बीयू के कुलपति मेहनत तो बहुत कर रहे पर परिणाम नही मिल रहा
महेन्द्र सिंह :
भोपाल,4 जनवरी| बरकतउल्ला विश्वविधालय ,भोपाल की वर्षों से पटरी से उतरी गाड़ी को कुलपति आर .जे.राव फिर से दौड़ाना चाहते हैं ,लेकिन उनकी राह में उनके ही सलाहकार रोड़ा बन रहे हैं | बैठकों में कुछ तय होता है तो यह सलाहकार “गूंगा गुड़” खाए बैठे रहते हैं और बैठकों के बाद ऐसा –ऐसा ज्ञान बांटते हैं ,ताकि सब गुड़ –गोबर हो जाए | व्यवस्थाएं चरमराई रहें और इनकी दुकान चलती रहे | राव चाहते हें कि विश्वविधालय को नैक से ए प्लस मिले ,लेकिन तिकड़ी इस फेर में है कि ऐसी बिसात बिछाई जाए कि राव का ही बोरिया –बिस्तर बंध जाए |
बीयू में प्रो राव ने 18 सितंबर 2018 को कुलपति का कार्यभार ग्रहण किया था | जब राव कुलपति बने थे ,तब विश्वविधालय में व्यवस्थाएं रसातल को जा रहीं थीं | प्रो राव ने कार्यभार ग्रहण करने के बाद अपनी प्राथमिकताएं गिनाईं थीं | उन्होंने कहा था कि नेक की ग्रेडिंग के साथ ही क्राइटेरिया पर खरा उतरने के लिए पूरा प्रयास करेंगे। छात्रों का प्लेसमेंट कराएंगे, अच्छी कंपनियों को लाने की कोशिश करेंगे।बीयू में प्लेसमेंट कंपनियों का रुझान बढ़ाने के लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम कराएंगे। एक्सपर्ट को बुलाकर छात्रों को प्लेसमेंट के लिए तैयार करेंगे। कंपनियों को बुलाकर उन्हें अच्छे से अच्छे विधार्थी देंगे, ताकि उनका रुझान बार-बार बीयू की तरफ हो। आखिरी सेमेस्टर से छात्रों को जॉब प्लेसमेंट कंपनियों के मुताबिक तैयार करना शुरू कर दिया जाएगा। बीयू में सिलेबस को अपग्रेड करने के लिए बोर्ड ऑफ स्टडीज से बात कर कुछ मार्केट के डिमांड के अनुसार कोर्स शुरू कराएंगे। इससे छात्र कंपनियों के डिमांड के मुताबिक तैयार होंगे। कॅरियर ओरिएंटेड कोर्स पर ध्यान देंगे। फैकल्टी की कमी होगी तो व्यवस्था करेंगे।सुरक्षा-व्यवस्था पर हमारा पूरा फोकस होगा। हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगाएंगे। साथ ही सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था पर भी ध्यान देंगे । हर रोज कैंपस का विजिट करूंगा। साथ ही हर छात्र अपनी समस्या को लेकर मुझसे डायरेक्ट मिल सकता है।.,
प्रो राव ने जो प्राथमिकताएं तय की थीं ,उस पर वह काफी हद तक आगे भी बढ़े हैं | बोर्ड ऑफ़ स्टडीज की बैठक एक दिन में कराकर सिलेबस बदलवाया | शायद बरकतउल्ला विश्वविधालय के इतिहास में बहुत सालों बाद देखने को मिल रहा है कि शैक्षणिक कलैंडर का इस सत्र मे कड़ाई से पालन हुआ है और इसका परिणाम यह है कि रिजल्ट भी जनवरी के दूसरे सप्ताह में आ जाएंगे | नैक के लिए राव अपनी पूरी जान झोंक रहे हैं ,लेकिन जब कदम ही साथ न दें तो मुसाफिर क्या करे | राव ने नैक का जिम्मा जिन प्रोफ़ेसर को सौंपा है ,उनका उसमें मन नहीं लग रहा है | अब आजकल वह सुविधाओं की बात करने लगे हैं | राव के सामने तो कुछ नहीं बोलते ,लेकिन पीठ पीछे यह तिकड़ी मुखर रहती है | बात-बात में मीन –मेख निकालते रहते हें | हाल ही रिटायर एक प्रोफ़ेसर कहते हैं कि दरअसल राव ऐसे लोगों पर भरोसा कर रहे हैं ,जिनका इतिहास सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना रहा है | इन्होनें दूसरों की राह में कांटे ही बोये हैं | प्रो नीरज गौड़ ,प्रो विवेक शर्मा .