यह धर्म नहीं धर्मांधता है मिश्रा जी
धर्मेन्द्र पैगवार: चाणक्य नीति के तीसरे अध्याय में 12 वे क्रम पर एक श्लोक है अतिरूपेण वै अतिगर्वेण रावण: । अतिदानात् बलिर्बद्धो अति सर्वत्र वर्जयेत्। यह श्लोक पिछले 3 साल में उभरे प्रोफेशनल कथावचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने शायद नहीं पढ़ा है। प्रोफेशनल कथा वाचक शब्द पर कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है, लेकिन…