7 नवम्बर 1966 का दिल्ली में गौरक्षा आँदोलन : तीन पीठाधीश्वर शंकराचार्यों की लाठी से पिटाई

7 नवम्बर 1966 : दिल्ली में गौरक्षा आँदोलन

 

संतों पर गोलीचालन : 8 बलिदान : तीन पीठाधीश्वर शंकराचार्यों की लाठी से पिटाई

 

–रमेश शर्मा :

 

यह अब तक का सबसे विशाल गौरक्षा आँदोलन था। इसमें दस लाख से अधिक साधु संत और गौभक्त संसद पर प्रदर्शन करने दिल्ली पहुँचे थे। पुलिस ने भीड़ को तितर वितर करने केलिये लाठी और गोली चालन किया जिसमें 8 साधु मौके पर ही बलिदान हुये। सैकड़ों घायल हुये। तीन पीठाधीश्वर शंकराचार्य लाठी से घायल हुये । संतों पर हुये इस गोली चालन की जिम्मेवारी अपने ऊपर लेकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने त्यागपत्र दे दिया था।

सनातन परंपरा में गाय सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है। ऋग्वेद से लेकर श्रीमद्भगवत गीता तक सभी ग्रंथों में गाय की महिमा का वर्णन है। ऐसा कोई पुराण नहीं जिसमें गाय की महिमा पर कथाएँ न हों। अवतारों में एक निमित्त गाय भीरही है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गौसेवा करने की असंख्य कथाएँ हैं। लेकिन आक्रांताओं और विदेशी सत्ताओं की क्रूरता से गाय के प्राणों पर संकट आया। गौरक्षा केलिये समय समय पर अनेक संघर्ष हुये। सल्तनत काल और अंग्रेजीकाल में गौवध का तरीका अलग अलग था। सल्तनतकाल में ईद की कुर्बानी और माँस खाना आरंभ हुआ। लेकिन अंग्रेजों ने इससे आगे गौ माँस के व्यापार पर व्यापार भी आरंभ किया। इसके लिये ऐसे “स्लॉटर हाउस” खड़े किये जिनमें गौ माँस निर्यात होने लगा। अंग्रेजीकाल समाप्त होने के बाद भी गौवध रुक न सका। स्वतंत्रता के बाद संतों ने गौरक्षा की आवाज उठाई। इस आवाज को एक स्वर दिया स्वामी करपात्री जी महाराज और स्वामी प्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी ने। पहले सभी मठों के पीठाधीश्वर शंकराचार्य जी से बात हुई । फिर सभी अखाड़ों और अन्य प्रमुख धर्मगुरुओं को भी जोड़ा गया। इनमें जैन, बौद्ध, सिक्ख, आर्य समाज आदि सभी ने मिलकर गौरक्षा केलिये सरकार का ध्यानाकर्षक करने का निर्णय लिया। करपात्री जी महाराज ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों एवं विभिन्न राजनैतिक दलों से भी बातचीत की। करपात्री जी महाराज की जिन राजनेताओं से चर्चा हुई उनमें प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी, गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा, आचार्य बिनोबा भावे पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डा राम मनोहर लोहिया जैसे व्यक्तित्व शामिल थे। लगभग सभी ने गौरक्षा केलिये अपनी सैद्धान्तिक सहमति दी। इतनी तैयारी के बाद ” सर्वदलीय गोरक्षा महा अभियान समिति” का गठन किया गया। इसमें काँग्रेस सीधे नहीं जुड़ी थी लेकिन काँग्रेस के अनेक सदस्य व्यक्तिगत स्तर पर जुड़े थे। जबकि भारतीय जनसंघ, रामराज्य परिषद, हिन्दु महासभा आदि खुलकर साथ थे।अक्टूबर 1966 में यह आँदोलन आरंभ हुआ। यह तीन स्तरीय था। पहला अनशन, दूसरा विभिन्न प्राँतों में स्थानीय स्तर पर ज्ञापन देना और तीसरा संसद पर प्रदर्शन। पहले दो चरण पूरा करने के बाद संसद पर प्रदर्शन करने का निर्णय हुआ। इसके लिये दिल्ली के आर्यसमाज भवन में संतों का अनशन और केन्द्रीय गृहमंत्री सहित विभिन्न मंत्रालयों को ज्ञापन प्रेषित करने का अभियान चला। एक माह तक अभियान चलने के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला। अंततः गोपा अष्टमी तिथि को दिल्ली जाकर संसद भवन पर प्रदर्शन करने का निर्णय हुआ। वह 1966 वर्ष था यह दिन यह तिथि सात नवम्बर को थी। संसद भवन पर होने वाले इस प्रदर्शन केलिये देशभर में तैयारी हुई। जम्मू, कश्मीर से लेकर केरल तक और गुजरात से लेकर बंगाल तक देश के हर नगर और क्षेत्र में संतों की सभाएँ हुई। गौ भक्तों का दिल्ली पहुँचना आरंभ हो गया। कितने ही लोग हफ्ते भर की पदयात्रा करके दिल्ली पहुँचे थे। कोई सड़क पर सोया, किसी ने माँग कर भोजन किया । लेकिन सब के मन में गौरक्षा की लगन थी। गोपा अष्टमी के एक दिन पहले से ही देश भर से साधु संत और अन्य गौ भक्त दिल्ली पहुँच गये थे। सात नवम्बर को प्रातः से ही लाल किले लेकर चाँदनी चौक और चाँदनी चौक से संसद भवन जाने वाले मार्ग पर गौ भक्त एकत्र थे। इस सर्वदलीय आँदोलन के समन्वयक स्वामी करपात्रीजी के साथ चाँदनी चौक आर्य समाज मंदिर में तीन पीठाधीश्वर शंकराचार्य जगन्नाथपुरी, ज्योतिष्पीठ और द्वारकापीठ, वल्लभ संप्रदाय पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, माधव संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज के प्रतिनिधि, सिखों के निहंग नागा साधु और गाँधीवादी संत विनोबा भी सहभागी थे। गौरक्षा का संकल्प लेकर लगभग दस लाख से अधिक इन गोभक्तों में लगभग दस हजार से अधिक साध्वियाँ और अन्य महिलाएँ थीं। लाल किला मैदान से नई सड़क, चावड़ी बाजार, पटेल चौक होकर संसद भवन पहुंचने का मार्ग निश्चित हुआ। गौभक्तों के समूह ने जुलूस के रूप में पैदल चलना आरम्भ किया। दिल्ली वासियों ने गौभक्तों पर अपने घरों से फूलों की वर्षा की। लगभग ग्यारह बजे से आँदोलन कारी गौ भक्तों का संसद भवन पहुँचना आरंभ हो गया था। दोपहर लगभग एक बजे संसद भवन पर सभा आरंभ हुई और संतों के संबोधन हुये । सभा लगभग दो घंटे चली। सब शाँति पूर्ण था। तीन बजे आर्यसमाज के स्वामी रामेश्वरानन्द का संबोधन आरंभ हुआ। स्वामी रामेश्वरानन्द ने कहा कि यह सरकार बहरी है। सरकार को झकझोरना होगा। तभी गोहत्या बन्दी कानून बन सकेगा। इसी बीच कुछ लोगों ने संसद भवन में घुसने का प्रयास किया। रोकने केलिये पुलिस ने पहले लाठी चार्ज किया। फिर गोली चालन। सड़कें रक्त रंजित हो गईं और घायलों से सड़क पट गई । सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस गोलीकांड में आठ लोगों की मौत हुई थी। जबकि प्रत्यक्ष दर्शियों ने मरने वालों की संख्या इससे कयी गुना अधिक बताई। लाठी चार्ज में करपात्री महाराज और पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निरंजन देव तीर्थ भी घायल हुये । जो प्रमुख संत घायल हुये और गिरफ्तार किये गये उनमें पुरी पीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती भी थे। इसके बाद दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। जो भी संत सड़क पर दिखता, उसपर पुलिस लाठी लेकर टूट पड़ती थी। हजारों संतों को जेल में डाल दिया। तिहाड़ जेल में स्थान न बचा तो अस्थाई जेले बनाई गई। उनमें गौभक्तों को निरुद्ध किया गया ।

गौभक्तों के उस शाँति पूर्ण सभा में अचानक हुये उपद्रव के दो अलग अलग कारण बताये गये । सरकार की ओर से माना गया कि स्वामी रामेश्वरानन्द जी ने आँदोलन कारियों से संसद भवन में घुसकर सांसदों को घेरने की बात कही इसलिये भीड़ उत्तेजित हो गई और संसद का दरबाजा तोड़कर भीतर घुसने का प्रयास किया । जबकि दूसरी ओर आँदोलनकारियों का मानना था कि प्रदर्शन में कुछ असामाजिक तत्व शामिल हो गये थे । उन्होंने भीड़ घुसकर संतों से मारपीट करने लगे । इससे अव्यवस्था फैल गई। और किसी ने संसद भवन में घुसने केलिये उकसा दिया । जिससे भारी उपद्रव हो गया ।

उन दिनों श्रीमती इंदिरा गाँधी भारत की प्रधानमंत्री थीं और श्री गुलजारीलाल नंदा देश के गृहमंत्री। करपात्री जी महारिज ने से नंदाजी के व्यक्तिगत संबंध बहुत अच्छे थे । व्यक्तिगत स्तर पर नंदा जी गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के पक्षधर थे । पर निर्णय न हो सका । और उनके गृहमंत्री रहते हुये संतों पर लाठी गोली और अश्रुगैस छूटी । उन्होने इस घटना से क्षुब्ध होकर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया । दूसरी ओर संतों पर हुये इस गोलीकांड के विरोध में संतों ने अनशन आरंभ कर दिया । इनमें प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, पुरी के शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ रामचंद्र वीर और जैन संत मुनि सुशील कुमार जैसे सुविख्यात संत शामिल थे । सभी की गिरफ्तारी हुई । प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का अनशन 30 जनवरी 1967 तक चला। 73 वें दिन डॉ. राममनोहर लोहिया ने उनका अनशन तुड़वाया। अगले दिन पुरी के शंकराचार्य ने भी अनशन तोड़ा। लेकिन रामचन्द्र वीर अनशन पर डटे रहे, उनका अनशन 166 दिन बाद समाप्त हुआ था। संतों के इस गौरक्षा आँदोलन का विवरण मासिक पत्रिका ‘आर्यावर्त’, ‘केसरी’ प्रकाशित हुआ । बाद में गीता प्रेस गोरखपुर की मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ ने अपने गौ विशेषांक में इस घटना का विस्तार से विवरण दिया ।