मनोज_जोशी:
क्या लिखूं, क्या बोलूं कुछ समझना मुश्किल है। लेकिन सरकार आप मानो या नहीं मानो यह जिम्मेदारी आप ही की है। 2003 में जब आपने सरकार बनाई थी तब आपने जनता की सेवा का वादा किया था, 2018 दिसंबर में जब आप की सरकार नहीं बनी तब भी आपने यही कहा था कि जनता की सेवा जारी रखेंगे। और पिछले साल मार्च में जब आपने वापसी की तब भी आपने जनता की सेवा का ही वादा किया था। सरकार आप मानो या नहीं मानो अस्पतालों में हालात बहुत खराब हैं। रोजाना बल्कि हर थोड़ी देर में ऐसी खबरें आ रही है जिससे मन विचलित हो जाता है।
प्रशासन में, सरकार में और सरकारी पार्टी के संगठन में अच्छी पैठ रखने वाले लोग भी फोन कर रहे हैं भाई अस्पताल में बिस्तर दिलवा दो, ऑक्सीजन दिलवा दो, इंजेक्शन दिलवा दो, वेंटिलेटर दिलवा दो। मैं सोच रहा हूं यह सब तो वह लोग हैं जिनके बारे में मैं सोचता था कि यदि मुझे जरूरत पड़ेगी तो यह मेरे काम आएंगे लेकिन आज यह सब असहाय हो गए हैं। पिछले 15 – 17 दिनों में कोई दिन ऐसा नहीं गया जब कोरोना महामारी के कारण मैंने अपने किसी करीबी व्यक्ति के निधन की खबर ना सुनी हो।
राजधानी भोपाल में जब ये हालत है तो प्रदेश के दूसरे शहरों में क्या स्थिति होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। इस स्थिति को संभालने की जिम्मेदारी आखिर सरकार की ही है। लेकिन ऐसा लगता है सरकार से हालात संभल नहीं रहे।
– रेमडिसीविर इंजेक्शन की कमी की बात सामने आई सरकार ने राशनिंग के अंदाज में सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की ड्यूटी लगा दी। आप किसी भी अस्पताल के डॉक्टर से पूछ लीजिए जिन लोगों की ड्यूटी लगाई गई है वह डॉक्टरों के फोन नहीं उठा रहे। अब इंजेक्शन कैसे मिलेगा समझा जा सकता है।
– लोगों को राहत देने का वादा करके सरकार ने आरटीपीसीआर टेस्ट के रेट कम कर दिए, नतीजा निजी पैथोलॉजी ने इसकी जांच बंद कर दी। पूछो तो दबी जुबान में कहते हैं ₹700 में यह जांच संभव नहीं है।
-निजी लैब में जांच नहीं हो रही, सरकारी में कतार लंबी है। जो जांच 1 दिन में हो जाना चाहिए उसमें 3 से 4 दिन लग रहा है रिपोर्ट 6 से 7 दिन में आ रही है। मरीज की हालत सुधरेगी या बिगड़ेगी यह तो वह भी समझ सकता है जिसको बड़े घर से हंस का ज्ञान ना हो।
– कोरोना की चेन तोड़ने के लिए लॉकडाउन के विकल्प का इस्तेमाल करने की बजाय जिस तरह के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं उनको देखो तो ऐसा लगता है शायद कोरोना भी समय दिन और मनुष्य का व्यवसाय देखकर संक्रमण फैलाता है।
सरकारी कर्मचारियों को कोरोना नहीं हो सकता।
फल सब्जी विक्रेताओं को कोरोना नहीं हो सकता। उद्योगों में कार्य करने वालों को कोरोना नहीं हो सकता। निजी क्षेत्र में नौकरी करने वालों को कोरोना नहीं हो सकता।
किराना और फूड की होम डिलीवरी करने वालों को कोरोना नहीं हो सकता।
कोरोना केवल शहर के बाजारों में फैलता है।
बहुत ही स्वाभाविक प्रश्न है – यदि सारी आर्थिक गतिविधियां चालू रखनी हैं तो दुकानें क्यों बंद कर रखी हैं, इन दुकानों में क्या आर्थिक गतिविधियां नहीं चलती?
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सरकार जब आप मास्क लगाने की अपील करने के लिए रोड शो करते हो तो ऐसा लगता है जैसे चुनाव प्रचार कर रहे हो।
सरकार जब आप स्वास्थ्य सत्याग्रह करते हो तो आम आदमी समझ नहीं पाता कि आप कर क्या रहे हो? उसके लिए तो सत्याग्रह का अर्थ आंदोलन था सरकार के खिलाफ। अब आप ही सत्याग्रह कर रहे हो तो वह क्या माने ?
दमोह में चुनाव कराना यदि संवैधानिक रूप से जरूरी था तो नगरीय निकाय के चुनाव भी तो संवैधानिक बाध्यता है। वह भी करा लेते।
21वीं शताब्दी के 21 वें वर्ष का यह भारत और इस मध्य प्रदेश के लोग इन सब बातों को देख समझ रहे हैैं। और सरकार, एक बात का ध्यान रखना कि धारणा और मत 1 दिन में नहीं बनता।
2023 बहुत दूर नहीं है।