केंद्र सरकार की एक एडवाइज़री का कहना है कि एरोसोल हवा में 10 मीटर तक जा सकते हैं, इसलिए कोरोना संक्रमण से बचने के लिए घर के भीतर रोशनदान खुले होने चाहिए ताकि वेंटिलेशन ठीक से हो सके.
खुले घरों में संक्रमण का ख़तरा कम होता है. यह एडवाइज़री भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय से जारी की गई है.
एडवाइज़री में कहा गया है कि कुछ सामान्य क़दमों से संक्रमण के ख़तरे को कम किया जा सकता है.
एडवाइज़री में कहा गया है, ”अच्छे वेंटिलेशन से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में कोरोना फैलने का ख़तरा कम होता है. जैसे खिड़की खोलने पर बदबू कम हो जाती है, उसी तरह खुले दरवाज़े, खुली खिड़की और एग्ज़ॉस्ट फैन से संक्रमण के ख़तरे को कम किया जा सकता है.”
”इससे वायरल लोड कम होता है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण फैलने की आशंका कम होती है. घरों और दफ़्तरों में वेंटिलेशन संक्रमण से बचने के लिए सामूहिक सुरक्षा का काम करता है.”
इस एडवाइज़री में दफ़्तरों, घरों और सार्वजनिक स्थानों पर बाहरी हवा के आवागमन की सिफ़ारिश की गई है.
ड्रॉपलेट्स और एरोसोल्स के ज़रिए वायरस ज़्यादा फैलते हैं. ड्रॉपलेट्स दो मीटर तक हवा में जा सकते हैं जबकि एरोसोल्स 10 मीटर तक हवा के साथ जाते हैं.
ड्रॉपलेट्स और एरोसोल्स दोनों इंसान के छींकने, खाँसने, थूकने या बोलने से निकलते हैं. जब कोई व्यक्ति संक्रमित होता है तो इनके ज़रिए वायरस दूसरों को भी संक्रमित कर सकता है.
एडवाइज़री में ये भी कहा गया है कि जिस कमरे में एसी के कारण खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद होते हैं उनमें संक्रमण का ख़तरा ज़्यादा होता है. बंद कमरे में बाहरी हवा का आवागमन नहीं हो पाता है, जिससे संक्रमित हवा कमरे के अंदर ही रहती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ड्रॉपलेट्स यानी मुँह से निकलने वाले सूक्ष्म कण का आकार पाँच से 10 माइक्रोमीटर होता है जबकि एरोसोल्स पाँच माइक्रोमीटर से भी छोटे होते हैं. दोनों में संक्रमण फैलाने की क्षमता होती है. बस दोनों में आकार का फ़र्क़ है.
एडवाइज़री में कहा गया है कि क्रॉस वेंटिलेशन संक्रमण को रोकने के लिए बहुत ज़रूरी है. अस्पतालों को भी कहा गया है कि टीकाकरण की जगह पर क्रॉस वेंटिलेशन अनिवार्य रूप से रखने की ज़रूरत है.
पिछले महीने ही नीति आयोग के स्वास्थ्य सदस्य डॉक्टर वीके पॉल ने संक्रमण से बचने के लिए घरों में भी मास्क पहनने की सलाह दी थी
कोरोना वायरस हवा के ज़रिए फैल रहा है या नहीं इसे लेकर कई रिसर्च रिपोर्ट छप चुकी है. इस साल अप्रैल महीने में मशहूर साइंस पत्रिका द लैंसेट ने दावा किया था कि कोरोना वायरस हवा से फैल रहा है.
एमआईटी रिसर्च में भी हवा से संक्रमण फैलने की आशंका जताई गई थी और कहा था कि 6 फ़ीट की सोशल डिस्टेंसिंग बहुत असरदार नहीं है.
हवा से कोरोना फैलने वाली रिपोर्ट को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन भी अपना पक्ष रख चुका है.
WHO ने कहा था, ”अभी तक के सबूतों से पता चलता है कि कोरोना संक्रमण मुख्य रूप से दो व्यक्तियों के संपर्क से फैल रहा है. यह संपर्क एक मीटर की दूरी पर भी ख़तरनाक है. एक संक्रमित व्यक्ति के एरोसोल्स या ड्रॉपलेट्स दूसरे व्यक्ति की आँख, नाक या मुँह के ज़रिए प्रवेश कर संक्रमित कर सकते हैं.”
WHO के अनुसार ही विषाणुजनित दीवार या सतह को को छूने से भी संक्रमण फैल रहा है. सतह या दीवार छूने के बाद लोगो अपनी उंगली आँख, नाक या मुँह तक ले जाते हैं तो संक्रमण फैलना तय है.