24 घंटे बाजार खोलने की मांग, कितनी जायज- कितनी तर्कहीन

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अभी हाल में ही इंदौर की तर्ज़ पर जबलपुर में भी 24 घंटे बाजार खोलने की मांग एक राजनीतिक दल के व्यापारी प्रकोष्ठ द्वारा जबलपुर कलेक्टर के सामने रखी गई. जो तर्क सामने रखे गए-

1. खाने पीने के शौकीन लोग रात में खरीददारी कर सकते हैं

2. बाहर से आने वाले, अस्पतालों में इलाज करवाने वाले किसी भी समय खान पान कर सकते हैं

3. व्यापार और रोजगार बढ़ेगा

कुछ दिन पहले इंदौर में मुख्यमंत्री द्वारा कुछ चिन्हित जगह पर 24 घंटे बाजार खोलने की परमीशन दी गई और उसे देखते हुए इंदौर कलेक्टर ने ट्रायल आधार पर 12 किलोमीटर लंबी सड़क को चिन्हित किया है और उसकी सफलता के आधार पर आगे की रणनीति तय की जावेगी.

अब समझना यह जरूरी है कि महानगरों में या मेट्रो शहरों में इनके भूगौलिका और आर्थिक आधार पर तय किया गया कि 24 घंटे बाजार खोला जाना लोगों की जरूरत है, उसके बाद व्यापार या रोजगार का नंबर आता है. शौक के लिए पूरा दिन रात के 11 बजे तक काफी है.

दूसरा इन शहरों में कई कारक है जो 24 घंटे बाजार को सफल बनाते हैं:

1. राजनीतिक इच्छाशक्ति

2. प्रशासनिक चुस्ती

3. लोगों में सामाजिक जागरूकता

4. अतिक्रमण पर कार्यवाही

5. अवैध गतिविधियों पर पकड़ और नजर

6. नैतिक और सामाजिक मूल्यों का पालन

7. व्यवस्थित आधारभूत ढांचा

अब अपने जबलपुर शहर की बात करें तो आप यदि रसलचौक पर खड़े है तो किसी भी दिशा में 8 किलोमीटर मीटर जाने पर पुरा शहर कवर हो जाता है.

दूसरा लोगों की जागरूकता की बात करें तो आप पाएंगे बेतरतीब पार्किंग, अवैध कंस्ट्रक्शन, बढ़ती गंदगी और प्रदूषण, जुआ, सट्टा, कालाबाजारी एवं मिलावटखोरी.

राजनीतिक इच्छाशक्ति की बात करें तो शहर में उद्योग के दयनीय हालत, पिछड़ापन, सालों से दंबगो और राजनीतिक पहुँच वाले लोगों द्वारा भ्रष्टाचार और जनता को लूटना. बिशप और आरटीओ हाल के ही उदाहरण है.

प्रशासनिक चुस्ती की बात करें तो शहर में बढ़ता अपराध, पैसे लेकर लाइसेंस परमीशन देना, शहरीकरण स्मार्ट सिटी के हालात, दो साल में पूरे होने वाले कार्य आज 6 साल में भी पूरे न हो पाना.

आज जब बाजार रात में नहीं खुलता है तो भी बढ़ती शराबखोरी, वेश्यावृति, जुआ, सट्टा, अतिक्रमण और असमाजिक गतिविधियां.

ऐसे में एक राजनीतिक व्यापारी प्रकोष्ठ द्वारा यह कहना कि 24 घंटे बाजार खोलने से शौकीन लोग खान पान करेंगे और घूमेंगे, कैसे तर्कसंगत हो सकता है?

क्या शौक पूरा करने के लिए रात 11 बजे तक काफी नहीं है?

क्या शहर कि अन्य समस्याओं पर व्यापारी प्रकोष्ठ को प्रशासन और सरकार का ध्यान नहीं खींचना चाहिए?

*शहर की जरूरत और उसके हालात के आधार पर कोई तर्कसंगत मांग करनी चाहिए. आज जरूरत है आधारभूत ढांचे के विकास की जिससे व्यापार और रोजगार हमारी स्थापित पौराणिक व्यवस्था के अनुसार दिन में ही खुले रहने से बढ़ जाएगा.*

*सही मायनों में राजनीतिक दलों के व्यापारी प्रकोष्ठ इस शहर की विडम्बना भी है और बोझ भी.*

*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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