कोविड के बढ़ते मामलों और तीसरी लहर की गति से ये बात तो तय है कि स्वस्थ भारत ही विकास की नींव है. जो देश महामारी का मुकाबला करते हुए आगे बढ़ेगा वही जीडीपी में सबसे आगे होगा.
इस बजट में उम्मीद है कि वित्त मंत्री न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए ज्यादा बजटीय आवंटन करेंगी बल्कि कराधान में ऐसे नियमों का संशोधन करेंगी जो स्वास्थ्य क्षेत्र को आम जनता के लिए सरल, सस्ता और सुलभ बनाए.
क्या होना चाहिए इस बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए:
1. सरकारी अस्पतालों की केपेसिटी और फेसेलिटी बढ़ाना
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए सरकारी अस्पतालों की संरचना और विकास पर ज्यादा खर्च करने होंगे, नये अस्पताल बनाने होंगे, अत्याधुनिक फेसेलिटी बढ़ानी होगी और इन्हें प्राइवेट अस्पतालों के समकक्ष खड़ा करने का प्रयास करना होगा.
2. डाक्टरों की संख्या बढ़ानी होगी
ज्यादा से ज्यादा मेडिकल कॉलेज खुलें, डाक्टरों की सीटों में इजाफा हो, आसानी से जो मेडिकल फील्ड में आना चाहता है उसे एडमिशन उपलब्ध हो, कम खर्चीला हो, थ्योरी की बजाय प्रायोगिक शिक्षा पर ज्यादा आधारित हो.
3. मुफ्त वैक्शीनेशन हो
जन्म से लेकर मृत्यु तक जो भी वेक्सीनेशश होने हो, उसकी उपलब्धता सरकारी की तरफ से मुफ्त हो ताकि कोई भी व्यक्ति वेक्सीन लेने से न छूटे.
4. मेडिकल इंश्योरेंस सरकार की तरफ से हो
स्वास्थ्य क्षेत्र में बीमा के लिए सरकारी कंपनी का होना बहुत जरूरी है. जिस तरह से इस महामारी के काल में प्राइवेट बीमा कंपनियों ने क्लेम देने में आनाकानी की है, साफ है सरकारी एजेंसी का होना जरूरी है जो आम आदमी की जरूरत को समझें.
5. सरकारी मेडिकल स्टोर और पैथोलॉजी
आज सबसे ज्यादा दवाईयों और जांचो में लूटा जा रहा है और इसीलिए सरकारी एजेंसियों द्वारा दवाईयों की दुकान और पैथोलॉजी लेब की ज्यादा से ज्यादा हर शहर, कस्बे में स्थापना होनी चाहिए ताकि इलाज व्यवस्था को सरल एवं सस्ता किया जा सकें.
6. अस्पतालों को आयकर मुक्त
संस्था अथवा सोसाइटी, कापरेटिव सोसाइटी या ट्रस्ट या सेक्शन 8 के रूप में स्थापित अस्पतालों को आयकर मुक्त किया जावे. गांवों, कस्बों और छोटे शहरों में खोलने पर सब्सिडी की सुविधा भी उपलब्ध हो.
कोशिश यह करनी होगी की स्वास्थ्य क्षेत्र व्यवसाय का अड्डा बनने की बजाय सेवा एवं सामाजिक कार्य बनें बिना डाक्टर के उचित महनताने में कमी के.
सरकारी अस्पतालों में ज्यादा से ज्यादा डाक्टर आकर्षित हो, उनके लिए आयकर में अलग से स्टेंडर्ड छूट का प्रावधान हो.
7. खुद पर किए गए मेडिकल खर्च की मिले आयकर में छूट
पिछले बजट में एक संशोधन किया गया था जिसके अंतर्गत आपके द्वारा किसी भी व्यक्ति पर किए गए कोविड इलाज के खर्च को व्यापारिक खर्च माना जायेगा लेकिन खुद वहन किए गए खर्च पर कोई छूट नहीं.
इसलिए जरुरी ये है कि आयकर धारा 80 डी के अन्तर्गत खुद पर किए गए मेडिकल खर्च पर छूट मिले ताकि मेडिकल इलाज में मध्यम वर्ग को कुछ राहत मिल सकें.
साफ है सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र को अपने अंतर्गत लिए बिना इसमें क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं ला सकती जो न केवल समय की मांग है बल्कि आम आदमी और मध्यम वर्ग की जरूरत है. मंहगाई की मार से कराह रही आम जनता को सस्ता इलाज उपलब्ध करवाना सामाजिक जरूरत है और सरकार की नैतिक जबाबदारी भी.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर