खपत से पता चला है कि चाइल्ड पोर्नाग्राफी की बीमारी भी उसी अनुपात में बढ़ रही है। आज दुनिया में करीब 4.5 अरब लोगों की इंटरनेट तक पहुंच हो गई है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएमएआई) के सर्वे के अनुसार 2019 में भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या करीब 45.1 करोड़ है। यह संख्या देश की आबादी की 36 फीसदी है। इनमें से 38.5 करोड़ उपभोक्ता 12 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और 6.6 करोड़ 11 वर्ष या इससे कम आयु समूह के हैं। इनमें से ज्यादातर अपने परिजनों की डिवाइस पर इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। 16-20 वर्ष के आयु समूह के युवा सबसे ज्यादा इंटरनेट का उपयोग करते हैं। देश में 25.8 करोड़ पुरुष और शेष महिलाएं इंटरनेट का उपयोग करती हैं।
भारत में इंटरनेट डेटा की खपत इसके सस्ते होने की वजह से भी बढ़ रही है। पिछले चार साल में डेटा की खपत 56 गुना बढ़ी है, वहीं दरों में कमी 99 प्रतिशत हुई है। इकोनाॅमिक सर्वेक्षण के अनुसार 2016 में डेटा की दरें 200 रुपए प्रति जीबी थी, जो 2019 में घटकर 12 रुपए प्रति जीबी तक आ गई है। दुनिया में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली एक पोर्न वेबसाइट ने बताया है कि भारत में 2018 में औसतन 8.23 मिनट पोर्न वीडियो देखे गए, वहीं 2019 में यह अवधि बढ़कर 9.51 मिनट हो गई। यह आंकड़ा सिर्फ एक वेबसाइट का है, जबकि दुनिया में पोर्न संबंधी 150 करोड़ वेब पेज सक्रिय हैं। इनमें 28 करोड़ वीडियो लिंक हैं। ये पोर्न वेबसाइट जिन 20 देशों में सबसे ज्यादा देखी गई, उनमें भारत का स्थान तीसरा है। दरअसल इसी साल ‘नेशनल सेंटर फाॅर मिसिंग एंड, एक्सप्लाॅयटेड चिल्डफ्ेन‘ नाम के संगठन ने बालयौन शोषण से जुड़ी जानकारियां चाहीं थी। संगठन को कुल 1.68 करोड़ सूचनाएं मिलीं। इनमें 19.87 लाख भारत से, 11.5 लाख पाकिस्तान और 5.5 लाख सूचनाएं बांग्लादेश से मिली थीं।
बच्चों के संदर्भ में मिली यह जानकारी अत्यंत चिंताजनक है, क्योंकि ये वे आंकड़े हैं जिनकी सूचना उपलब्ध हो गई है। परंतु इनमें वे आंकड़े नहीं हैं, जिनकी सूचना नहीं मिल पाई है। साफ है, बेटियों से दरिंदगी की एक बड़ी वजह पोर्न साइट्स की बिना किसी बाधा के उपलब्धता है। ऐसे में जो विद्यार्थी इंटरनेट पर पढ़ाई के बहाने पोर्न देखने में लग जाते हैं, उनके पालक सामान्य तौर से ऐसा कैसे सोच सकते हैं कि वे जिनके भविष्य के सपने बुन रहे हैं, वे स्वयं किस मानसिक अवस्था से गुजर रहे हैं और किस गलत दिशा का रुख कर रहे हैं। ऐसे में उन अभिभावकों के बच्चों को ज्यादा भटकने का अवसर मिल रहा है, जिनके माता-पिता दोनों ही नौकरी में हैं। क्योंकि ऐसे में यह निगरानी रखनी मुश्किल होती है कि आखिर बच्चे मोबाइल पर देख क्या रहे हैं?
कोरोना- काल में यह बात मीडिया में तेजी से उठ रही है कि शैक्षिक संस्थान लंबे समय तक बंद रहने की स्थिति में पढ़ाई-लिखाई के लिए ऑनलाइन विकल्पों को स्थाई बना दिया जाए? लेकिन यह प्रश्न नहीं उठाया जा रहा है कि पढ़ाई-लिखाई के दौरान बच्चे मोबाइल पर कौन-सा पाठ पढ़ रहे हैं ? इसकी निगरानी कैसे संभव है? क्योंकि इस अकेलेपन में दिमाग में विकृतियां पनपने की आशंकाएं कहीं ज्यादा हैं। प्रारंभ में यह आकर्षण थ्रिल या रोमांच की तरह लगता है, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता विकार रूप में बदलने लगता है। सोशल मीडिया पर निर्बाध पहुंच और बच्चों की जरूरतों के प्रति अभिभावकों की निश्चिंतता एवं लापरवाही दिल्ली या फिर देहरादून जैसी घटनाओं के लिए ज्यादा जिम्मेवार है। ये घटनाएं इसलिए और बढ़ रही है क्योंकि हमारी परिवारिक और कौटुंबिक जो सरंचना थी, उसे सुनियोजित ढंग से तोड़ा जा रहा है। ऐसे में बच्चों को नैतिक मूल्यों से जुड़े पाठ, पाठ्यक्रम से तो गायब कर ही दिए हैं, घरों में भी दादा-दादी या नाना-नानी इन पाठों को किस्सों-कहानियों के जरिए पढ़ाने के लिए उपलब्ध नहीं रह गए हैं। यदि नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने की बात कोई शिक्षाशास्त्री करता भी है तो उसे पुरातनपंथी कहकर नकार दिया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने के लिए केंद्र सरकार को दिशा-निर्देश निर्धारित करने को कहा है। सरकार ने इस उद्देश्य के लिए एक संसदीय समिति भी बनाई है, वह कोई दिशा-निर्देश निर्धारित करती, इसके पहले कोरोना की क्रूर छाया पड़ गई। यह समस्या इसलिए विकट होती जा रही है, क्योंकि इंटरनेट और सोशल प्लेटफोर्म प्रदाता कंपनियां इस दुरुपयोग को रोकने के लिए कोई कारगर पहल करने को तैयार नहीं हैं। हालांकि इंस्टाग्राम नामक जिस साइट पर किशोरों का समूह अपनी कुंठाएं अभिव्यक्त कर रहा था, उस कंपनी ने यह कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है कि वह ऐसी किसी आपत्तिजनक तस्वीर या सामग्री के उपयोग की अनुमति नहीं देती है। जो आपत्तिजनक सामग्री अपलोड की गई थी, वह उसने हटा दी है। लेकिन कंपनी के ऐसे दावे भरोसे के लायक नहीं होते हैं क्योंकि ऐसी सामग्री की पुनरावृत्ति होती रहती है। यदि ज्यादा जोर डाला जाता है तो सोशल साइट के उपभोक्ता सुनियोजित ढंग से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित होने का शोर मचाने लगते हैं और इंटरनेट पर दुरुपयोग के दूर करने के उपायों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी जाती है। लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि सोशल मीडिया पर नियमन, स्व-नियमन या सरकारी नियंत्रण की कोई जरूरत ही नहीं रह गई है। हकीकत तो यह है कि दिल्ली की इस ताजा घटना और देहरादून की घटना के परिप्रेक्ष्य में नियंत्रण की जरूरत कहीं अधिक बढ़ गई है। इसका आधार यही है कि सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लील करतूतें अब नैतिक मर्यादा के उल्लंघन और सभ्य समाज की संरचना के लिए गंभीर चुनौती के रूप में पेश आने लगी हैं, इसलिए इनपर अंकुश जरूरी है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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