लड़खड़ाना तो शराब की फितरत है…. गालिब

लड़खड़ाना तो शराब की फितरत है…. गालिब

श्रीगोपाल गुप्ता:

कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 मार्च से सम्पूर्ण देश में टोटल लाॅकडाऊन की घोषणा की थी! लगभग सकल विश्व में मौत का तांडव मचा रहे कोरोना के कहर को देखते हुए लाॅकडाऊन को देश की जनता ने स्वीकार भी किया! क्योंकि प्रथम दृष्टया इस महामारी का वैकल्पिक इलाज भी यही है!पूरा विश्व इस महामारी का सामना कर रहा है इसे हराने का प्रयास कर रहा है! हमारा देश हिंदुस्तान भी इससे पूरी मुस्तैदी के साथ लड़ रहा है और खास यह है कि कोरोना से लड़ाई सरकार और राज्य सरकारें देश के अवाम के साथ मिलकर लड़ रही हैं,बाधायें आ रही हैं मगर उनका सामना भी देश कर रहा है, इसमें कहीं शक की गुंजाईस नहीं है! चुकी देश बड़ा है जनसंख्या भी बड़ी है तो निश्चित लड़ाई भी बड़ी होगी और कोरोना की भयावहता को देखते हुए कहा जा सकता है कि लड़ाई लंबी भी चलेगी!चूकी कोरोना से निपटने के लिए कोई बेक्सिन या दवा अभी तक बनी ही नहीं है तब स्पष्ट है कि मुख्य हथियार अभी किसी के पास नहीं है! अतः सावधानी और अपने आपको घर में छुपा लेना, सोशल डिस्टेंस का ध्यान रखना आदि ऐसे कुछ उपाय हैं जिनसे अपने जीवन को बचाया जा सकता है, मगर देश में रोज हजारों की संख्या में बढ़ते हुये मरीजों की संख्या बता रही है कि कहीं न कहीं चूक हो रही है! इसके लिए सरकार और जनता दोनों को ही मिलकर ध्यान रखना पड़ेगा! मगर देश के हालात और कोरोना वायरस से बढ़ते पीड़ितों की संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि सरकार और जनता दोनों ही अपने-अपने स्तर पर अपनी जिम्मेदारीयों से पल्ला झाड़ रही हैं और कोरोना के सामने नतमस्तक होती दिखाई दे रही हैं! इसमें सरकारों की चूक का पलड़ा ज्यादा भारी पड़ता दिख रहा है!

हालांकि सरकार को लाॅकडाऊन करने से पहले सरकार को एक बार देश में अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर मजदूरी कर रहे मजदूरों की तरफ जरुर देखना चाहिये था और देखना उन छात्रों को या अन्य किसी कारणबस अपने घरों से दूर दूसरे शहरों में फंसे अपने नागरीकों की तरफ भी देखना चाहिये था जिससे आज ये नौबत आ रही है वो नहीं आती! लाॅकडाऊन की सबसे गहरी मार मजदूरों पर ही पढ़ रही है ,दूर-दराज के क्षेत्रों से सैकड़ों और हजारों मजदूर अपने घरों और सैकड़ों और हजारों किलोमीटर रास्ता पैदल नाप रहे हैं, नतिजन इनमें से अनेक रेलगाड़ियों और तेज दौड़ती-भागती गाड़ियों का शिकार होकर मारे जा रहे हैं तो क्ई चलते-चलते दम तोड़ रहे हैं! हालांकि कई राज्य सरकारें अपने प्रदेश के मजदूर और लाचार लोगों का वापिस लाने का इंतजाम कर रही हैं और दावा भी कर रही हैं हम सब को वापिस लायेंगे और किसी को भूखा नहीं रहने दिया जायेगा! कुछ सरकारें भूखे, लाचार और तंगहाली से रुबरु हो मजदूरों को सीमित संख्या में ला भी रही हैं मगर ‘फौज के लिए गूजा नही होते’ यह कहावत आज भी चरितार्थ हो रही है! मगर साहेब सरकारें तो सरकार होती हैं इनके दावे और आश्वासन केवल एक सीमा तक ही होते हैं और उसके बाद इनकी मनमर्जी शुरु होकर जनता को अपने रहमों कर्मों पर छोड़ दिया जाता है,अब जिये तो वर्ना मरना तो सबको है! नहीं तो क्या कारण है कि कल तक देश की और राज्यों खस्ता हालत और दम तोड़ती अर्थव्यवस्था को देखने और महसूस करने के बावजूद दावा करने वाली सरकारें कहां चली गईं? जो कहती थी कि इस महामारी में अर्थव्यवस्था को तो बाद में ठीक कर लेंगे मगर अभी तो अपने बहनों-भाइयों और बच्चो -बुजुर्गों बचाना है! दावे धरे के धरे रह गये और विशेषज्ञों सलाह को भी सरकारों ने अपने-अपने राज्यों के नालों और नांलियों में बहा दिया और शराब के ठेके खोल दिये जो विशेषज्ञों की नजर में कोरोना वायरस के फैलने में सहायक है! आखिर खोंले भी तो क्यों नहीं क्योंकि खुद खस्ताहाल केन्द्र एक पैसा किसी भी राज्य सरकारों को दे नहीं रही है, ऐसे में दो लाख पचास हजार करोड़ रुपये का राजस्व देने वाली शराब के ठे कों को कैसे बंद रहने दिया जा सकता है?
लड़खड़ाना तो शराब की फितरत है….गालिब
पिये तो शराबी लड़खड़ाये, ना पिये तो….. सरकार!

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