सियासत में जिधर दम, उधर हम का चलन ज़माने से चला आ रहा है

 

*✍🏼अमित सिंह परिहार✍🏼*

पहले सरकार के लिये बेचैनी,फिर मुख्यमंत्री के लिए इंतेज़ार,बाद में मंत्रिमंडल की टोह,अब विभागों की उलझन। ये सब उस दल में जिसे अनुशासन,थिंक टैंक, और रणनीतिकारों का गुलदस्ता कहा जाता है! लोग इस दल के छोटे-बड़े नेताओं से एक ही सवाल पूछ रहे हैं, सरकार अपना काम कब शुरू करेगी.? सवाल तो वाजिब है,पर उत्तर गोलमोल, “ये तो ऊपर से तय होगा”। मुख्यमंत्री, मंत्री, विभाग सब ऊपर से ही तय होना है,तो सरकार भी ऊपर वाले चला लेते! या फिर साफ़ ये कहो कि अघोषित रूप से इस प्रदेश को भी केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया जा चुका है।

आख़िर आज श्यामला हिल्स वाली कोठी में विदाई समारोह संपन्न हो गया। कर्मचारियों,सुरक्षा कर्मियों से मिलते हुए बाक़ायदा वीडियो भी जारी किया गया। बाद में एक अपील भी सोशल मीडिया में प्रकाशित की गई कि,सिर्फ पता,और पद बदला है,हमारे तेवर नहीं। अब इस डायलाग के क्या मायने निकाले जाएं.? ये भी कह डाला कि,जिसको भी किसी तरह की कोई परेशानी हो,बे धड़क मिल सकता है, लिंक रोड,74 बंगलो, खोली नंबर 88। मैं पहले की तरह अपने भांजा-भांजियों, बहनाओं और बहनोईयों की सेवा करता रहूंगा। लगता है ऊपर वालों ने इनको भी वरिष्ठ समझ कर पल्ला झाड़ना चाहा था। सोचा होगा,प्रादेशिक स्तर पर एक “मार्गदर्शक मंडल” का गठन कर उसका चेयरमेन बना देंगे,पर गणित गड़बड़ा गई। ये तो पहले से भी अधिक खूंखार हो चले। न हमारे पास आते हैं,न घर में बैठते हैं। यार ये तो बड़ा सख्त जां निकला। मम्मा को भी सोचना चाहिए कि,जिसने अपने उस्तादों को नहीं बख्शा,तो आप किस खेत की मूली हो।

मिश्रा जी का जलवा पहले की तरह अभी भी बरक़रार है। मंत्री,विधायक जिसको देखो मुलाक़ात के लिए ललायित नज़र आते हैं। उनका डायलाग सच साबित होता दिखाई दे रहा है,”तेरी जीत से ज़्यादा,मेरी हार के चर्चे हैं”। हो सकता है जवानी में बाजीगर फ़िल्म कई बार देख डाली हो,और मन में बात बैठ गई हो कि,हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं। उनके घर जाने वालों की फ़ेहरिस्त देख कर शक़ होता है कि,लोगों ने पाला बदल लिया, या फिर कहीं से ख़बर लग गई कि,लोकसभा के बाद पंडित जी के कांधों पर बड़ी जिम्मेदारी आने वाली है। क्योंकि सौजन्य भेंट एक ही व्यक्ति से क्यों? इस युद्ध के और भी तो कई नाकाम आशिक़ राजधानी में मौजूद हैं। वैसे सियासत में जिधर दम, उधर हम का चलन ज़माने से चला आ रहा है।

 

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