प्रो अनिल प्रकाश माथुर , डॉ विपिन व्यास जैसे जाने कितने लोग हैं जो “तिकड़ी “ के षड्यंत्रों का शिकार हुई है | विश्वविधालय में न तो काम करने वाले शिक्षकों की कमी है और न ही टेलेंट की | कमी रही है तो सिर्फ पारखी नजर की | वह आगे जोड़ते हैं कि ऐसे लोग जब अपने डिपार्टमेंट में कुछ नहीं कर पाए तो विश्वविधालय में क्या क्रांति कर देंगे | पूर्व कुलपति प्रमोद वर्मा के समय “ सॉलिड वेस्ट “ पर काम की बात करते थे , आजकल मेडिकल साइंस का राग अलाप रहे हैं | एक अन्य प्रोफ़ेसर मानते हैं कि राव ने सबको काम पर तो लगाया है , लेकिन जो लोग “मेन स्ट्रीम” में हैं ,वह दूसरों को घुसने नहीं दे रहे हैं | वह कहते हैं कि राव बेशक ईमानदार हैं ,लेकिन बेईमानों पर अंकुश नहीं लगा पाए | विश्वविधालय में बेईमानों का एक रैकेट है ,वह अपने हिसाब से विश्वविधालय को चलाते आए हैं | अब उनकी राह में थोड़े –बहुत अड़ंगे लगते हैं तो उनके पेट में दर्द हो रहा है | बेईमानी सिर्फ आर्थिक नहीं .मन ,वचन ,कर्म सबसे होती है | अपने स्वार्थ के लिए तोड़ –मरोड़कर तथ्य रखना भी बेईमानी है | यह प्रोफ़ेसर भी मानते हैं कि राव के साथ धोखा हो सकता है | कौन कब फैला –फाली कर दे ,कुछ कहा नहीं जा सकता ,इसलिए राव को बी टीम भी तैयार रखना चाहिए ,जो ऐनवक्त पर काम आ सके | वैसे राव भी सब समझ रहे हैं ,और उन्होंने जिस ढंग से लगाम कसी है ,उससे तिकड़ी बिलबिला गई है | अभी हाल ही में राव ने एक बैठक में एक प्रोफ़ेसर/हेड से समय पर प्रेक्टिकल/कॉपी चेक कर जमा करने को कहा था तो उस प्रोफ़ेसर ने जिस अंदाज और ऊँचे सुर में जबाव दिया ,उसे विश्वविधालय के गलियारों में शुभ नहीं माना जा रहा है |
एक अन्य प्रोफेसर मानते हैं कि राव ठीक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं ,लेकिन उन्हें इंटरनल व्यवस्थाएं भी ठीक करनी पड़ेंगी ,तब ही वह विश्वविधालय को पटरी पर ला सकेंगे | हालाँकि फंक्शनल अथोरटी रजिस्ट्रार होता है और काफी कुछ रजिस्ट्रार की वर्किंग पर निर्भर करता है ,लेकिन इनीशिएटिव कुलपति को ही लेना पडेगा | कर्मचारी यूनियन के नाम पर दलाली पर अंकुश नहीं लगेगा ,तब तक बात नहीं बनेगी और न ही सिस्टम स्मूथ होगा | विश्वविधालय में पचास से अधिक ऐसे कर्मचारी हैं ,जो हराम की सेलरी ले रहे हैं | है किसी में दम जो इन्हें बाहर का रास्ता दिखाए ? जो कर्मचारी काम के नहीं उन्हें विश्वविधालय कब तक ढोएगा | बीस –पचास का फार्मूला सब जगह है तो विश्वविधालय में क्यों नहीं ? जब हैण्ड ही नहीं है तो यूटीडी चलेंगे कैसे ? कर्मचारियों की बायोमीट्रिक से हाजिरी क्यों नहीं लगती | वह कहते हैं कि एक राव क्या –क्या कर लेंगे , इतने राव कहाँ से लाएं |