स्वदेशी वस्तु नहीं चिन्तन है”

स्वदेशी वस्तु नहीं चिन्तन है”

महेन्द्र सिंह चौहान:-
भारत ने अपने 1000 साल की गुलामी में अपनी सनातन संस्कृति को छिन्न-भिन्न होते देखा है । आज भी पश्चिमी सभ्यता भारत पर हावी होती चली जा रही है, युवा पूर्ण रूप से पश्चिमी सभ्यता को अपनाते चला जा रहा हैं, और स्वदेशी वस्तुएं तथा स्वदेशी भाषा को छोड़ रहे हैं । जबकि स्वदेशी एक ऐसा विकल्प है जिसके माध्यम से हम देश की काया बदल सकते है । इसलिए अपने दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तुओं में स्वदेशी का अधिक से अधिक प्रयोग करें इससे देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी और देश विकास करेगा । भाषा और भेषज में भी स्वदेशी का ही उपयोग करें, हिंदी और संस्कृत भाषा विश्व की महानतम और वैज्ञानिक भाषा है, यह वैज्ञानिको और नासा ने भी माना है । देश के उत्थान के लिए हम सभी को स्वदेशी अभियान चलाना चाहिए, और अधिक से अधिक स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए । स्वदेशी के प्रति गौरव व स्वाभिमान के भाव जागृत करना, तथा हस्त निर्मित स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प करना, घर पर तैयार हो सकने वाले उत्पाद- मोमबत्ती, काला मंजन, प्राकृतिक साबुन आदि का निर्माण विधि सीखना और सिखाना होगा ।स्वदेशी क्या- क्या है? – “स्वदेशी वस्तु नहीं चिन्तन है। स्वदेशी तन्त्र है भारतीय जीवन का। स्वदेशी मन्त्र है सुख शान्ति का। स्वदेशी शस्त्र है समय की क्रान्ति का। स्वदेशी समाधान है बेरोजगारी का। स्वदेशी कवच है शोषण से बचने का। स्वदेशी सम्मान है श्रमशीलता का। स्वदेशी संरक्षक है प्रकृति पर्यावरण का। स्वदेशी आन्दोलन है सादगी का। स्वदेशी संग्राम है जीवन मरण का। स्वदेशी आग है अनाचार को भस्म करने का। स्वदेशी आधार है समाज की सेवा का। स्वदेशी उपचार है मानवता के पतन का। स्वदेशी उत्थान है समाज व राष्ट्र का। स्वदेशी ही स्वालंबन है जीवन का ।
स्वदेशी क्या है? “जो अपने आसपास ही उत्पन्न हो और उपलब्ध हो जाए।
स्वदेशी क्यों ? क्योंकि इसके बिना हमारा आर्थिक शोषण नहीं रुक सकेगा।
स्वदेशी कहाँ? जो कुछ हमें प्रकृति से उपलब्ध हो जाए वहां।
स्वदेशी कब? जब हमें सामाजिक सुख शान्ति की चाह हो तब।
स्वदेशी कौन? जो हमारी चेतना में उपभोग नहीं उपयोग का भाव जागृत करें।
स्वदेशी कैसे? अपने आसपास के हस्त निर्मित वस्तुओं को उपयोग का संकल्प लेकर।
स्वदेशी कब तक? जीवन भर।”
“स्वदेशी में क्या- क्या?
भाषा, भूषा (पहनावा), भेषज (औषधियाँ), शिक्षा, रीति- रिवाज, भौतिक उपयोग की वस्तुएँ, कृषि, न्याय व्यवस्था आदि।”
किसी भी देश को यदि आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, सुरक्षा आदि क्षेत्र में समर्थ व महाशक्ति बनाना है, तो स्वदेशी मन्त्र को अपनाना ही होगा दूसरा कोई मार्ग नहीं।
जैसेः- अमेरिका- लम्बे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा, 200 वर्ष पहले तक कोई अस्तित्व नहीं था। पर जब वहाँ स्वदेशी का मन्त्र सिखाने वाले जार्ज वाशिंगटन ने क्रांति किया तो आज अमेरिका विश्व में महाशक्ति बना बैठा है। दुनिया के बाजार में अमेरिका का 25 प्रतिशत सामान आज बिकता है।

जापान- तीन बार गुलाम हुआ पहले अंग्रेज, फिर डच+पुर्तगाली स्पेनिश का मिला जुलाके, फिर तीसरी बार अमेरिका का गुलाम हुआ जिसने सन् 1945 में जापान के हिरोशिमा व नागासाकी में परमाणु बम गिरा दिये थे। 100 वर्ष पहले तक जापान का दुनिया में कोई पहचान नहीं था। लेकिन स्वदेशी के जज्बा के कारण जापान पिछले 60 वर्षों में पुनः खड़ा हो गया।

चीन- ये भी अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेजों ने चीन के लोगों को अफीम के नशे में डूबो दिया था। सन् 1949 तक चीन भिखारी देश था। विदेशी कर्जा में डूबा था। बाद में वहाँ एक स्वदेशी के क्रान्तिकारी नेता माओजेजांग ने पूरे देश की तस्वीर ही बदल दी। आज चीन उस ऊँचे पायदान पर खड़ा है, जिससे अमेरिका भी घबराता है। आज दुनिया के बाजार में चीन का 25 प्रतिशत सामान बिकता है।

विदेशी बैसाखियों पर कोई भी देश ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकता। अंग्रेजों के आने के पहले हमारा भारत हर क्षेत्र में विकसित व महाशक्ति था। अंग्रेजों के शासन काल में मैकाले ने भारत की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को आमूलचूल बदल दिया। पढ़ाई जाने वाली इतिहास के किताबों में भारत की गौरवपूर्ण इतिहास में फेरबदल कर दिया गया। भारत को गरीबों का देश, सपेरों का देश, लुटेरों का देश, हर तरह से बदहाल देश दर्शाया गया। जबकि इंग्लैण्ड व स्कॉटलैण्ड के ही करीब 200 इतिहासकारों ने अपने इतिहास के किताबों में जो भारत का इतिहास लिखा है वह दूसरी ही कहानी कहता है। उसके अनुसार तो भारत सर्वसम्पन्न देश, ऋषियों का देश, हीरे जवाहरातों का देश था।
भारत में रहने वाले हर नागरिक को अपने देश में बनी वस्तुओं का ही प्रयोग करना चाहिए। स्वदेशी का प्रयोग कर हम भारत को उन्नत बना सकते हैं। जिससे भारत दोबारा विश्व गुरु बन सकेगा। हमे हमेशा जैविक खेती, लघु कुटीर उद्योग, सौर ऊर्जा, आचरण में स्वदेशी वस्तुओं को ही बढ़ावा देना चाहिए । हमे स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करते हुए बिजली बचाने के लिए सोलर एनर्जी का इस्तेमाल करना चाहिए। जिससे घरों में बिजली का बिल कम आएगा बिजली की भी बचत होगी।

स्वदेशी पत्रिका में प्रकाशित मेरे आलेख के अंश l