खाद्य पदार्थों, दवाईयों और अन्य जरुरी सामग्री के मंहगी होने के प्रमुख वजह मुनाफाखोरी ही है. उत्पादक और उपभोक्ता के बीच बिचोलियों का होना और ज्यादा मुनाफे की चाह ने अनैतिक मुनाफाखोरी, मिलावटखोरी और कालाबाजारी को जन्म दिया जिससे न केवल मंहगाई बढ़ी बल्कि आम व्यक्ति का जीवन मुश्किल कर दिया.
उपरोक्त तथ्य से साफ है कि आज जरूरत उत्पादक और उपभोक्ता के बीच ऐसी कड़ी या नेटवर्क की है जो उचित मुनाफा लेकर उत्पादों को सप्लाई कर सकें जिससे मंहगाई पर नियंत्रण पाया जा सकें.
डायरेक्ट सेलिंग नेटवर्क इस मुनाफाखोरी प्रवृत्ति पर नियंत्रण कर मंहगाई को काबू में कर सकता है. अभी हाल में ही महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन ने प्याज की कीमतों पर नियंत्रण और सरकारी हस्तक्षेप रोकने के लिए बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय लिया जो अन्य उत्पादों के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा.
प्याज की बढ़ती कीमतों को थामने के लिए आयकर विभाग ने महाराष्ट्र की पिंपलगांव बसवंत कृषि उपज मंडी समिति में काम करने वाले जिन 6 प्याज व्यापारियों के 13 ठिकानों पर छापेमारी की है उनके यहां से करोड़ों की नगदी मिलने की खबर है.
लेकिन प्याज उत्पादक संगठन ने इस कार्रवाई से अपने को अलग करते हुए एक नया फैसला लिया है. जिसके मुताबिक वे अब डायरेक्ट सेलिंग का नेटवर्क बनाएंगे.
किसान संगठन ने कहा है कि वह इस कार्रवाई का विरोध करके ट्रेडर्स का ढाल नहीं बनना चाहते क्योंकि व्यापारियों ने कभी किसानों का हित नहीं किया.
किसान और कंज्यूमर के बीच ऐसे मुनाफाखोर लोगों की चेन बन गई है, जिनकी वजह से किसानों को बहुत कम पैसा मिलता है और कंज्यूमर को महंगा सामान मिलता है. इस नेटवर्क को ब्रेक करना है. ताकि किसान भी खुश रहे और कंज्यूमर भी.
संगठन के महाराष्ट्र, कर्नाटक, एमपी, गुजरात, तेलांगाना आदि में तीन लाख किसान सदस्य हैं, जिनके माध्यम से वो अलग-अलग शहरों में नेटवर्क बनाएंगे.
महाराष्ट्र के भी बड़े शहरों में खुद प्याज की ग्रेडिंग और ब्रांडिंग करेंगे. मार्केट में डायरेक्ट सेलिंग का नेटवर्क तैयार करेंगे.
किसान कहते हैं जब प्याज के दाम में वृद्धि होती है तब तो सरकार को उसे कम करने की चिंता हो जाती है, लेकिन जब दाम इतना घट जाता है कि किसानों को नुकसान होने लगता है तब सरकार कहां चली जाती है. तब उसकी एजेंसियों को आगे आना चाहिए कि कम से कम वो किसानों को उत्पादन लागत तो दिलवाए.
किसान मेहनत करता है और उसका फायदा जमाखोर उठाते हैं.
नेशनल हर्टिकल्चर बोर्ड ने 2017 में बताया था कि प्रति किलो प्याज पैदा करने पर 9.34 रुपये की लागत आती है. चार साल में यह बढ़कर 15 से 18 रुपये किलो तक हो गया है. ऐसे में किसानों को कम से कम 30 रुपये कीमत तो चाहिए. यह तभी हो सकता है जब डायरेक्ट सेलिंग का नेटवर्क बने.
साफ है खाद्य पदार्थों की मंहगाई का मुख्य कारण जमाखोरी और मुनाफाखोरी है जिस कारण न उपभोक्ता खुश है और न ही किसान, सिर्फ बिचौलिए मौज कर रहे है. ऐसे में न्यूनतम विक्रय मूल्य तय करने के साथ सरकार को इस तरह का नेटवर्क तैयार करने की जरूरत है जिसमें बिचौलियों की भुमिका कम से कम हो और मिलावटखोरी, जमाखोरी और मुनाफाखोरी जैसी प्रवृत्ति को रोका जा सकें.
डायरेक्ट सेलिंग नेटवर्क कहें या इ- कामर्स कहें, इसके प्रचलित और बढ़ने के कारण ही उचित दर पर सामान की उपलब्धता है. जब तक रिटेलर और होलसेलर उचित मूल्य पर उत्पादों को नहीं बेचेंगे, लालच में आकर मिलावटखोरी, कालाबाजारी और जमाखोरी पर अंकुश नहीं लगाऐंगे, तब तक इ-कामर्स या डायरेक्ट सेलिंग नेटवर्क के गठन और उत्थान को नहीं रोका जा सकता.
आज जरूरत की चीजों पर मंहगाई का असर न पड़े, इसलिए डायरेक्ट सेलिंग नेटवर्क की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम होगा.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर