समझ से परे है स्कूलों का खोलना
स्कूल मफियाओं के आगे नतमस्तक सरकार
विजया पाठक:
1 जूलाई से प्रदेश में स्कूल खोलने की बात कर रही है। यह खबर तब आ रही जब देश में प्रदेश में कोरोना पॉजिटिव केसो का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। मतलब केस बढ़ रहे है और स्कूली बच्चों को इस महामारी में शामिल करने की कोशिश की जा रही है। यदि सरकार की मंशा सफल होती है तो निश्चित रूप से मासूमों की जिदंगी दाव पर होगी। साथ ही बच्चों के परिवार भी खतरे में होगें। अब सवाल उठता है कि एक तरफ सरकारें लॉकडाउन के दौरान तरह तरह की बंदिशे लगाकर सामाजिक दूरी की पहल कर रही है। हम पर रोज नये नये नियम कानून थोपें जा रहे है। जैसे धारा 144 सप्ताह में तीन दिन दुकान खोलनें की अनुमति, सामाजिक दूरी को पालन करवाना धार्मिक स्थलों का बंद होना ऐसे अनेकों प्रयासों से लोगों की जिदंगी बंद की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ स्कूलों को खोलकर सारे नियमों, कानूनों की धज्जियां उडानें की बात की जा रही है। सरकार की नियत बिलकुल साफ दिख रही है कि वह शिक्षा माफियाओं के आगे वह नतमस्तक है। यह सत्य है कि स्कूलों को खोलने के पिछे स्कूल माफियाओं को ही दबाव है। इस दबाव में सरकार झुकने को तैयार है। हम जानते है कि स्कूल संचालक कोई साधारण व्यक्ति नही है बल्कि बडे़-बडे धरानों के पूंजीपति लोग है। जिनका साल का टर्नओवर करोडो़ का है। यदि स्कूल बंद रहते है तो इनका धंधा चौपट हो जायेगा।
इन्हे लोगों की जिंदगी से और न ही बच्चों के भविष्य की चिंता है। चिंता है तो सिर्फ स्कूल फीस वसूलने की सरकार को इनकी मंशा समझने की जरूरत है। अब स्कूल खोलने पर इनकी इन नियमों का क्या होगा। जो सरकार ने बना कर रखे है। इन छोटे छोटे बच्चों को सावधानियां बरतना कौन सिखाएगा। लाखों बच्चे घरों से बाहर निकलेगे, जो पिछले ढाई माह से घरों में सुरक्षित हैं। यह बच्चों की जिंदगी से बहुत बडी खिलबाड़ है। यह तो स्पष्ट समझा जा सकता है कि यह मामला केवल फीस की रकम के अरबों की हेराफेरी से ही संबधित है। वरना बच्चे यदि 2-4 महीने बाद स्कूल में जाएगे तो क्या अंतर पडना है। वैसे भी हमारा स्कूली सिस्टम हमें विकट परिस्थिति में बचना कभी नही सिखता है। यह तो हमें हाथ कैसे धोना चाहिए, दांतो में ब्रेश कैसे करना चाहिए, यह भी ठीक से नही सिखया जाता तो हम कल्पना कर सकते है कि कोरोना महामारी के बचाव में क्या सिखा सकते है। यह जग जाहिर है कि कोरोना वायरस एक दूसरे से छूने से फैलता है। जुलाई का महिना बरसात के मौसम का प्रारंभ है। बरसात में वायरस तोजी से फैला है। इस कोरोना लहर के सामने अपने बच्चों को झोंक देने का अर्थ है नरभक्षी जानवार के सामने लड़ने जैसा है। यदि वाकई में सरकार कोरोना से जंग जीतना चाहती है तो स्कूलों को अभी छह माह तक खोलने की आवश्यकता नही है। सरकार को इस पर एक बार जरुर विचार करना चाहिए। स्कूल खुले तो स्थिति बहुत भयावह हो सकती है।