श्रीमद्भगवद्गीता भगवान की दिव्यातिदिव्य वाणी है।
वेद, भगवान के नि:श्वास हैं और गीता भगवान की वाणी है | नि:श्वास तो स्वाभाविक होते हैं,पर गीता भगवान ने योग में स्थित होकर कही है | अत: वेदों की अपेक्षा भी गीता विशेष है। *न शक्यं तन्मया भूयस्तथा वक्तुमशेषत:| *परं हि ब्रह्म कथितं योगयुक्तेन तन्मया || ( महाभारत आश्व०१६/१२-१३ ) गीता उपनिषदों का सार…