कम आय का हवाला देकर अपनी पत्नी के गुजारा भत्ते को कम करने की याचिका पर अदालत ने सख्त टिप्पणी की है। अदालत ने कहा, ‘शादी से पहले लड़के को होनहार बताया जाता है। कमाई के बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन शादी के बाद रिश्तों में खटास आने पर वह बेरोजगार हो जाता है।
जब एक व्यक्ति विवाह करता है तो उसे आने वाली जिम्मेदारियों के लिए तैयार रहना चाहिए।’
कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरुण सुखीजा की अदालत ने कहा कि अजीब स्थिति है एक शानो-शौकत से शादी करने वाला व्यक्ति अचानक से दिहाड़ी मजदूर से कम आय वाला कैसे बन जाता है, क्योंकि वह खुद की पत्नी और बच्चों को गुजाराभत्ता नहीं देना चाहता। अदालत ने यह भी कहा कि रिश्तों की खटास जिम्मेदारी के बंधनों पर भारी पड़ रही है। अदालत ने प्रतिवादी पति को निर्देश दिए हैं कि निचली अदालत द्वारा तय आठ हजार रुपये महीने का गुजाराभत्ते का भुगतान करे।
होटल में कार्यक्रम हुए
प्रतिवादी युवक की सगाई व शादी पांच सितारा होटल में हुई थी। एक कार्यक्रम लड़के वालों ने किया था, जबकि दूसरा लड़की वालों की तरफ से किया गया। अब लड़का कह रहा है कि वह महज चार हजार रुपये महीना कमाता है। आठ हजार रुपये गुजाराभत्ता कैसे दे सकता है?
तहसीलदार से लेकर आया आय प्रमाणपत्र
निचली अदालत ने पहले ही इस युवक को पत्नी को आठ हजार रुपये महीना गुजाराभत्ते का भार डाला था, लेकिन युवक ने इस आदेश को सत्र अदालत में चुनौती दी। उसका कहना था कि उसकी मासिक आय महज चार हजार रुपये है। इसके लिए उसने अपने गांव के तहसीलदार से एक आय प्रमाणपत्र भी बनवाया। सत्र अदालत ने इस पर चौंकते हुए कहा कि एक तहसीलदार किसी का आय प्रमाणपत्र कैसे जारी कर सकता है। चार हजार रुपये कमाने वाला व्यक्ति यह दावा भी कर रहा है कि उसने बैंक से पांच लाख रुपये का लोन लिया है, जिसकी किस्तें वह भरता है। इतनी कम आय पर किस बैंक ने उसे लोन दिया।
पत्नी की कमाई 80 हजार बताने पर फटकार
इस मामले में गुजाराभत्ते को चुनौती देने वाली याचिका में युवक ने पत्नी को बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी बताते हुए कहा कि उसकी आमदनी 80 हजार रुपये महीना है। पति का कहना था कि पत्नी इंडिगो एयरलाइंस में काम कर चुकी है। इस पर अदालत ने कहा कि उन्हें यह बात हजम नहीं हो रही कि कोई अपनी 80 हजार रुपये महीना कमाने वाली बेटी की शादी चार हजार रुपये मासिक आय वाले व्यक्ति से कैसे कर सकता है, जबकि यह शादी पूरी तरह दोनों परिवारों की सहमति पर आधारित है। अदालत ने कहा कि तमाम तथ्य झूठे और मनगंढत हैं।