सियासत की राह में बिल्ली ने क्यों काटा रास्ता?

 

0 राजतिलक की तैयारी, फिर अकस्मात वनवास

0 नागदा टिकट स्वयंबर में योद्धा ने मारी बाजी

कैलाश सनोलिया:

नागदा। रामायण काल में राजा दशरथ की मंशा के अनुरूप श्रीराम को राज तिलक की तैयारी चल रही थीकि रानी कैकयी की हठ एवं कोपभाजन से जिनको राज मिलना था उनको वनवास भेज दिया। अकस्मात भरत को राजपाट सौंप दिया गया। सारी प्रजा आश्चर्य में पड़ गई। इसी प्रकार जब राजा जनक की बेटी सीता के हाथ पीले करने का अवसर आया तो स्वयंबर में धनुष तोड़ने की प्रतिस्पर्धा में कई शूरवीर योद्धाओं ने सीता के गले में वरमाला डालने की प्रतिस्पर्धा में भाग लिया। कई सूरमाओं ने अपनी शक्ति सामर्थ का खूब प्रदर्शन अहंकार में किया। लेकिन एक तरफ खड़े एक वनवासी ने धनूष को तोड़कर अपनी ताकत का एहसास सारे योद्धाओं को दिला दिया। यह दोनों प्रसंग उज्जैन जिले की नागदा-खाचरौद विधानसभा सीट पर भाजपा की टिकट घोषणा से सामंजस्य कर गई। भाजपा ने जो सूची जारी की है , उसमें पूर्व विधायक दिलीपसिंह शेखावत का टिकट काट दिया गया। उनकी जगह पर संगठन के एक परिपक्व राजनेता, भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष डॉ तेजबहादूरसिंह चौहान को मैंदान में उतारा है। डॉ चौहान वर्तमान में भाजपा जिला कार्यकारिणी के सदस्य है, और इंदौर संभाग के चुनाव सहसंयोजक भी है। इस घोषणा के बाद भाजपा में बगावत के सूर गूंज रहे हैं। नागदा एवं खाचरौद के कुछ भाजपा पार्षदों ने पार्टी संगठन के निर्णय के विरोध में त्यागपत्र दिए हैं।
सोशल मीडिया पर अनुशासित पार्टी के कार्यकर्ता के बीच खड़ी हुई दीवार के दोनों और से अपने- अपने नेता के पक्ष में शोर गूंज रहा है। संगठन के और भी कुछ पदाधिकारी इस निर्णय से सरोकार रखने से एतराज जता रहे हैं। सियासत के इस पूरे खेल में दिलीपसिंह शेखावत का टिकट काटने की चर्चा ज्यादा सूर्खियां बटोर रही है। अब बडा सवाल यह खड़ा हो रहा हैकि आखिरकार दिलीपसिंह शेखावत की सियासत की राह में बिल्ली ने रास्ता क्यों काट दिया । उनको सियासत की और भेजने के बजाय वनवास में क्यों भेजने का सवाल के जवाब में कई प्रकार की गुथियां उलझी हुई है। प्रत्येक गूत्थी को समझना होगा।
इसकों यूं समझे

यूं समझा जाए कि भाजपा हाईकमान के सामने जो दर्पण था उसमें इस ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र से राजपूत उम्मीदवार तय करना था। इतिहास साक्षी हैकि इस क्षेत्र में भाजपा के अस्त्तिव में आने के बाद 1985 से लगातार आठ बार ठाकूूर बिरादरी के प्रत्याशियों को मैंदान में उतारा गया। इस क्षेत्र. से भाजपा की टिकट से ठाकुुर तीन बार 1990, 1998, 2013 में विजयी हुए और पांच बार 1985, 1993, 2003 2008 एवं 2018 में मात खा गए। ऐसी स्थिति में हाईकमान के पास पहला यह निर्णय थाकि क्या अबकि बार राजपूत बिरादरी का चेहरा बदला जाय या स्थिर रखा जाए। निर्णय आया कि ठाकुर प्रत्याशी को ही उम्मीदवार बनाया जाएगा।
इस पंरपरा को कायम जब रखा गया तो तीन बडे चेहरें डॉ तेजबहादूरसिंह, दिलीपसिंह शेखावत एवं असंगठित कामगार बोर्ड के चैयर मैंन सुल्तानसिंह शेखावत के बेटे मोतीसिंह का नाम इस तस्वीर में दिख रहे थे। अतं में दो नाम पर जब सूई धूम रही थी तो डॉ चौहान, एवं दिलीपसिंह पर टिक रही थी। इन दोनो में किसी के पक्ष में सकारात्मक तो किसी की और नकारात्मक पहलू भी थे। जैसा भाजपा का टिकट के मापदंड के मामले में कहना हैकि जीतने वाले उम्मीदवार को टिकट दिया जाएगा। पार्टी ने अपना सर्वे भी कराया। कई तरह के फीड भी लिए गए। पार्टी बहुत ही सोच समझ कर यह निर्णय लेेती हैकि आखिरकार कौन उम्मीदवार मजबूत होगा जो जीत को वरण कर सकता है। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट हैकि हाईकमान ने दोनों उम्मीदवारों की शक्ति को परखा तो संभव है, डॉ चौहान अधिक सामथर््यवान साबित हुए होंगे। तभी तो संगठन ने उनकी पीठ थपथपाई और मैंदान में भेज दिया। इस कारण श्री शेखावत को निराश किया गया। अब ये सवाल उठाए जा रहे हैकि 12 लोगों के विरोध के कारण टिकट काटा है। मात्र किसी के विरोध से किसी उम्मीदवार को टिकट से वंचित करने की बात गले नहीं उतर रही हैं।
भाजपा ने कई सर्वे कराए उसे संभव शेखावत की तुलना में डॉ चौहान अधिक सामथर््यवान साबित हुए हांेगे। दूसरा बड़ा नकारात्क पहलू श्री शेखावत के लिए यह भी थाकि दिलीपसिंह को भाजपा ने तीन बार 2008, 2013 एवं 2018 में मैंदान में उतारा था। जिसमें से दो बार 2008 एवं 2018 में इन्हें पराजय मिली। एक बार 2013 में सफलता मिली। इस जीत को भी राजनैतिक विश्लेषक मोदी लहर को श्रेय दे रहे हैं। शेखावत के नाम क्षेत्र में सकारात्मक पहलू यह तो माना जा सकता हैकि वे सक्रिय तो रहें, लेकिन जैसा जनमानस से जो बात सामने आ रही हैकि स्वभाव में अंहकार, प्रतिशोध की भावना, व्यवहार एवं गुटबाजी नामक बिल्ली उनके मार्ग में रास्ता काट गई। कथित उपरोक्त बुराइयों की दीमक ने उनकी सियासत के टीले को इस घटना ने ढहा दिया और खोखला भी कर दिया।

