आप यदि मप्र सरकार को आर्थिक सहयोग या सहायता करना चाहते हैं तो छक कर पिएँ और पिलाएं शराब क्यों कि सरकार की नई आबकारी नीति शराब के प्रति काफी उदार बनाई गई है जो कि वित्तीय वर्ष 2022-23 यानि 01/04/2022 से लागू हो जाएंगी.
बड़ी उदारता से इस आबकारी नीति की घोषणा सरकार के प्रवक्ता और मंत्री श्री नरोत्तम मिश्रा ने की, जिसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार है:
- अब घर में 4 गुना अधिक शराब रख सकते हैं, मतलब 6 बोतल शराब की जगह 24 बोतल शराब और 1 पेटी बीयर की 4 पेटी रख सकते हैं.
- एक करोड़ रुपये से अधिक आय वाला व्यक्ति अपने घर में बार बना सकता है.
- एक ही दुकान से देशी और विदेशी शराब की अब बिक्री हो सकती है.
- विदेशी शराब पर एक्साइज ड्यूटी में कमी कर सस्ती की जावेगी, लगभग 10-13%.
- माइक्रो बिवरेज प्लांट होटलों में लगाए जा सकेंगे जिसमें रोज 500 से 1000 लीटर की कम एल्कोहल वाली शराब और बीयर बनाई जा सकेंगी.
- डिंडोरी और अलीराजपुर में महुआ की शराब का उत्पादन शुरू होगा.
- और तो और महुआ की शराब को हेरिटेज नीति के तहत राज्य की टूरिस्ट और अन्य जगह बेचा जावेगा.
- शराब का ठेका एक बड़े ग्रुप या सिंडिकेट को न देकर छोटी छोटी दुकानों को दिया जावेगा.
- एयरपोर्ट और माल्स में विदेशी शराब के काउंटर खुलेंगे.
- प्रदेश की 11 डिस्टिलरी अब डायरेक्टली ठेकेदार को माल बेचेगी यानि ठेकेदार अपनी सुविधा अनुसार माल खरीद सकता है.
शराब को प्रोत्साहन मप्र सरकार की आर्थिक नीति का आधार बनता नजर आ रहा है और यही जीएसटी कानून की सबसे बड़ी खामी साबित हो रही है.
राज्य सरकारें राजस्व के लिए मुख्यतः प्रापर्टी, शराब, पेट्रोल डीजल और बिजली पर निर्भर हो गए हैं क्योंकि अन्य उत्पाद अब जीएसटी के तहत होने से जीएसटी बढ़ेगी तो राज्य सरकार का राजस्व बढ़ेगा.
जीएसटी बढ़ाने के लिए राज्यों को व्यापार बढ़ाने पर काम करना होगा लेकिन वे भलीभाँति जानती है कि नौकरशाही व्यापार में अड़चन डाल सकतीं है लेकिन व्यापार बढ़ा नहीं सकती इसलिए आसान उपायों की ओर रुख किया जाता है, फिर चाहे आम जनता के हित में हो या न हो.
प्रापर्टी का मार्केट वैसे ही सिसक रहा है तो दूसरी तरफ बिजली, पेट्रोल डीजल में दाम बढ़ाना राजनीतिक रुप से कमजोर करता है, सो सबसे सरल उपाय शराब के रूप में आर्थिक विकास क्यों न अपनाया जाए.
आज राज्य सरकार पर करीब 2.68 लाख करोड़ का कर्ज है जिसके इस साल के अंत तक 3 लाख करोड़ रुपये होने की पूरी संभावना है यानि हर एक राज्य के नागरिक पर कर्ज 34000 रुपये से बढ़कर 40000 रुपये होने वाला है. ऐसे में कर्ज में डूबी इस सरकार को राजस्व पूर्ति के लिए शराब जैसी सामाजिक विरोधी चीजों पर आस रखना और अर्थ नीति बनाना मजबूरी और दुर्भाग्यपूर्ण से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता.
क्या राजस्व कानून इसलिए बनाए जाते हैं कि सरकारें समाज विरोधी सामग्री बेचने से अपनी आमदनी अर्जित कर सरकारी खर्चे चलाएं? ऐसे में कुछ समय में हर सरकार जुआ, चोरी और डकैती को भी कानूनी जामा पहना देगी तो हम क्या समाजिक कुरीतियों पर चलेंगे?
कुरीतियों पर चलकर ही यदि सरकार को सहयोग करना कहेंगे तो फिर खूब पिएँ और पिलाएं शराब.
लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर