06/08/2020,
सियाराम पांडेय ‘शांत’:-
1528 से चला आ रहा इंतजार खत्म हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमिपूजन कर राममंदिर निर्माण की औपचारिक शुरुआत कर दी। साथ ही अपना संकल्प भी जाहिर कर दिया- ‘राम काज कीन्हे बिना मोंहि कहाँ विश्राम।’ जो बात रामभक्त हनुमान ने मैनाक पर्वत से कही थी, वही बात देशवासियों से कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश का दिल जीत लिया है।
रामभक्तों की असल परीक्षा तो अब शुरू हुई है। अयोध्या भगवान राम की ही थी, है और रहेगी, इसे साबित करने का समय आ गया है। प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा है कि राम का काम हुए बिना उन्हें चैन नहीं है। यही भाव हर भारतवासी में होना चाहिए। हर सनातन हिन्दू धर्मावलंबी में होना चाहिए। यह हर रामभक्त की परीक्षा की घड़ी है। राम के काम में परीक्षा जरूर देनी पड़ती है। परम शक्तिशाली हनुमान को भी समुद्र लांघना होता है, सुरसा के मुंह में जाना होता है। सिंहिनी राक्षसी का ग्रास बनने से बचना पड़ता है। लंका में बंधना पड़ता है। उपहास झेलना पड़ता है। यही नहीं, उन्हें जिंदा जलाने के दानवी प्रयास भी होते हैं। रामकाज में प्रतिष्ठा तो मिलती है, लेकिन इससे पूर्व कम अपमानित भी नहीं होना पड़ता। प्रधानमंत्री कारसेवक बनकर अयोध्या आए थे और इसबार नींव रखने। इस बीच 29 साल का समय लग गया। संकल्प है कि तीन साल में भव्य और दिव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार की, राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र परिषद ट्रस्ट की भूमिका और बढ़ गई है। तय समय में राम मंदिर का परिपूर्ण भव्यता और दिव्यता से गुणवत्तापूर्वक बनाया जाना मौजूदा समय की मांग भी है।
जिन पांच लोगों महंत दिग्विजयनाथ, महंत अविराम दास, बाबा राघवदास, रामचन्द्र परमहंस और हनुमान दास पोद्दार ने राममंदिर मुक्ति आंदोलन की आरंभिक कमान संभाली, उनमें से कोई भी भूमि पूजन की शुभ घड़ी को देख पाने के लिए अब मौजूद नहीं हैं। अशोक सिंघल जिन्होंने इस आंदोलन को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई, वे भी गोलोकवासी हो चुके हैं। ऐसे में जरूरी है कि जन-जन की आस्था के प्रतीक प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण में अब एक पल भी बर्बाद न किया जाए। अयोध्या को त्रेता युग जैसी बनाने का जो विचार सरकार के स्तर पर व्यक्त किया है, उसे राममंदिर निर्माण के समानांतर ही मूर्त रूप दिया जाए, यही वक्त का तकाजा भी है। राम को सबका बताया है। सम्पूर्ण विश्व वसुधा का बताया है। उमा भारती की इस बात में दम है कि राममंदिर निर्माण का सपना पूरा हो रहा है, अब बारी रामराज्य लाने की है। रामराज्य मंदिर बनने से ही आ जाएगा, ऐसा संभव नहीं है। यह देश सोने की चिड़िया इसलिए था कि मंदिर जन-जागरण के केंद्र हुआ करते थे। वे अपने क्षेत्र के लोगों को न केवल एकजुट रखते थे बल्कि उन्हें शिक्षित-प्रशिक्षित करने का दायित्व भी निभाते थे। समाज को उसके संस्कारों और आदर्शों से जोड़े रखते थे।
राम आदर्शों के समुच्चय हैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। अपने भाइयों से तो प्रेम करते ही हैं, जीव मात्र के प्रति दया और करुणा का भाव रखते हैं। राम लोकजीवन की मर्यादा हैं। लोग कसम भी खाते हैं तो राम का नाम लेते हैं। तौल व्यापार करते हैं तो भी राम का नाम लेते हैं। जीवन-मरण के हर लोक व्यवहार में राम प्रासंगिक हैं, तभी तो राम जन-मन में बसते हैं। तभी तो गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तीन तैसी।कबीरदास ने लिखा है कि एक राम घट-घट में बोला, एक राम दशरथ गृह डोला। एक राम का जगत पसारा। एक राम सब जग से न्यारा। मतलब एक ही राम की सर्वत्र व्याप्ति है। रामराज्य तब आता है जब लोकजीवन में राम के आदर्श और सिद्धांत जीवंत और जागृत होते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आध्यात्मिक व्यक्ति हैं, वे हर क्षण देशवासियों को प्रेरित और जागरूक करने में जुटे रहते हैं। राममंदिर पर दिए गए अपने व्याख्यान से भी उन्होंने ऐसा ही कुछ किया है। मौजूदा समय राम को अपने जीवन और व्यवहार में उतारने का है। राम इस देश की आत्मा हैं। प्राण हैं। वह राजराजेश्वर हैं। पृथ्वीपति हैं। आत्माराम हैं। परम आचरणवान हैं। विग्रहवान धर्म है। मंदिर निर्माण की उपादेयता व्यक्ति के चरित्र निर्माण में है, लोक व्यवहार की शुचिता और उसके सुनिश्चित अनुपालन में है।
राम मंदिर के निर्माण की बुनियाद का पूजन हो गया है। अब लगे हाथ रामराज्य की बुनियाद भी पड़ जानी चाहिए। सरकार ने मंदिर के साथ ही नव्यअयोध्या के विकास का भी संकल्प लिया है। यह एक स्वस्थ सोच है। हर जिले, तहसील और गांव को विकसित होना चाहिए। गांव-गांव, घर-घर राम के आदर्शों और सिद्धांतों की प्रतिष्ठा हो। कोई दरिद्र, अशिक्षित और बेरोजगार न रहे, इस दिशा में भी सोचने और काम करने की जरूरत है। तभी यह देश परम सांस्कृतिक वैभव का स्वामी बन सकता है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)