गोल्डन पीरियड

श्री शेखावत को एक सुनहरा अवसर विधायक काल 2013 से 2018 में अपनी सियासत की धार को पैनी करने का मिला था। गत विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद भी सक्रियता रही लेकिन नकारात्मक पहलू कही अधिक प्रभावी हुआ। यह फीड बैंग भी वजनदार बना। आखिकार सियायत का यह खिलाड़ी अपने सामथर््य को समझने में भूल कर गया और लंबी सियासत से फिलहाल तो बेपटरी हुआ।

प्रदेश राजनीति भी आड़े आई

श्री शेखावत की टिकट कटने में संगठन के राजनेताओं की सियासत भी रोड़ा बनने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। आपकी सियासत का प्रार्दुभाव उमा भारती के मुख्यमंत्री कार्यकाल में परवान चढी थी। उमा के सीएम कार्यकाल में अकस्मात सीएम हाउस की जिम्मेदारी मिलना एक बड़ी उपलब्धि थी। यह उपलब्धि उस काल में राजनीति के गलियारों मे आश्चर्यजनक मानी गई । उमा के ही कार्यकाल में बतौर राज्यमंत्री ं उर्जा विकास निगम अध्यक्ष की शोहरत भी मिली। उमा भारती ने जब भाजपा से बगावत कर अलग से पार्टी बनाई तो प्रहलाद पटेल जैसे कदावर नेता ने उमा के संग निष्ठा निभाई। और प्रहलाद ने भाजपा का दामन छोड़ दिया। इधर , शेखावत ने भाजपा के प्रति निष्ठा का परिचय दिया। उमा की मुख्यमंत्री पद से बिदाई के बाद शिवराज ने भी इन्हें इसी पद से नवाजा। बाद में शिवराज के संग इनकी सियासत की डोर मजबूत होती गई। समय गुजरता गया और नागदा निवासी डॉ थावरचंद गेहलोत को केंद्रीय मंत्रिमंडल एवं भाजपा केंद्रीय संसदीय बोर्ड से विमुक्त कर बतौर राज्यपाल के किरदार में कर्नाटक भेजा गया। कुछ समय के अंतराल के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ सत्यनारायण जटिया का अकस्मात राजनीति में जीवन्त होना व भाजपा केंद्रीय संसदीय बोर्ड में बतौर सदस्य किरदार मिल गया। डॉ जटिया का यह मुकाम संभव है, डॉ तेजबहादुर के लिए वरदान साबित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। यह बात भी गौर करने लायक हैकि मप्र में विधानसभा चुनाव का जब बिगूल बजा तो भाजपा हाईकमान में प्रदेश में चुनाव संचालन के लिए एक समिति थोप दी। जो शिवराज के निर्णय लेने की स्वच्छदता में रोड़ा बनी। इस चुनाव समिति में केंद्रीय मंत्री नरेंद्रसिह तौमर, कैलाश विजयवर्गीय एवं ज्योतिरादित्य को भी बड़ी जिम्मेदारी मिली। हाल में जो टिकट की दूसरी सूची भाजपा ने जारी की श्री तौमर, विजयवर्गीय, एवं प्रहलाद पटेल को भी मैंदान में उतार दिया। संभावना यह तो जताई जा रही हैकि अगली सूची में ज्योतिरादित्य को चुनाव लड़ने की हरी झंडी मिल सकती है। भाजपा का यह स्पष्ट संकेत हैकि अब शिवराज नहीं। मैंदान में जिन धूरधंरों को मैंदान में उतारा जा रहा है उनमें से ही कोई सीएम के पद का किरदार होगा। इधर शिवराज भी कुर्सी के लिए आस लगाए बैठे हैं। ऐसी स्थिति में भावी सीएम पद के उम्मीदवार अपनी पंसद से ही तो टिकट देंगे जो चुनाव प्रबंधन समिति में भी है। इस समीकरण में नरेंद्रसिंह तौमर एवं भाजपा केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य डॉ जटियां की पसदगी और ना पसंदगी का हस्तक्षेप को नकारा नहीं जा सकता है।

-कैलाश सनोलिया
संवादाता हिंदुस्थान समाचार एजेंसी

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