अशोक गहलोत को अपनी सरकार रिपीट करवानी है और प्राइवेट अस्पतालों को पैसा कमाना है।
इस जिद के चलते राजस्थान में मरीज परेशान हो रहे हैं। सवाल-आखिर सरकारी अस्पतालों की दशा क्यों नहीं सुधारी जाती?
हेल्थ की परिभाषा भी नहीं बता सकते हैं राजस्थान के हेल्थ मिनिस्टर डॉ. कुलदीप शर्मा।
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आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली और पंजाब में किसी भी प्राइवेट अस्पताल पर कोई अंकुश नहीं लगाया और न ही किसी सरकारी स्कीम में मरीजों का इलाज प्राइवेट अस्पतालों में जबरन करवाया। केजरीवाल ने सरकारी अस्पतालों की दशा सुधारी और मोहल्ला क्लीनिक खोल कर दिल्ली और पंजाब के गरीब मरीजों का इलाज करवाया। असल में केजरीवाल को भी पता था कि प्राइवेट अस्पताल कभी भी डंडे के जोर पर गरीबों का इलाज नहीं करेंगे। यह सही भी है कि जिन लोगों ने करोड़ों रुपया खर्च कर अस्पताल बनाया वो किसी मरीज का रियायती दर या फिर फ्री इलाज क्यों करें? यही वजह है कि आज दिल्ली में निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों में मेडिकल सुविधाओं का विस्तार हुआ है। लेकिन इसके विपरीत राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि प्राइवेट अस्पतालों में गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) और चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत रियायती दरों पर इलाज हो। चिरंजीवी योजना में भर्ती मरीज का सरकार की ओर से मात्र 1700 रुपए एक दिन के दिए जाते हैं। इस राशि में प्राइवेट अस्पताल को मरीज के इलाज के साथ साथ भोजन भी करवाना होता है। जो अस्पताल एक दिन के 10 हजार रुपए तक लेते हैं, वे मात्र 17 सौ रुपए में इलाज कैसे करेंगे। सीएम गहलोत ने केंद्र सरकार की योजना को भी शामिल कर चिरंजीवी योजना बनाई है। यानी इस योजना पर खर्च होने वाली राशि में केंद्र सरकार का भी सहयोग है। अब सरकारी अस्पतालों में भी चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में इलाज होता है। यानी राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों का इलाज केंद्र सरकार के खर्चे पर हो रहा है। एक और अशोक गहलोत सरकारी अस्पतालों में इलाज कर केंद्र सरकार से पैसा प्राप्त कर रहे हैं तो दूसरी ओर प्राइवेट अस्पतालों में जबरन रियायती दरों पर इलाज करवाना चाहते हैं। असल में अशोक गहलोत को अपनी सरकार रिपीट करवानी है, इसलिए गरीबों के इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों पर कानूनी शिकंजा कसा जा रहा है, वहीं प्राइवेट अस्पतालों के मालिकों का तर्क है कि उन्होंने समाज सेवा के लिए अस्पताल नहीं खोला है। यदि सरकार की मंशा के अनुरूप मरीजों का इलाज फ्री या रियायती दरों पर किया जाएगा तो अस्पतालों का संचालन मुश्किल होगा। प्रदेश में यदि राइट टू हेल्थ बिल कानून बना तो प्राइवेट अस्पतालों पर ताले लग जाएंगे। इस बिल में निशुल्क इलाज का प्रावधान है ही, साथ ही क्षेत्रीय वार्ड वार्ड को भी संतुष्ट रखना अनिवार्य होगा। पार्षद, विधायक और सांसद की सिफारिश पर प्राइवेट अस्पतालों को सीज भी किया जा सकता है। राइट टू हेल्थ बिल का सरकारी चिकित्सकों ने भी विरोध किया है।
हेल्थ की परिभाषा नहीं बता सकते:
राइट टू हेल्थ बिल के खिलाफ प्रदेश भर में बनी ज्वाइंट एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि डॉ. कुलदीप शर्मा ने कहा कि डब्ल्यूएचओ और सुप्रीम कोर्ट की दुहाई देकर राजस्थान में इस बिल को लाया जा रहा है, लेकिन प्रदेश के हेल्थ मिनिस्टर परसादी लाल मीणा हेल्थ की परिभाषा नहीं बता सकते हैं। मीणा का यह बयान पूरी तरह गलत है कि डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों के अनुरूप राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल लाया गया है। डॉ. शर्मा ने कहा कि डब्ल्यूएचओ का तर्क है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार को मरीजों के इलाज की सुविधा उपलब्ध करवानी चाहिए। डब्ल्यूएचओ की अनिवार्यता सरकारी सिस्टम पर है। इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने दुर्घटना के मामलों में पीड़ित व्यक्ति के इलाज को प्राथमिकता दी है। लेकिन राजस्थान में सरकार अपनी जिम्मेदारी को प्राइवेट अस्पतालों पर थोप रही है। डॉ. शर्मा ने कहा कि यदि किसी नर्सिंग होम में सिर्फ डिलीवरी की चिकित्सा होती है उस नर्सिंग होम में दुर्घटना ग्रस्त मरीज का कैसे होगा। इस पर भी सरकार को विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकारी योजनाओं में मरीज का इलाज हर संभव किया जा रहा है। लेकिन यदि सिर्फ सरकारी योजनाओं में ही इलाज होता रहा तो फिर प्राइवेट अस्पताल कैसे चलेंगे। वैसे भी प्राइवेट अस्पतालों पर सरकार ने अनेक अंकुश लगा रखे हैं। जिनकी वजह से अस्पताल का संचालन मुश्किल हो रहा है। सीएम अशोक गहलोत को राइट टू हेल्थ बिल के प्रावधानों पर पुनर्विचार करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि गत 12 फरवरी से प्रदेश भर के प्राइवेट अस्पतालों ने आरजीएचएस और चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में मरीजों का इलाज करना बंद कर रखा है।
साभार: S.P.MITTAL BLOGGER