साइंटिफिक-एनालिसिस: “राष्ट्रपति की गरिमा” अब शपथ दिलाने वाले मुख्य न्यायाधीश के भरोसे

 

नये संसद-भवन के उद्घाटन हेतु इसके एक निचले सदन लोकसभा के सचिव द्वारा जारी आदेश व स्पीकर द्वारा प्रधानमंत्री पद पर जनता की नौकरी कर रहे व्यक्ति को आमंत्रित करना देश में संवैधानिक पदों एवं मर्यादाओं पर बवाल खड़ा रखा हैं | इसमें ऊपरी सदन राज्यसभा के अध्यक्ष उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सचिव की चुप्पी या संसद के प्रति उनकी जवाबदेही को पूर्णतया न निभाना व निचले सदन के लोकसभा स्पीकर और सचिव द्वारा पद के अधिकारों से आगे निकल ज्यादा सक्रीयता निभाना सभी को आपस में नैतिकता व मर्यादा के नाम पर आपस में लड़वा सबको दुनिया के सामने बेआबरू कर रहा हैं | इसे शब्दों की व्याकरण वाली भाषा के मुहावरें में रायता फैलाना कहते हैं जो नई पीढी को स्कूलों में संविधान के साथ पढाया जाता हैं | अब यह विवाद जनहित याचिका के रूप में उच्चतम न्यायालय के पास पहुंच गया हैं |

संविधान में सबकुछ स्पष्ट संकेत व लिखे होने के बावजूद उसको न समझ पाने व अपनी-अपनी सोच के अनुसार उसकी व्याख्या करने से सभी मिलकर एक-दूसरे को अपना-अपना ज्ञान समझानें के साथ इसके संरक्षक राष्ट्रपति की ईज्जत एवं मर्यादा का चीरहरण कर रहे हैं और नई सभ्यता एवं संस्कृति को गढ़ने का दुस्साहस लोकतंत्र की मालिक जनता को दिखा व जोर-जोर से राग-लपेट के साथ गूंजायमान कर रहे हैं | अब इस अपनी-अपनी अक्कल के महासंग्राम में देश के एक नागरिक ने उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका लगा अपनी अक्कल की समझ को बताई कि संसद-भवन का उद्घाटन “राष्ट्रपति” से करवाने का आदेश लोकसभा सचिव को दिया जाये |

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा ही राष्ट्रपति को पद एवं गरिमा की शपथ दिलाई जाती हैं इसलिए अब उनके ऊपर ही इस शपथ व गरिमा को संविधान के अनुसार व्याख्या कर जनता को बताने व राजनैतिक चीरहरण को रोकने का दायित्व एवं कर्तव्य आ गया हैं | यहां सबसे बड़ी बात जिस “संविधान” को आधार मानना हैं उसे तो तथाकथित सरकार यानि कार्यपालिका ने अपने पास रखा हैं और उसे नये संसद-भवन में बने संविधान हाल में अपनी ही निगरानी में रखने का सुनिश्चित किया हैं |

तथाकथित सरकार एवं राजनैतिक हिस्सा आजादी के बाद से ही उच्चतम न्यायालय का तिरस्कार एवं अपमान करता आया हैं और अपनी सोच को थोपता रहा हैं वो मुख्य न्यायाधीश के फैसले को मानेगा या नहीं वो सबसे बडा नैतिक प्रश्न आम लोगों के दिमाग में शंशय पैदा कर रहा हैं |

संविधान दिवस उच्चतम न्यायालय के सभागार में बनाया जाता हैं “राष्ट्रपति” भी उसमें शिरकत करती हैं परन्तु उनसे शपथ लिये व शपथ लिये वाले से शपथ लेकर कुर्सी पर बैठे लोग इसमें शामिल न होकर बहिष्कार करते हैं व संसद मे अपना ही अलग संविधान-दिवस बनाकर सेलिब्रेट करते हैं | विपक्षी पुकारे जाने वाले कम संख्या के राजनैतिक संगठन इसका भी बायकाट कर जैसे को तैसे के तर्ज पर न्याय करते हैं | गणतंत्र दिवस की राष्ट्रीय सलामी में राष्ट्रपति व उनसे शपथ लेने वाले माननीय मंच में सबसे ऊपर अपनी-अपनी संवैधानिक कुर्सी को लेकर बैठते हैं और राष्ट्रपति को शपथ दिलाने वाले व्यक्ति को उसकी संवैधानिक कुर्सी के साथ निचे बैठाते हैं |

संविधान के अनुसार सभी 15 सदस्य वाली न्यायाधीशों की संविधान पीठ को राष्ट्रपति के समान संविधान संरक्षक का दर्जा दिया हैं इसलिए संविधान की कापी को सदैव उनके संरक्षण में उच्चतम न्यायालय के सभागार में ही रखना चाहिए न कि संसद-भवन में ताकि वर्तमान जैसे विवाद पैदा हो तो न्यायाधीश उस संविधान को पढ उसके सत्य के प्रकाश में फैसला जनता को बता सके |

उच्चतम न्यायालय में दायर जनहित याचिका पर पहले न्यायाधीशों को अपने ग्रीष्मकाल की छुट्टीयों से लौटना होगा अन्यथा जिस संवैधानिक पद की छांव में छुट्टीयों का आन्नद ले रहे हैं वो ही अपने कर्तव्य व जवाबदेही की मर्यादा खो देगा | मुख्य न्यायाधीश सहित अन्य न्यायाधीश पहले तय करले की यह उनके अधिकार क्षेत्र में आता हैं या नहीं अन्यथा फैसले में कहना न पड जाये कि यह संवैधानिक रूप से गलत हैं परन्तु गलत करने वाले को रोकना एवं सजा देना हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता हैं इसे हम संविधान पीठ को भेजते हैं | इस तरह समय की बर्बादी से न्याय के साथ ही अन्याय हो जायेगा |

उच्चतम न्यायालय के पुराने फैसलों का अवलोकन करें तो ऐसा ही लगता हैं कि संसद का उद्घाटन कार्यक्रम को रोका नहीं स्थगित कर दिया जायेगा जब तक की व पुरी सुनवाई कर फैसला नहीं दे देता | इसमें तारिख और समय अतिविशेष नहीं हैं इसलिए किसी को तकलीफ नहीं होगी | देशवासीयों और राष्ट्रपति को जरूर डर लग सकता हैं कि कई सुप्रीम कोर्ट अपने फैसलें में महाराष्ट्र की सरकार पर फैसले की तरह यह न कह दे कि आपने राष्ट्रपति “द्रौपदी” का चीरहरण घर बैठे लाईव प्रसारण होते हुए क्यों होने दिया आप हम पर भरोसा रखते हम आपको सारे अपराधों से बेइज्जत बरी करते और सच्ची राष्ट्रभक्ति दिखाने का गौरव प्रदान करते |

राष्ट्रपति के आंख-नाक-कान माने जाने वाले उनके सचिवालय के कर्मचारियों को उनके चीरहरण की पड़ी नहीं हैं वो तो उल्टा इसमें मदद कर मजे लूटने की खुशी में फूले ही नहीं समा रहे हैं | हमने इस प्रकरण पर साइंटिफिक-एनालिसिस नई संसद-भवन का उद्घाटन यानि राष्ट्रपति “द्रौपदी” का चीरहरण 24 मई 2023 को अधिकारिक रूप से रजिस्टर्ड (PRSEC/E/2023/0019173) करवा दिया | इस पर उन्होंने कार्यवाही करते हुए 25 मई को मध्यप्रदेश सरकार की CM हेल्पलाइन को भेज दिया कि वो राष्ट्रपति “द्रौपदी” का चीरहरण रोक दे | वर्तमान खबरों से जनता को बता चल चुका हैं कि यह CM हेल्पलाइन रात के अंधेरे में फोन कर न उठाने को आधार बना मामला बन्द कर देती हैं l इस लेख की समस्त जिम्मेदारी lekgak

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