शरद पूर्णिमा : किस कारण शरद पूर्णिमा कहाः गया!

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_अमृतमयी शरद पूर्णिमा के पावन पर्व की आपसभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!_
चन्द्र देव से प्रार्थना है कि यह पर्व आपके जीवन को सुख, शांति, समृद्धि व आरोग्यता के अमृत से अभिसिंचित करें 🙏।

पूरे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा राष्ट्र है , जहां छह ऋतुएं होती हैं – बसंत , ग्रीष्म , वर्षा , शरद , हेमंत एवं शिशिर ऋतु। दुनिया में साधारणत: चार मौसम ही पाए जाते हैं – ग्रीष्म ,वर्षा , शीत एवं बसन्त।
*आश्विन मास की पूर्णिमा ही एकमात्र ऐसी पूर्णिमा है ,* जो ऋतु के नाम पर जानी जाती है । यह शरद ऋतु के अंतर्गत आता है , इसलिए आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं।

*श्रीरामचरितमानस के किष्किंधाकांड में तुलसीदास जी ने शरद ऋतु का बड़ा ही मनोरम वर्णन किया है।* प्रभु श्री राम लक्ष्मण से कहते हैं –

*बरसा बिगत सरद ऋतु आई।*
*लछिमन देखहु परम सुहाई ।।*
हे लक्ष्मण ! देखो वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई।

*कहुं कहुं बृष्टि सारदी थोरी ।*
*कोउ एक पाव भगति जिमि मोरी ।।*
कहीं-कहीं ( विरले ही स्थानों में ) शरद ऋतु की थोड़ी-थोड़ी वर्षा होती है , जैसे कोई विरले ही मेरी भक्ति पाते हैं।

*सारदातप निसि ससि अपहरई।*
*संत दरस जिमि पातक टरई।।*
शरद ऋतु के ताप को रात के समय चंद्रमा हर लेता है , जैसे संतों के दर्शन से पाप दूर हो जाते हैं ।

*देखि इंदु चकोर समुदाई ।*
*चितवहिं जिमि हरिजन हरि पाई ।।*
चकोरों के समुदाय चंद्रमा को देखकर इस प्रकार टकटकी लगाए हैं , जैसे भगवत-भक्त भगवान को पाकर उनके दर्शन करते हैं।
प्रकृति – वर्णन में भी संत तुलसीदास जी को *अध्यात्म – दर्शन हो रहा है।* दृष्टिकोण में अंतर , चित्त की अवस्था के अंतर को प्रकट कर देता है। इस दृष्टि के कारण ही हम हिंदू कंकर को शंकर बनाने में समर्थ हो सके।

शरद ऋतु का शुक्ल – पक्ष दैवी शक्ति के स्फुरन का पर्व रहा है। और इस शरद – पूर्णिमा की तो बात ही निराली है।
*आइए शरद पूर्णिमा की विशेषताओं पर दृष्टि डालें।*

*१* . केवल शरद पूर्णिमा में ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ परिपूर्णता में प्रकट होता है।

*२* . पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा को ही समुद्र – मंथन से भगवती लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी । इसी तिथि को मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करने आती हैं। अतः लोग लक्ष्मी की आराधना करते हैं।

*३* . जिन्होंने प्रभु श्रीराम एवं उनके मर्यादापूर्ण जीवन एवं आदर्शों से संपूर्ण विश्व को परिचय कराया था , उन महान विभूति महर्षि वाल्मीकि का इसी तिथि को अवतरण हुआ था। इन्होंने केवल श्रीराम की जीवनी ही नहीं लिखी थी वरन् इन्होंने श्रीराम की पत्नी एवं उनके नवजात शिशुओं को भी अपने आश्रम में आश्रय दिया था। ये आदि कवि के साथ – साथ विश्व के प्रथम महाकाव्य भी हैं।

*४* . द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा को ही महा रास-लीला की थी। गोपियों ने पति (स्वामी) के रूप में श्रीकृष्ण की आराधना की थी। अतः भगवान ने उनका भाव पूर्ण करने के लिए अपने को असंख्य रूपों में प्रकट करके गोपियों के साथ क्रीड़ा की थी। वास्तव में सच्चितानंदघन सर्वांतर्यामी प्रेमरस-स्वरूप , लीलारसमय परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी ह्लादिनी शक्तिरूपा आनंद-चिन्मय रस प्रतिभाविता अपनी ही प्रतिमूर्ति से उत्पन्न अपनी प्रतिबिंब-स्वरूपा गोपियों से आत्म-
क्रीड़ा की थी।

 

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