हमारे धर्मग्रंथ हमें जीने की कला सिखाते हैं और मुसीबतों के समय घबड़ा के भाग जाना या, परिस्थिति का रोना रोते हुए घर बैठ जाना अथवा आत्महत्या कर लेना कभी नहीं सिखाते।
हमारे धर्म ग्रंथ हमें सिर्फ, धार्मिक ज्ञान ही नहीं देते हैं बल्कि, हमें जीने की कला भी सिखाते हैं।
और हमें मुसीबत से उबरने के साहस देते हैं।
उदाहरण के लिए अगर आप सिर्फ रामायण को देखो तो…
रामायण में जब भगवान राम के राज्याभिषेक की घोषणा हो चुकी थी। उसी रात, उन्हें राज्याभिषेक की जगह 14 वर्ष के वनवास की आज्ञा दे दी गई।
इसे बस ऐसे समझ लो कि सुबह आपको किसी कंपनी का CEO में प्रोमोशन होना है और, आपने कोट-टाई-जूता वगैरह खरीद के रखा हो कि सुबह CEO के पद का चार्ज लेंगे।
और, रात में मालूम पड़े कि आपको 14 साल के लिए बर्खास्त कर दिया गया हो नौकरी से।
मतलब कि CEO तो छोड़ो वर्तमान नौकरी भी गई और आपको किसी दूसरी नौकरी करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया 14 साल तक।
अगर ऐसी स्थिति किसी के साथ आई तो आज के 99% लोग फांसी पर लटक जाएंगे कि अब जीवन में क्या बचा है।
लेकिन, भगवान राम ने वन जाने की आज्ञा पर खुशी जताई और वे खुशी-खुशी वन गए।
वन में माता सीता का अपहरण हो गया!
लेकिन, भगवान राम उस परिस्थिति में भी नहीं घबड़ाये बल्कि, उन्होंने इसका पता लगाया।
फिर, पता लगाने पर मालूम चला कि माता सीता का अपहरण रावण नामक राक्षस ने किया है जो बहुत बलशाली है और उसकी पूरी लंका ही सोने की है।
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि… लंका भी समुद्र के उस पार है जहाँ पहुंचना ही असंभव सा है।
ये किसी को भी डिप्रेस कर देने के लिए काफी है।
कि, कहाँ हम साधन विहीन मात्र दो भाई और कहाँ सोने की लंका में रहने वाला रावण।
जिसके पास एक से एक महाबली वीर योद्धा मौजूद हैं। क्या ये आत्महत्या के लिए पर्याप्त कारण नहीं है कि अब हम क्या कर पाएंगे इस परिस्थिति में ??
हम तो उस रावण से मुकाबला कर ही नहीं पाएंगे अब।
लेकिन, भगवान राम ने ऐसा कुछ नहीं सोचा बल्कि…
उन्होंने अपने पास उपलब्ध संसाधन का सदुपयोग करते हुए अपनी सेना तैयार किया
अगस्त मुनि से… अनेकों अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किया…!
फिर… सुग्रीव, जामवंत, हनुमान वगैरह महावीरों की मदद से लंका पर चढ़ाई की और उसे नेस्तनाबूत कर दिया। और, अंत में अयोध्या नगरी के चक्रवर्ती सम्राट बने…!
उसी तरह महाभारत में भी पांडवों ने ये सोच कर कभी डिप्रेस नहीं हुए कि….
एक तरफ… हस्तिनापुर की राजकीय सेना, भगवान श्री कृष्ण की चतुरंगिणी सेना… भीष्म जैसे परमवीर, आचार्य द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वस्थामा, कर्ण, दुर्योधन जैसे वीर हैं…
और, दूसरी तरफ ये मात्र पांच भाई।
हम कैसे लड़ेंगे यार चलो, सब इज्जत बचाने के लिए आत्महत्या कर लेते है।
ऐसा कुछ नहीं सोचा उन्होंने बल्कि, पांडवों ने भी अपने उपलब्ध संसाधन से अपनी सेना बनाई।
हिम्मत और प्लानिंग से लड़े और, अंततः दुश्मनों पर विजय प्राप्त की।
इसलिए अपने निकटवर्ती लोगों को भगवान राम, कृष्ण, भक्त प्रह्लाद आदि के बारे में बताएँ कि कैसे उन्होंने विपरीत परिस्थिति में भी हिम्मत, साहस और बेहतर प्लानिंग के साथ परिस्थितियों को अपने अनुकूल किया….
और, मुसीबत पर विजय पाई।
हमारे सनातन धर्म की इन्हीं विशेषताओं के कारण तो कहा जाता है…
*धर्मों रक्षति, रक्षितः…!*
अर्थात… तुम धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म भी तुम्हारी रक्षा करेगा।
अर्थात, तुम्हें डिप्रेस नहीं होने देगा।