क्या हम कह सकते हैं कि आरबीआई द्वारा २००० के नोट बंद करने के निर्णय से काला धन मार्केट में आएगा, सर्कुलेशन बढ़ेगा और राजस्व के साथ आर्थिक योगदान भी बढ़ेगा?
ऐसा लगता नहीं है और उसके प्रमुख कारण है:
१. मार्केट में ३.६२ लाख करोड़ रुपए आज २००० के नोट के रूप में है
२. यह पैसा लगभग मार्केट सर्कुलेशन से बाहर है यानि लोगों के पास दबा है और सरकार इसे निकालना चाहती है
३. साफ है यह पैसा यदि बैंक खाते में जमा हो तभी इसकी उपयोगिता होगी अन्यथा मार्केट में २००० के नोट के बदले ५०० के नोट बढ़ जायेंगे और लोगों को बस तिजोरी बड़ी खरीदनी पड़ेगी क्योंकि अब काला धन ५०० रुपए के नोट के में शोभा बढ़ाएगा
४. इसके अलावा सरकार को ५०० रुपए के नोट छापने का अतिरिक्त खर्च और उसके हैंडलिंग चार्ज अलग से उठाने पड़ेंगे यानि खाया पीया कुछ नहीं, ग्लास फोड़ा चार आने का.
आज हर शहर में नोट बदलवाने की एजेंसियां एक्टिव हो गई है. ये १००- १५० लोगों की टीम रखकर हर बैंक ब्रांच से प्रति व्यक्ति प्रति दिन २००००/- रुपए बदलवाकर रोज २० से ४० लाख रुपए कलेक्ट कर काले धन वालों की सहायता कर रहे हैं.
ऐसे में सरकार के पास या अर्थव्यवस्था में कुछ आना तो दूर और उल्टा सरकार पब्लिक का पैसा इस तरह एक गैर जरूरी कवायद में ज़ाया कर रही है एवं ऐसे पैसे की बरबादी हमें रोकनी होगी.
*क्या होना चाहिए:*
१. सरकार विश्व में भारत में खोले गए करोड़ो लोगो के जनधन खाते की प्रशंसा करती है तो तुरंत निर्देश जारी करें कि २००० रुपए के नोट सिर्फ और सिर्फ बैंक खाते में ही जमा होंगे.
२. नार्मल बैंकिंग प्रक्रिया के तहत पैसे बैंक खाते में जमा किए जा सकते हैं.
३. किसी भी दुकान, पेट्रोल पंप, गैस एजेंसी, हास्पिटल, माल, ज्वैलरी, आदि में २००० रुपए के नोट से लेन-देन बंद हो.
*कहने का मतलब साफ है यदि सही मायनों में सरकार चाहती है कि इस प्रक्रिया का फ़ायदा जनता और अर्थव्यवस्था तक पहुंचे तो २००० रुपए के नोट सिर्फ और सिर्फ बैंक खाते में ही जमा करवा कर बदले जा सकते हैं.*
*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर