सिंहासन खाली करो कि जनता आती है….

 

श्रीगोपाल गुप्ता:-

इसी साल जब 10 मार्च को पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता सिंधिया वंश के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया था तब प्रदेश विशेषकर ग्वालियर-चंबल संभाग में सनसनी फैल गई! दिग्गज राजनीतिक पंडित और विश्लेषकों को लगा कि बस अब इन दोनों संभागों में कांग्रेस समाप्त हो गई !पूरे देश में तो नहीं हां मगर ग्वालियर-चंबल संभाग जरुर कांग्रेस मुक्त हो गए! चारो तरफ हा-हाकार मच गया, हजारों सिंधिया समर्थक खुलेआम टीवी चैनल्स, सोशल मीडिया पर अपने गुस्से का इजहार करते हुए देखे जा रहे थे! इनके निशाने के केन्द्र पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह बने,इन दोनों को ही पूरी सिंधिया मंडली खलनायक साबित करने में लग गई और कुछ हद तक सफल भी रही! मगर ये जोश मात्र 24 में ही आधा रह गया जब सिंधिया ने 11 मार्च बुधवार को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के समक्ष सदस्यता ग्रहण कर केशरिया पट्टा अंगीकार कर लिया! उसके बाद रही-सही कसर सिंधिया समर्थक 19 विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा देते हुये कमलनाथ सरकार को असमय धरासाई कर दिया! सिंधिया के भाजपा का हाथ थामने और सरकार गिराने के बाद उनके आधे से ज्यादा समर्थक वापिस कांग्रेस का हाथ थामे रहे, उनको उम्मीद थी सिंधिया अपने पिता स्वर्गीय माधव राव सिंधिया की तरह नई पार्टी बनायेंगे और कमलनाथ, दिग्विजय सिंह को सबक सिखायेंगे! मगर सिंधिया ने भारी जल्दबाजी करके भाजपा सदस्यता ग्रहण कर ली, इसी बीच पूरी कांग्रेस सिंधिया को गद्दार कहते हुये सड़कों पर जनता के बीच पहुंच गई! तीर निशाने पर लगा और एक बार फिर सिंधिया खानदान और ज्योतिरादित्य सिंधिया इतिहास के निशाने पर आ गए! कमलनाथ और कांग्रेस ने सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ते हुये महारानी लक्ष्मीबाई की शहादत और अपनी सरकार गिराने के लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहराया!

भारत के उप चुनाव के इतिहास में सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों के लिए यह उप चुनाव प्रचार काफी लंबा चला, उन्हें जनता के समक्ष भाजपा के हाथों अपने न बिकने की सफाई तक देनी पड़ी और कसमें खानी पड़ी! इधर चुनाव प्रचार आज खत्म होने के बाद अब स्पष्ट है कि जो कांग्रेस सिंधिया के इस्तीफा देते समय पूर्णतः खत्म हो गई थी वो आज पुनः न केवल जिंदा है बल्कि पूरी सिद्धत के साथ चुनाव मैदान में डटी हुई है! इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि करीब तीन महिनों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर जो मुरैना-श्योपुर संसदीय क्षेत्र सांसद भी हैं, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा जो मूलतः मुरैना जिले के ही निवासी हैं, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 सीटों पर जहां उप चुनाव हो रहे हैं, की लगातार मौजुदगी! इसमें जहां शिवराज सिंह, नरेंद्र सिंह और वीडी शर्मा ने पूरा दम लगा दिया वहीं इतने दिन तो केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह खुद अपने चुनाव में भी मुरैना में नहीं रुके होंगे ,जितने दिन यहां रहकर वे पूर्व कांग्रेसी विधायकों को अब अपनी पार्टी के चिण्ह कमल पर जिताने की कवायद कर रहें और विशेष बात ये रही की इन सब दिग्गजों के निशाने केवल कांग्रेस ही है! ग्वालियर-चंबल में नेता विहीन हुई कांग्रेस में सिर्फ कमलनाथ और पूर्व नेता विपक्ष अजय सिंह राहूल भैया ने ही सतही तौर पर मोर्चा लिया जबकि राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का भी पायलटी दौरा हुआ मगर वो केवल कुछ समय और कुछ सीटों तक ही सीमित रहा! बिना नेता और बिना सेनापति के कांग्रेस फिर से कैसे खड़ी हो गई? क्योंकि पूरे प्रदेश में हो रहे 28 उप चुनाव में सभी जगह बिना कांग्रेस की चर्चा किये हुए चुनावी चर्चा पूरी नहीं हो पा रही है! सभी 28 सीटों पर कांग्रेस सीधी टककर में खड़ी है! तो क्या कांग्रेस और कुछ राजनीतिक पंडितों का विश्लेषण सही है कि ये उपचुनाव भाजपा बनाम जनता हो गया है? अगर ये आंकलन सही है तो प्रसिद्ध समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण द्वारा कांग्रेस की तात्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की सरकार को उखाड़ फैंकने वाला वह ऐतिहासिक नारा और प्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता का वो शीर्षक भी क्या मध्य प्रदेश में सच होने जा रहा है? कि
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है…

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