24 April 2020,
भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के नियमों को सख्त करने के फैसले से पड़ोसी देश चीन भड़का हुआ है. भारत ने ये कदम इसलिए उठाया था ताकि कोरोना संकट का फायदा उठाते हुए चीन कमजोर हुईं भारतीय कंपनियों का अधिग्रहण ना कर सके. भारत में FDI के नियमों में बदलाव को लेकर चीन ने ऐतराज जताया था. चीन ने कहा कि ये फैसला विश्व व्यापार संगठन के सिद्धांतों के खिलाफ है.
एफडीआई के नए नियमों के तहत, अब भारत की सीमा से जुड़े किसी भी देश के नागरिक या कंपनी को निवेश से पहले सरकार की मंजूरी लेनी होगी. अब तक सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश के नागरिकों/कंपनियों को ही मंजूरी की जरूरत होती थी. भारत से पहले चीनी कंपनियों को रोकने के लिए कई अन्य देश पहले ही एफडीआई के नियमों को कड़ा कर चुके हैं.
एफडीआई के नियमों में बदलाव के बाद नई दिल्ली में चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा था, हमें उम्मीद है कि भारत अपनी भेदभाव वाली नीति में संशोधन करेगा और अलग-अलग देशों के निवेश के लिए एक ही तरह के नियम बनाएगा. इसके साथ ही, भारत अपने यहां खुला, पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक कारोबारी माहौल तैयार करेगा.
ग्लोबल टाइम्स ने दावा किया कि भले ही इस फैसले के बाद भारत के लिए दूसरे दरवाजे खुल गए हों और भारत में अपना कारोबार रिलोकेट करने की संभावना तलाश रहीं जापानी और दक्षिण कोरियाई कंपनियों को मौका मिल जाए लेकिन भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में चीन की जगह कोई और नहीं भर पाएगा.
अखबार ने लिखा कि ऐसी भी संभावना है कि भारत अगला मैन्युफैक्चरिंग हब बन जाए लेकिन मौजूदा आर्थिक संकट की वजह से आपूर्ति की चेन बाधित है. कहा जा सकता है कि भारत को मैन्युफैक्चरिंग सेंटर बनने के मकसद को पूरा करने में अभी काफी लंबा वक्त लगेगा. ऐसे में, भारत को चीन के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए.
ग्लोबल टाइम्स ने ये भी लिखा है कि चीनी कंपनियों के लिए भारत का बंद दरवाजा मौकों की दूसरी खिड़की भी खोल सकता है. कई चीनी कंपनियां महामारी खत्म होने के बाद विदेशों में अपना विस्तार करना चाहती हैं और वे इसके लिए दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का रुख कर सकती हैं. अखबार ने लिखा है अगर भारत चीनी कंपनियों के लिए असुरक्षित साबित होता है तो फिर वे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में अपना कारोबार बढ़ाएंगी जो चीन की मदद लेने के ज्यादा इच्छुक हैं.