।। दो प्रकार की बात न करें ।।

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रामायण में कहां गया कि *रामो द्विर्नाभिभाषते।* अर्थात् राम दो बार नहीं बोलते” या “राम कभी दोहराकर नहीं बोलते”।

राम दो प्रकार से बात नहीं करते। रामजी की विशेषता रही है कि वो अभिधा में ही बात करते थे। रामायण में इस बात का उल्लेख कई बार हुआ है। सामान्य भावार्थ भी यही है कि रामजी दो प्रकार की बात नहीं करते। एकाध स्थान पर ये भी स्पष्ट हुआ है कि रामजी एक ही बात को दो बार नहीं कहते हैं। एक बार जो कह दिया, कह दिया।

 

हम सभी प्रायः अपने साथ घटी किसी घटना का वर्णन बार बार करते हैं। विशेषकर यदि किसी ने हमारे साथ गलत किया हो या हमारी परिस्थिति डांवाडोल हो तो हम किसी के मिलते ही टेप रिकॉर्डर के जैसे बजने लगते हैं। जबकि एक ही बात को बार बार कहने से हमारा व्यक्तित्व धूमिल होने लगता है। हमसे मिलने वाले व्यक्ति अनुमान लगा लेता हैं कि ये व्यक्ति मिलेगा तो यही बात कहेगा। ऐसे में एक समय ऐसा आता है कि हमसे मिलने वाला हमसे कतराने लगता हैं। किसी बात को लूप में बोलना भी दोष है।

 

एक ही बात को बार बार न बोलने से एक अतिरिक्त लाभ होता है। व्यक्ति मितभाषी हो जाता है। जहाँ बहुत आवश्यक हो वहीं बोलता है। इस पर डेल कार्नेगी भी लिखा है कि जो व्यक्ति बोलता कम और सुनता अधिक है वो सामने वाले की दृष्टि में उत्तम वक्ता है। हां वक्ता है, श्रोता की बात नहीं कर रहा। कम बोलना एक उत्तम वक्ता के लक्षण हैं।

 

*आज का दिन शुभ मंगलमय हो।*