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यह सच है कि जीत के सौ बाप होते हैं, हार का एक भी नहीं।पर यह भी उतना ही सच है कि पार्टी के जिस संगठन की देश भर में दुहाई दी जाती रही हो, वहां शर्मनाक हार अकारण तो नहीं हो सकती।यह बात और है कि बड़े नेता इसे स्वीकार नहीं करेंगे पर हर कार्यकर्ता इसे जानता है।
यह हमारे नगर के बड़े (अब राष्ट्रीय) नेताओं के निकम्मेपन की हार है।यह खुद को खुदा समझने की हार है।कार्यकर्ताओं की निरन्तर उपेक्षा और उन्हें बड़े बड़े आदर्शों के झूठे दिखावे की हार है।यह औरों को नसीहत, खुद मियां फ़ज़ीहत होने की हार है।यह कार्यकर्ताओं की वास्तविक समस्याओं की उपेक्षा की हार है।यह चमचों को कार्यकर्ता और कार्यकर्ता को पैर की जूती समझने की हार है।
बड़े बड़े नेताओं का इतना घमंड कि किसी पुराने कार्यकर्ता को एक फ़ोन के योग्य न समझना और जिसे अपने मोहल्ले में 4 वोट न मिलें उससे चंवर ढुलाने को अपना संगठन कौशल मानना, इसके सिवाय और कौन सा परिणाम ला सकता था।
एक परिश्रमी सतीश सिकरवार ने सारे स्वयम्भूओं की हेकड़ी उतार के रख दी।पहले विधान सभा में और फिर महापौर के चुनाव में।सतीश ने सारा संगठन कौशल भाजपा से ही सीखा था और उसी कौशल से उसने अकर्मण्य और झूठे नेताओं की कलई उतार कर रख दी।जब नेता किसी के बढ़ते कद से भयभीत होकर उसकी कतर ब्यौन्त करते हैं तो वो हठी कार्यकर्ता जन समर्थन की बौछार पा कर और बड़ा होकर निखरता है।
सतीश का समर्थन करने वाले भाजपा के वोटर ही नहीं कार्यकर्ता भी बहुत बड़ी संख्या में थे।ऐसे लोग जिन्हें कांग्रेस के नाम से नफ़रत थी, वो भी शोभा सतीश सिकरवार के साथ खड़े दिखाई दे रहे थे।
क्यों?
यह यक्ष प्रश्न है! इससे आंख मिलाने की हिम्मत नेतृत्व में है तो मिला कर दिखाए।
आदर्शों का आवरण ओढ़ कर स्वार्थ और झूठ का जो नाच हमारे नेतृत्व ने विगत 20,30 सालों में नाचा है, यह उसकी स्वाभाविक परिणति है।यह होना ही था।समर्पित और ध्येय निष्ठ कार्यकर्ताओं को एक एक कर घर बिठाते जाओगे,आधारहीन और स्वार्थी चाटुकारों को खपच्चियाँ लगा कर नेता बनाओगे, हमें गुड़ चने खा कर लड़ने का आदर्श बताओगे और खुद हर साल 4, 5 करोड़ का एक और बंगला, फार्म हाउस,
फैक्ट्री खरीदने के लिए अल्लादीन का चिराग कहाँ से लाये हो,नहीं बताओगे।पाखानों से लेकर खदानों तक पर तुम्हारा कब्ज़ा होगा और कार्यकर्ता रात की रोटी की जुगाड़ में मारा मारा फिरेगा तो और क्या होगा? वार्ड प्रमुख, बूथ प्रमुख और पन्ना प्रमुख काग़ज़ों पर धरे रह जाएंगे, पर्ची बांटने वाला नसीब न हुआ है न होगा।
बुरी लगी हो तो दर्पण में एक बार अपना चेहरा फिर देख लेना और मुझ जैसे दस पांच और कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देना।
तुम्हारी कुछ और अट्टालिकाएं भले ही खड़ी हो जाएं पर इससे पार्टी का भला न होगा।